गुजरात में अमरेली ज़िले के मोटा देवाल्या गाँव में एक गरीब किसान परिवार में जन्मे मनसुखभाई जगानी बहुत पढ़े लिखे नहीं हैं। उनका जीवन काफी संघर्ष भरा रहा। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तो उन्होंने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी और अपने पिता की खेती में मदद करने लगे। पानी की कमी के चलते जब अपने खेतों में कुछ नहीं हो रहा था तब उन्होंने दूसरों के यहाँ मजदूर के तौर पर भी काम किया।
इसके बाद मनसुखभाई ने काफी समय तक हीरों की फैक्ट्री में हीरे तराशने का कम भी किया। लेकिन वहां उनका दिल नहीं लगता था। वह कुछ और करना चाहते थे। इसलिए अपने गाँव वापस आ गए। हमेशा से ही मशीन और उपकरणों से लगाव रखने वाले मनसुख भाई ने यहाँ अपनी एक छोटी-सी वर्कशॉप शुरू की और साथ में अपनी खेती भी करने लगे।
वह बताते हैं कि वर्कशॉप में वह चीजें रिपेयर करते थे। लेकिन किसान उनके पास और भी बहुत-सी समस्याएं लेकर आते थे, जिनका वह समाधान करना चाहते थे। अपना दिमाग और आइडिया लगाकर वह तरह-तरह के सस्ती लागत वाले उपकरण बनाते थे जिससे किसान भाइयों की मदद हो। लेकिन वह हमेशा से ऐसा कुछ बनाना चाहते तो जो बिल्कुल नया और अनोखा उपकरण हो और खेती में कारगर हो।
लेकिन क्या? यह उन्हें समझ नहीं आ रहा था। वह बताते हैं, “किसानों को समस्याएं तो थी ही और पानी की कमी के कारण दिक्कतें और बढ़ जाती थी। पैसे के अभाव में वह कृषि के लिए सही उपकरण भी नहीं खरीद पाते थे। तब मुझे ख्याल आया कि क्यों न कुछ ऐसा बनाया जाए जिससे कि किसानों की ट्रैक्टर की ज़रूरत पूरी हो सके।”
बुलेट सांटी
यह साल 1994 में था और मनसुख भाई ने अपना पहला आविष्कार किया, ‘बुलेट सांटी’। यह बिल्कुल ट्रैक्टर की तरह काम करता है। उन्होंने एक ऐसा ‘सुपर हल’ बनाया जो जुताई-बुवाई के साथ मिट्टी को समतल करने जैसे काम भी कर सकता है। सबसे अच्छी बात थी कि इसे उन्होंने मोटरसाइकिल के पिछले टायर को निकालकर, उससे जोड़ा। इस उपकरण का नाम उन्होंने बुलेट सांटी दिया क्योंकि सांटी स्थानीय भाषा में उस उपकरण कहा जाता है जिससे मिट्टी मुलायम और समतल होती है। मनसुख भाई बताते हैं कि उन्हें लगभग 5 बार में सफलता मिली।
लेकिन उनका यह आविष्कार किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ। किसानों को अब श्रमिकों या फिर बैल आदि पर निर्भर नहीं होना था और न ही उन्हें जुताई आदि काम के लिए ट्रैक्टर खरीदने की ज़रूरत थी।
वह आगे कहते हैं “बुलेट सांटी की मदद से किसान मात्र आधे घंटे में दो एकड़ ज़मीन की जुताई कर सकते हैं और वह भी लगभग 1 लीटर डीजल में ही। किसी भी खेत की निराई-गुड़ाई भी जल्दी हो जाती है और इसकी लागत भी बहुत ही कम आती है जैसे 8 रुपये प्रति हेक्टेयर। आप अपनी बाइक को खेत का काम खत्म होने बाद फिर से बाइक में भी तब्दील कर सकते हैं। इस काम में लगभग 30-35 मिनट ही लगते हैं। इसकी लागत उस समय लगभग 30-40 हज़ार रुपये आई थी।”
साल 2000 में प्रोफेसर अनिल गुप्ता के संगठन, हनी बी नेटवर्क को मनसुख भाई के बारे में पता चला। उन्होंने उनके गाँव जाकर बुलेट सांटी को देखा और पूरा जायजा लिया। यह हनी बी नेटवर्क के ही प्रयास थे कि मनसुख भाई को अपनी बुलेट सांटी को एडवांस लेवल पर डेवलप करने में मदद मिली। उन्होंने मनसुख भाई के इस आविष्कार के लिए पेटेंट भी फाइल किया और आज भारत व अमेरिका में इस तकनीक पर उन्हें पेटेंट मिला हुआ है।
