यह कहानी हरियाणा के करनाल में रहने वाले विवेक चौधरी की है, जिन्होंने कानून की पढ़ाई की लेकिन अब वह जैविक तरीके से खेती कर एक बिजनेस मॉडल बनाकर समाज में मिसाल पेश कर रहे हैं।
विवेक ने द बेटर इंडिया को बताया, “ग्रैजुएशन के बाद कानून की पढ़ाई भी की है और बतौर अधिवक्ता काम भी किया। लेकिन कहते हैं न कि अनुभव के साथ-साथ आपको जीवन का सच समझ में आता है, यही मेरे साथ हुआ। लोगों से चर्चा करने के दौरान और खुद इंटरनेट आदि पर पढ़कर मुझे समझ में आया कि हम रसायन युक्त सब्जी और अनाज खा रहे हैं और यही वजह है कि हर कोई बीमारी की चपेट में आता जा रहा है।”
इसके बाद ही विवेक ने जैविक खेती की तरफ मुड़ने का फैसला किया। करनाल के पास ही एक ग्रामीण इलाके में उनकी लगभग 10 एकड़ ज़मीन थी और उन्होंने उसी ज़मीन पर जैविक खेती करने का मन बनाया। इसके लिए उन्होंने एग्रीकल्चर कॉलेज और अन्य संस्थानों में ट्रेनिंग भी ली।
विवेक ने लगभग ढ़ाई साल पहले जैविक खेती की तरफ रुख किया। हालांकि, राह इतनी आसान नहीं थी। उन्हें उनके घरवालों ने भी मना किया कि खेती जितनी आसान दिखती है, उतनी है नहीं। लेकिन विवेक ने मन बना लिया था।

शुरू किया तारा ऑर्गेनिक फार्म:
“मुझे खेती का बिजनेस मॉडल पेश करना था। दरअसल किसान जैविक फसल उगाने से इसलिए कतराते हैं क्योंकि उन्हें उनकी मेहनत के मुताबिक बाज़ार नहीं मिलता। इसलिए मेरा उद्देश्य स्पष्ट था कि कोई ऐसा मॉडल मैं बनाऊं जिससे मेरे परिवार के साथ-साथ दूसरे परिवारों तक जैविक उत्पाद पहुंचे,” उन्होंने आगे कहा।
विवेक आगे बताते हैं कि खेती की ट्रेनिंग लेना और सीखना अलग बात है लेकिन जब आप खुद करते हैं तब आपको समझ में आता है कि हक़ीकत क्या है। शुरू के एक साल तो उन्होंने नुकसान भी झेला क्योंकि उनके लिए हर चीज़ नई थी। किसी फसल में अगर कोई बीमारी लग गई तो उन्हें काफी वक़्त लगता था समझने के लिए। पहली बार में उत्पादन कम हुआ लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह सीखते रहे और कोशिश करते रहे। आज वह अपने 10 एकड़ के फार्म में मौसमी सब्जी, फल, मसाले, और कुछ दाल-अनाज उगा रहे हैं।

उन्होंने अपने फार्म का नाम ‘तारा ऑर्गेनिक फार्म’ रखा है और इसी नाम से वह प्रोसेसिंग करके अपने प्रोडक्ट्स भी बेच रहे हैं। उनके फार्म की सबसे ख़ास बात है उनका मार्केटिंग मॉडल। पहले साल में ही विवेक को समझ में आ गया था कि अगर उन्हें जैविक खेती में कामयाब होना है तो खुद ग्राहकों से जुड़ना होगा। किसान और ग्राहकों के बीच में से अगर बिचौलियों को हटाया जाए तो ही किसान को उसकी लागत और लाभ मिल सकता है।
सब्ज़ियों को पहुँचाया सीधा ग्राहकों तक:
सबसे पहले विवेक ने शहर में उन स्थानों के बारे में पता किया, जहाँ लोग जैविक उत्पादों को लेकर जागरूक हैं। उन्होंने करनाल के तीन अच्छे रिहायशी सेक्टर में अपनी रेहड़ी लगवाईं। उन्होंने दो मोटरसाइकिल बेस्ड रेहड़ी शुरू करवाईं, जिन पर अपने फार्म का बैनर लगवाया। इससे दो और लोगों को रोजगार मिला और साथ ही सब्ज़ियाँ सीधा ग्राहकों तक पहुँचने लगी।
“अगर लोगों को उनके घर में ही सब्ज़ी मिल जाए और वह भी जैविक तो इससे अच्छा और क्या है? इसलिए मैंने करनाल के तीन सेक्टर में फेरी लगवाने का काम शुरू करवाया। सुबह-शाम मेरे लोग फेरी लगाते हैं और दिन की पूरी सब्ज़ी बिक जाती है,” उन्होंने कहा।

