उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के नौवाड़ा गाँव के रहने वाले 30 वर्षीय दान सिंह रौतेला पिछले छह वर्षों से दिल्ली मेट्रो के साथ कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर काम कर रहे थे, लेकिन देशव्यापी लॉकडाउन के कारण उन्हें काम मिलना बंद हो गया। इससे निराश होकर दान सिंह गाँव लौट गए और अपनी आजीविका के लिए विकल्प तलाशने लगे।
इसी कड़ी में, उनका ध्यान अपने आस-पास मौजूद बिच्छू घास (कंडाली) पर गया, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए कई पोषक तत्व मौजूद हैं। इससे उन्होंने हर्बल टी बनाने का फैसला किया और आज वह इससे हर महीने एक लाख रूपये की कमाई कर रहे हैं।

दान ने कुमाऊं यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “लॉकडाउन के दौरान जब मैं दिल्ली से निराश होकर अपने गाँव लौटा तो कुछ काम की तलाश शुरू कर दी, इसी दौरान मेरा ध्यान बिच्छू घास पर गया। जिसका इस्तेमाल गाँव के बुजुर्ग सर्दी-खाँसी में करते थे और उस वक्त कोरोना वायरस का असर जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा था, बाजार में इस तरह के औषधीय उत्पादों की माँग बढ़ती जा रही थी। इससे मुझे बिच्छु घास से हर्बल टी बनाने का विचार आया।”
इसके बाद, मई 2020 में दान ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया।
वह बताते हैं, “शुरूआती दिनों में मैं प्रयोग के तौर पर, बाहर से आने वाले लोगों को बिच्छु घास से बनी चाय को पिलाता था और सर्दी-खाँसी, बुखार आदि के मामले में 1-2 घंटे में असर देखने को मिलने लगा।”

धीरे-धीरे दान ने अपने उत्पाद को फेसबुक, व्हाट्सएप आदि के जरिए बढ़ावा देना शुरू कर दिया। बाद में, उन्होंने अपने हर्बल टी को “माउंटेन टी” नाम दिया और आज यह अमेजन पर भी उपलब्ध है, जहाँ उन्हें दिल्ली, बिहार, राजस्थान, हिमाचल जैसे कई राज्यों से ऑर्डर आते हैं।
इस हर्बल चाय को दान 1000 रुपए प्रति किलोग्राम की भाव से बेचते हैं। आज उनके पास हर महीने 100 से अधिक ऑर्डर आते हैं, जिससे उन्हें लगभग एक लाख रुपए की कमाई होती है।
कैसे बनाते हैं हर्बल टी
दान बताते हैं, “हमारा गाँव हिमालय की वादियों में बसा है और हमारे घर के 200 मीटर की दूरी पर बड़े पैमाने पर कंडाली घास उगी हुई है। मैं वहाँ से इसे काट कर लाता हूँ और तीन दिनों तक धूप में सूखाने के बाद इसे हाथों से मसल देता हूँ, ताकि तने से पत्तियाँ अलग हो जाए। मैं बिच्छू घास से एक किलो हर्बल टी बनाने में 30-30 ग्राम लेमनग्रास, तुलसी, तेज पत्ता, अदरक आदि भी मिलाता हूँ, जिससे चाय का स्वाद बढ़ने के साथ ही इसका पोषक तत्व भी बढ़ जाता है।”

दान को अपना हर्बल टी बनाने के लिए सिर्फ एक सीलिंग मशीन की जरूरत पड़ती है, जिसका इस्तेमाल वह अपने उत्पाद के पैकिंग के लिए करते हैं।
कितना होता है लाभ
दान बताते हैं कि माउंटेन हर्बल टी से उन्हें हर महीने करीब 1 लाख रुपए की आमदनी होती है, लेकिन इसे बनाने में 3-4 लोगों की जरूरत होने के साथ ही, सभी जरूरी सामग्रियों जुटाने में करीब 40 हजार रुपए खर्च होते हैं, इस तरह उन्हें हर महीने करीब 60 हजार की बचत होती है।
गाँव में बढ़ा बिच्छु घास का व्यवहार
दान कहते हैं, “पहले, बिच्छू घास का इस्तेमाल बुजुर्गों द्वारा सर्दी-खाँसी में करने के साथ ही, इसका सेवन सब्जियों में भी किया जाता था। लेकिन, हाल के वर्षों में इसका इस्तेमाल बंद हो गया। लेकिन, जब से मैंने इसका हर्बल टी बनाना शुरू किया। इसका व्यवहार गाँव में फिर से बढ़ने लगा।”
डायबिटीज-गठिया में भी है कारगर
एक और खास बात है कि इस हर्बल टी का इस्तेमाल सर्दी-बुखार के अलावा डायबिटीज, गठिया जैसे बीमारियों में भी कारगर है।
इसके बारे में दान कहते हैं, “बिच्छू घास में विटामिन ए और सी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है, इस वजह से यह सर्दी-बुखार के साथ-साथ गठिया, डायबिटीज आदि में लाभदायक है। साथ ही, लेनमग्रास, तुलसी, दूध आदि के साथ बिच्छू घास का उपयोग, शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में और अधिक कारगर है।”
क्या है भविष्य की योजना
दान बताते हैं, “मैं 2021 के शुरुआती महीनों में कम से कम हर महीने 500 किलो हर्बल टी का कारोबार करना चाहता हूँ। इसके अलावा, मेरा दूरगामी लक्ष्य माउंटेन हर्बल टी को एक बड़े ब्रांड के रूप में स्थापित करने की है, ताकि मैं अपने क्षेत्र के कुछ और लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार दे सकूँ।”
आप दान सिंह से 9528699600 पर संपर्क कर सकते हैं।
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