हमारे देश में गुड़ को प्राकृतिक मिठाई के तौर पर जाना जाता है। यह स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धक गुणों से भी परिपूर्ण है। यही वजह है कि यह सदियों से भारतीय खान-पान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, लेकिन बीते कुछ वर्षों के दौरान चीनी मिलों की संख्या बढ़ने के कारण इसका उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है। इन्हीं चुनौतियों के बीच एक युवा किसान ने आधुनिक विधि से गुड़ बनाकर लाभ कमाने का एक नायाब तरीका ढूंढ़ा है।
यह कहानी है उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिला के चंदपुरी गाँव के रहने वाले 32 वर्षीय सोहन वीर की है, जो पिछले 8 वर्षों से गुड़ बना रहे हैं।
सोहन ने द बेटर इंडिया को बताया, “पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक जमीन पर गन्ने की खेती होती है। हमारा परिवार भी लगभग 9 एकड़ जमीन पर गन्ने की खेती करता है। इसी को देखते हुए मेरे पिताजी ने वर्ष 2010 में डेढ़ लाख रुपए की लागत से एक गुड़ प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की, जिससे उन्हें सालाना करीब 70 हजार रुपए की कमाई हुई।”
नौकरी की चिंता छोड़ पिता के कारोबार को दी बुलंदी
पिता द्वारा स्थापित गुड़ प्रोसेसिंग यूनिट से जुड़ने से पहले सोहन ने 2008 में मेरठ स्थित चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से कृषि में एमएससी की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्हें एक पेस्टीसाइड कंपनी में नौकरी करने का मौका मिला लेकिन, उन्होंने एमबीए करने के लिए नौकरी छोड़ दी। पढ़ाई के दौरान ही उन्हें अपने पिता के कारोबार को आगे बढ़ाने का विचार आया।

इसके बारे में सोहन कहते हैं, “साल 2010 में, मेरठ में एमबीए करने के दौरान मुझे अहसास हुआ कि कृषि आधारित व्यवसायों में अपार संभावनाएं हैं, इसलिए आगे चलकर मैंने नौकरी की जगह अपने पिताजी के कारोबार को आगे बढ़ाने का फैसला किया और 2012 में इससे जुड़ गया।”
वह आगे बताते हैं, “मेरे पिताजी पहले परम्परागत तरीके से गुड़ बनाते थे और बागडोर अपने हाथों में लेने के बाद मैंने सबसे पहले कुछ बुनियादी तरीकों को बदला। जैसे कि हमने गन्ने के रस को जमा करने के लिए बेहद सस्ते दर पर उपलब्ध सीमेंट के कंटनेरों को लाया। जिससे उत्पादन में लगभग 40% की बढ़ोत्तरी हुई।”
अब होती है लाखों रुपए की कमाई
सोहन अपने गुड़ प्रोसेसिंग यूनिट को सितंबर से अप्रैल तक चलाते हैं। उनकी यूनिट में प्रति घंटे 120 किलो गुड़ का उत्पादन होता है, जबकि हर साल 1200 क्विंटल गुड़ का उत्पादन होता है। वह अपने उत्पादों को खुदरे तौर पर स्थानीय बाजार में, और सौ किलो के थोक भाव पर, घर से 8 किलोमीटर दूर मुजफ्फरनगर मंडी में बेचते हैं। इससे सोहन को हर नौ महीने में 10 लाख रुपए की आय होती है, जिसमें उन्हें लगभग डेढ़ लाख रुपए की बचत होती है।
सफर आसान नहीं था
सोहन के पिता ने जब गुड़ प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की तो उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था। इसके बारे में वह कहते हैं, “मेरे पिताजी को इस इकाई को बनाने के लिए बैंक से ऋण लेना पड़ा, जिसमें काफी दिक्कतें आई। साथ ही, इसे चलाने के लिए छह से आठ मजदूरों की जरूरत होती है और नियमित तौर पर इतने मजदूरों का इंतजाम करना मुश्किल होता है।”
इसके अलावा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चीनी मीलों और क्रेशरों की संख्या काफी है। ऐसे में सोहन को अपने गुड़ की गुणवत्ता का हमेशा ध्यान रखना पड़ता है।
सौ से अधिक गन्ना किसानों से जुड़े
अपनी यूनिट में गन्ने की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सोहन 100 से अधिक स्थानीय गन्ना किसानों से जुड़े हुए हैं।
उन्होंने कहा, “मैं किसानों से लगभग 300 रुपए प्रति क्विंटल की दर से गन्ना खरीदता हूँ। इस दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि यदि गन्ना खराब हुआ तो इसका सीधा असर गुड़ की गुणवत्ता और मात्रा पर पड़ता है। इसके अलावा, गन्ने का मूल्य भी काफी अनिश्चित होता है, क्योंकि यह पूरी तरह बाजार पर निर्भर है।”
भविष्य की योजना
अपने भविष्य की योजनाओं को लेकर सोहन कहते हैं, “मैं जल्द ही जैविक विधि से गन्ने की खेती करने की योजना बना रहा हूँ, क्योंकि आज के दौर में जैविक उत्पादों की माँग काफी ज्यादा है। जैविक गुड़ बनाने से हमारी आय 2.5 गुना अधिक होने की उम्मीद है। इसके साथ ही अपनी प्रसंस्करण इकाई को और बेहतर बनाने के लिए भविष्य के उन्नत तकनीकों को अपनाता रहूँगा, ताकि अपने कारोबार को और आगे बढ़ा सकूँ।”
जब देश में चीनी मिल उत्पादित गन्ने की पिराई करने में पूरी तरह सक्षम नहीं है और गन्ना किसानों की हालत दिन-प्रतिदिन नाजुक होती जा रही है, ऐसी स्थिति में सोहन जैसे युवाओं के प्रयासों के जरिए गुड़ बनाना एक बेहतर विकल्प हो सकता है। इससे किसानों को अपनी फसल और आमदनी को सुरक्षित करने में मदद मिलेगी। द बेटर इंडिया सोहन के जज्बे को सलाम करता है।
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