विवेक बाज़ार की मांग के हिसाब से ही सब्जी उगाते हैं। बेमौसम वह कोई सब्ज़ी नहीं उगाते क्योंकि वह इस बात को समझ चुके हैं कि खान-पान ऋतुओं के हिसाब से होना चाहिए। सही समय पर सही खाने से ही हमारा स्वास्थ्य सही रहता है।
विवेक कहते हैं, “जब लोग लालच के चक्कर में बेमौसम सब्जी उगाते और बेचते हैं, तभी स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होती है। मैं हर मौसम में लोगों की मांग के हिसाब से सब्जी उगाता हूँ।”
किसान समूहों से जुड़कर शुरू की प्रोसेसिंग:
विवेक ने जैविक तरीके से खेती करने वाले किसानों का एक समूह बनाया है। करनाल और उसके आस-पास के इलाकों में बहुत से किसान जैविक खेती कर रहे हैं। पिछले एक-डेढ़ साल में उन्होंने जैविक किसानों के साथ भी अपने नेटवर्क को काफी मजबूत किया है।
व्हाट्सअप के ज़रिए वह देश के अलग-अलग हिस्सों के लगभग 500 जैविक किसानों से जुड़े हुए हैं। स्थानीय स्तर पर भी लगभग 20 किसानों के साथ उनका समूह है। किसान समूह का सबसे बड़ा फायदा यह है कि किसान अपने यहाँ ग्राहकों की मांग के हिसाब से आपस में भी लेन-देन कर लेते हैं। विवेक बताते हैं कि सब्ज़ियों के साथ-साथ वह अमरुद, अनार, आम जैसे फलों की बागवानी भी करते हैं। आम के पेड़ के नीचे वह हल्दी, एलोवेरा जैसी फसल उगा रहे हैं। इसके अलावा, 2 एकड़ ज़मीन पर वह गेहूँ और धान की खेती करते हैं।

इसके अलावा, अगर उनके ग्राहकों को जैविक दाल, बाजरा या रागी चाहिए तो वह इन फसलों को उगाने वाले अपने साथी किसान से खरीदकर आपूर्ति कर देते हैं। इसी तरह अगर किसी और किसान को अपने ग्राहकों के लिए चावल, हल्दी जैसा कुछ चाहिए तो वह विवेक से खरीद लेते हैं।
“किसानों का यह आपसी तालमेल भी बाज़ार में उनकी अच्छी पकड़ बनाता है। अगर हम किसान एक-दूसरे से बातचीत करके आपसी समझ से खेती करें तो लोगों की सभी मांगों को आसानी से पूरा कर सकते हैं और वह भी सही दाम में। अगर सभी किसान सिर्फ हल्दी ही उगाना शुरू कर दे तो बात नहीं बनेगी। इसलिए ज़रूरी है कि गाँव में किसान समूह बनाकर खेती करें,” उन्होंने कहा।
इस तरह से उनका प्रोसेसिंग का काम भी शुरू हुआ। विवेक बताते हैं कि सब्ज़ियों के बाद लोगों ने जब ग्रोसरी प्रोडक्ट्स की माँग की तब उन्हें प्रोसेसिंग का ख्याल आया। उन्होंने अपने साथ किसानों से मिर्च, जीरा, दाल आदि खरीदा। उनके लिए एकदम से प्रोसेसिंग यूनिट सेटअप करना मुश्किल था। इसलिए उन्होंने पहले पैकेजिंग पर ध्यान दिया और प्रोसेसिंग के लिए स्थानीय प्रोसेसिंग यूनिट्स से काम लिया।
विवेक स्थानीय प्रोसेसिंग यूनिट्स में हल्दी, मिर्च का पाउडर, आटा, दाल, शक्कर, गुड, कैचअप, तेल आदि की प्रोसेसिंग करते हैं।

