पूरी दुनिया आज जहां कोविड-19 महामारी से जूझ रही है, वहीं इसके साथ कई और परेशानियाँ भी सामने आ रही हैं, जिनमें से सबसे बड़ी परेशानी है कोरोना वेस्ट। जी हाँ, मास्क, पीपीई किट, और ग्लव्स आदि इस्तेमाल करना हमारी आज की ज़रूरत है। लेकिन डिस्पोज होने के बाद यह सारा वेस्ट लैंडफिल में पहुँचता है जो पर्यावरण के लिए हानिकारक साबित हो रहा है।
महामारी को लेकर तो कोई निश्चित तौर से नहीं कह सकता कि यह कब थमेगी। लेकिन इस कचरे के प्रबंधन पर हम ज़रूर काम कर सकते हैं जैसे गुजरात के बिनीश देसाई कर रहे हैं।
बिनीश को भारत का रीसायकल मैन कहा जाता है और कहें भी क्यों न, आखिर यह आदमी वेस्ट को फिर से इस्तेमाल करके बिल्डिंग मटेरियल बनाने में माहिर जो है।
बिनीश, बीड्रीम (BDream) नाम की कंपनी के संस्थापक हैं। वह इंडस्ट्रियल वेस्ट को सस्टेनेबल बिल्डिंग मटीरियल बनाने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं। उनका पहला इनोवेशन पेपर मिल से निकलने वाले कचरे को रीसायकल करके पी-ब्लॉक ईंट बनाना था। अब उन्होंने उसी कड़ी में कोरोना वेस्ट जैसे कि इस्तेमाल किए हुए मास्क, ग्लव्स और पीपीई किट से भी पी-ब्लाक 2.0 ईजाद किया है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (Central Pollution Control Board) द्वारा सबमिट एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत एक दिन में 101 मीट्रिक टन बायोमेडिकल वेस्ट प्रोड्यूस कर रहा है और ये सिर्फ़ कोरोना से जुड़ा वेस्ट है, इसके अलावा हमारे देश में एक दिन में 609 मीट्रिक टन बायोमेडिकल कूड़ा इकट्ठा होता है।
बिनीश ने द बेटर इंडिया को बताया, “लोग ज़्यादा से ज़्यादा सिंगल यूज़ मास्क का उपयोग कर रहे हैं। एक बार इस्तेमाल होने के बाद ये मास्क कूड़े के ढ़ेर में शामिल हो जाते हैं। तो मैंने सोचा क्यों न मैं इस वेस्ट से भी ईंटें बनाने का काम शुरू करूं?”
पी-ब्लॉक 2.0:
इस ईंट को बनाने में 52 % तक PPE मटेरियल, 45% गीले कागज़ के स्लज और 3% गोंद का इस्तेमाल हुआ है। बिनीश के मुताबिक, बायोमेडिकल वेस्ट से ईंट बनाने की प्रक्रिया वैसी ही है जैसे वह पेपर मिल के वेस्ट से बना रहे थे। उन्होंने ऐसे पीपीई किट, मास्क, ग्लव्स और हेड कवर्स को इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें बुनकर नहीं बनाया गया है। उन्होंने इन पर सबसे पहले काम अपनी होम लैब में किया और फिर अपनी फैक्ट्री में कुछ ईंटें बनाईं।

जब वह सफल रहे तो उन्होंने इन ईंटों को एक स्थानीय लैब में टेस्टिंग के लिए भेजा। वह कहते हैं, “हम महामारी की वजह से इन्हें नेशनल लैब में नहीं भेज पाए। लेकिन अभी भी एक सरकारी लैब से ही हमने टेस्टिंग कराई है। प्रोटोटाइप टेस्टिंग में सभी क्वालिटी टेस्ट को पास किया है।”
ईंट का साइज़ 12 x 8 x 4 इंच है और एक स्क्वायर फुट ईंट बनाने के लिए 7 किलोग्राम बायोमेडिकल वेस्ट का इस्तेमाल हुआ है। बिनीश का दावा है कि ये वॉटर-प्रूफ़ भी हैं, ज़्यादा भारी भी नहीं और आग से भी बचाव करती हैं। एक ईंट की कीमत 2.8 रुपये है।
कैसे होगा वेस्ट कलेक्शन:
बिनीश सितंबर से यह ईंटे बनाना शुरू करेंगे और इसके लिए वह अस्पताल, स्कूल, सैलून, बस स्टॉप और अन्य सार्वजानिक स्थानों से बायोमेडिकल वेस्ट इकट्ठा करेंगे, जिसके लिए हर जगह इको-बिन रखी जाएगी। इन बिन्स में एक मार्क होगा जो इसके पूरे भरने पर आपको सूचित करेगा।
इसके बाद, लगभग 3 दिनों तक इसे बिना छुए रखा जाएगा। तीन दिन बाद इसे पूरे वेस्ट को अच्छे से डिसइंफेक्ट किया जाएगा। इसके बाद इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर इसे कागज की स्लेज और गोंद के साथ मिलाकर ईंट बनाई जाएगी।
इस पूरी प्रक्रिया को शुरू करने के लिए बिनीश और उनकी टीम काम कर रही है और अलग-अलग सरकारी प्रशासनों से बात की जा रही है। उम्मीद है जल्द ही उनका काम शुरू होगा। अगर आप इस बारे में जानना चाहते हैं तो बिनीश को b.ecoeclectic@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं!
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