फ़िलहाल, उनके इस बुलेट सांटी की कीमत लगभग 1 लाख 70 हज़ार रुपये है। सृष्टी संगठन के प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर चेतन पटेल बताते हैं, “जब मनसुख भाई को पेटेंट मिला तो उन्होंने कहा कि अगर कोई बड़ी कंपनी उनकी इस तकनीक को लेती है तो वह रॉयल्टी लेंगे। पर अगर कोई आम मैकेनिक या फिर किसान उनकी इस तकनीक का इस्तेमाल किसान भाइयों के लिए करना चाहते हैं तो उन्हें कोई रॉयल्टी नहीं चाहिए।”
पर विडम्बना की बात यह है कि अब तक भी कोई बड़ी कंपनी इस तकनीक के लिए आगे नहीं आई है। किसी भी बड़ी कंपनी ने इसमें इन्वेस्ट नहीं किया है जबकि अगर इस तकनीक को बड़े लेवल पर बनाया जाए तो इसकी कीमत भी कम होगी और यह ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचेगा भी।
मनसुख भाई एक सीरियल इनोवेटर हैं। उन्होंने बुलेट सांटी के बाद और भी आविष्कार किए, जिनमें साइकिल पर रखकर इस्तेमाल होने वाले स्प्रेयर और सीड-ड्रिबलर शामिल है।
साइकिल स्प्रेयर:
साल 2005 में उन्होंने मात्र 8 दिनों में यह इनोवेशन किया। वह बताते हैं कि इसके लिए उन्होंने एक साइकिल के पिछले पहिये में थोड़े बदलाव किए और फिर उस पर स्प्रेयर को एडजस्ट किया। यह साइकिल स्प्रेयर किसानों के लिए काफी उपयोगी है। सबसे अच्छी बात है कि इससे आराम से पूरे खेत में स्प्रे हो जाता है और बहुत कम लागत आती है।
मात्र तीन घंटे में किसान 4 एकड़ में स्प्रे कर सकते हैं। टैंक की क्षमता 25 से 30 लीटर है। इसमें ज्यादा मजदूरों की भी आवश्यकता नहीं होती है। स्प्रेयर काम खत्म होने के बाद साइकिल से निकाला जा सकता है और साइकिल को उपयोग में लिया जा सकता है। इस आविष्कार के लिए भी मनसुख भाई को नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन से सम्मान मिला है और इस पर उनका पेटेंट भी है।
सीड कम फ़र्टिलाइज़र डिबलर
स्प्रेयर के बाद उन्होंने एक सीड कम फ़र्टिलाइज़र डिबलर बनाया। इससे बुवाई और खेतों में फ़र्टिलाइज़र देने का काम बड़ी ही आसानी से हो जाता है। यह बीजों को समान रूप से बोता है और समान रूप से ही सिर्फ जड़ों पर फ़र्टिलाइज़र डालता है। इससे न तो सीड की बर्बादी होती है और न ही उर्वरकों की।
मनसुख भाई के आविष्कारों की सबसे अच्छी बात यह है कि उन्हें किसानों की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। सृष्टी की मदद से मनसुख भाई की ये तकनीकें दूसरे देशों में भी पहुंची हैं। उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाने और वहां के किसानों से विचार-विमर्श करने का मौका भी मिला। मनसुख भाई कहते हैं कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें राष्ट्रपति से सम्मान मिलेगा और किसी बाहर देश जाने का मौका मिलेगा।
मनसुख भाई की बुलेट सांटी की तकनीक का इस्तेमाल कर आज 150 सामान्य फेब्रिकेटर मशीन बना रहे है। 5 हज़ार परिवार को इस टेक्नोलॉजी से रोजगारी मिल रही है और लगभग 20 हजार किसान इसका इस्तमाल कर रहे है। गुजरात के ही उपेन्द्र भाई राठौर ने इन तकनीक पर आधारित सनेडो ट्रैक्टर का निर्माण किया है, जो किसानों के काफी काम आ रहा है।
मनसुख भाई का उद्देश्य किसानों के लिए काम करते रहना है। वह कृषि के क्षेत्र में ऐसे उपकरण लोगों को देना चाहते हैं जो उनके काम को सस्ता और आसान बनाएं।
अगर आप मनसुख भाई की इस तकनीक के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो 97265 18788 पर पता कर सकते हैं!
तस्वीर साभार: NIF और सृष्टी
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