खोला ग्रोसरी स्टोर भी:
प्रोसेसिंग का काम शुरू होने के बाद, विवेक के लिए घर से प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग करना मुश्किल था। इसलिए उन्होंने शहर के बाज़ार में एक स्टोर किराए पर लिया और यहाँ ‘तारा ऑर्गेनिक फार्म स्टोर’ के नाम से इसे शुरू किया।
रेहड़ियों के माध्यम से उनके स्टोर की भी मार्केटिंग हुई। जो लोग उनसे सब्जियां खरीद रहे थे, उन्होंने उनके स्टोर भी आना शुरू किया। धीरे-धीरे उनका स्टोर भी चल पड़ा और अब करनाल में उनका स्टोर अपनी एक पहचान बना चुका है। लोग उन्हें ऑनलाइन सामान की लिस्ट भेजकर सामान की होम-डिलेवरी भी कराते हैं।
“हमने जैविक के नाम पर उत्पादों को बहुत महँगा नहीं रखा हुआ है। हमारी कोशिश यही है कि लोगों तक सही दाम में जैविक उत्पाद पहुँचे ताकि उन्हें अच्छे खाने का महत्व समझ में आए। इसके बावजूद भी मुझे कोई घाटा नहीं हो रहा है क्योंकि मुझे अपने उत्पादों को बेचने के लिए किसी बिचौलिए को कमीशन देना नहीं पड़ता है,” उन्होंने बताया।
अपनी बचत के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं कि उन्हें फल-सब्जियों की खेती और बिक्री से प्रति एकड़ लगभग डेढ़-दो लाख रुपये की बचत होती है। इस तरह से वह साल में लगभग 15 लाख रुपये की कमाई कर लेते हैं। वहीं प्रोसेसिंग और स्टोर से भी उन्हें 15-16 लाख रुपये की बचत हो रही है।

अपनी 10 एकड़ की ज़मीन से उनकी सालाना कमाई 25 से 30 लाख रुपये पहुँचती है। वह कहते हैं कि उनकी सफलता का सबसे बड़ा कारण है उनका खुद ग्राहकों से जुड़ना। इसके साथ ही, वह इस बात को भी मानते हैं कि उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी और इसलिए ही वह नुकसान के बाद भी जैविक खेती में जुटे रहे।
“लेकिन मुझमें एक कमी थी, मुझे खेती का ज्ञान नहीं था इसलिए नुकसान हुआ। पर अगर कोई किसान है और सालों से खेती कर रहा है, तो उसे जैविक तरीके से खेती ज़रूर करनी चाहिये और इसके साथ ही, वह खुद अपना मार्केटिंग मॉडल बनाने की कोशिश करे। मैं मानता हूँ कि आर्थिक स्थिति बहुत मायने रखती है लेकिन सबसे ज्यादा मायने रखता है मेहनत और विश्वास। आप अगर एकड़ में भी जैविक सब्जियां उगा रहे हैं तो खुद अपनी स्टॉल लगाकर बेचें, इससे आपको ग्राहक मिलेंगे और ज्यादा फायदा भी होगा,” उन्होंने कहा।
विवेक कहते हैं कि बाकी सभी सेक्टर की तरह खेती में आगे चलकर हाई-टेक और होम-डिलेवरी वाली होगी। इसलिए समझदारी इसी में है कि किसान भाई समय की ज़रूरत को समझते हुए खुद को आगे बढ़ाएं।
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