पिछले कुछ सालों में लोगों की जीवनशैली में भारी बदलाव हुआ है। लेकिन समय फिर बदल रहा है। फास्ट फैशन, फास्ट फूड और तेजी से बढ़ते उपभोक्तावाद से लोग अब बाहर निकल रहे हैं और आत्मनिर्भर जीवन शैली की ओर बढ़ रहे हैं। यही वजह है कि लोगबाग शहरी बागवानी या फिर टैरेस गार्डनिंग के जरिए ऑर्गेनिक और नैचुरल टेक्नोलॉजी को जीवन में शामिल कर रहे हैं।
ऐसी ही एक कहानी केरल के उमा महेश्वरन और उनकी पत्नी राजश्री की है। तिरुवनंतपुरम के विलावोरक्कल में पिछले 12 सालों से अपनी 0.2 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। उनका पूरा परिवार मिलजुल कर खेती का काम करता है।
60 वर्षीय उमा, वेल्लयानी कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर के डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी के प्रोफेसर हैं। उमा ने द बेटर इंडिया को बताया, “अपने दम पर खेती करने में बहुत मेहनत लगती है। इसलिए परिवार की मदद के अलावा जमीन को समतल करने और जुताई के लिए मैं पास के कृषि भवन से मदद लेता हूँ। हम अपनी फसलों की खेती के लिए अधिकांश पौधे कृषि भवन से ही लेते हैं।”
कृषि निदेशालय, तिरुवनंतपुरम में प्लांट प्रोटेक्शन के संयुक्त निदेशक के रूप में काम करने वाली उमा की पत्नी राजश्री कहती हैं, “पिछले साल हमने 400 किलो चावल उगाए, जो हमारे लिए बहुत बड़ी जीत थी। धान की खेती में केवल 3 से 4 महीने लगते हैं और नवंबर में इसकी कटाई की जाती है। साल के बाकी समय हम उस भूमि पर दाल की खेती करते हैं जिससे आमतौर पर हमें हर साल 10 किलो दाल की उपज मिलती है।”

यह परिवार 0.2 एकड़ जमीन में धान की खेती करता है और अपने घर के आसपास के .06 एकड़ जमीन में अदरक, हल्दी, काली मिर्च, टमाटर, भिंडी, हरी मिर्च और फूलगोभी जैसी सब्जियों के साथ-साथ जरूरी मसाले भी उगाता है।
उमा कहते हैं, “हम ठंडे क्षेत्रों में उगने वाली सब्जियाँ जैसे आलू, प्याज और लहसुन के अलावा टमाटर, बैंगन, करेला, बीन्स, भिंडी, टेपिओका और चेना एवं चेम्बू जैसे स्थानीय कंद उगाते हैं। इन पौधों को ग्रो बैग में छत पर रखा जाता है।”
त्रिशूर स्थित एक बैंक में काम करने वाले उमा के बेटे आनंद भी बचपन से ही खेती के काम में हाथ बंटाते रहे हैं। अपने माता-पिता की तरह उन्हें भी खेती में गहरी दिलचस्पी है।
आनंद कहते हैं, “यह हमारे लिए जीवन जीने का एक तरीका बन गया है। मैं अभी 9 से 5 की नौकरी कर रहा हूँ, लेकिन छुट्टियों में घर आना और खेतों में परिवार की मदद करना अच्छा लगता है। मुझे लगता है कि देश का हर परिवार खेती से अपनी जरूरत की चीजें पैदा कर सकता है। खासतौर से कोविड-19 महामारी के दौरान अपनी उपज पैदा करना हमारे लिए सुरक्षित विकल्प है।”

आनंद की पत्नी अपर्णा भी खेती में काफी दिलचस्पी लेती है। आनंद कहते हैं, “अपर्णा का इससे पहले खेती से कोई लेना देना नहीं था लेकिन जब हम तिरुवनंतपुरम में घर पर थे, तो वह एक हफ्ते में काफी कुछ सीख गई। शुरुआत में थोड़ी मुश्किलें आती हैं लेकिन यह सबसे आसान चीजों में से एक है और यह आपके किराने में खर्च होने वाले बहुत सारे पैसे की बचत में भी मदद करता है।”
पड़ोसी की करते हैं सहायता
हमने उमा के पड़ोस में रहने वाली गृहिणी चित्रा सियासधरन से बात की। वह कहती हैं, “राजश्री और उमा का खेती के प्रति लगन और समर्पण देखकर मुझे हमेशा ही हैरानी होती है। वह हर दिन सुबह 4.30 बजे उठकर धान के खेतों में खरपतवार निकालते हैं और काम पर जाने से पहले अपने पौधों को पानी देते हैं। राजश्री और उमा हर साल अपनी फसल का कुछ हिस्सा हमें भी देते हैं ”

उमा के घर में मार्केट से बहुत कम चीजें खरीद कर आती हैं। जिसके कारण घर में प्लास्टिक जमा नहीं होता है। राजश्री कहती हैं, “हमारे घर में प्लास्टिक के कैरी बैग बहुत कम हैं। प्लास्टिक के पैकेट वाले स्नैक्स के अलावा मुझे नहीं लगता कि मेरे घर के आसपास किसी भी तरह की एक्स्ट्रा प्लास्टिक पड़ी है।”
यह दंपति पंचायत के साझे तालाब से पंप के जरिए पानी लेकर अपने पौधों की सिंचाई करता है जो कि इस क्षेत्र के सभी किसानों की मदद के लिए पंचायत द्वारा लगाया गया है।
मधुमक्खी पालन भी शुरू किया
इस परिवार ने हाल ही में शहद का उत्पादन करने और अपनी छत की फसलों के क्रॉस-पॉलीनेशन में मदद करने के लिए मधुमक्खी पालन शुरू किया है। उन्होंने पौधों के लिए जैविक खाद बनाने के लिए रसोई से बायोवेस्ट इकट्ठा करने के लिए वर्मीकम्पोस्ट भी लगाया है।
उमा बताते हैं, “कई मौसमी कीट फसलों पर हमला करते हैं, लेकिन कभी भी हमने रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का सहारा नहीं लिया। यह हमारी खेती का मकसद नहीं है। हम लहसुन, नीम और वर्मीकम्पोस्ट से बने जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं।”
कोविड-19 जैसे मौजूदा परिस्थिति में सेहत और सुरक्षा के लिहाज से उमा और राजश्री की खेती के तरीके को अपनाना भारतीय घरों के लिए बहुत फायदेमंद होगा। आने वाले समय में बेशक खेती के प्रति लोगों का रूझान और ज्यादा बढ़ेगा।
मूल लेख- SERENE SARAH ZACHARIAH
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