जीवन का मतलब हराना और रुकता जरूर हो सकता है लेकिन मरना कभी नहीं। मुंबई के विवेक शर्मा लोगों को जीवन का यह जरूरी सबक सीखा रहे हैं। इस काम को करने की प्रेरणा उन्हें अपने जीवन के अनुभवों से मिली थी।
साल 2014 में अपने एक लौते बेटे को खोने के बाद विवेक और उनकी पत्नी के लिए भी मानो दुनिया ख़त्म ही हो गई थी। उस मुश्किल दौर में उनका मानसिक तनाव इतना बढ़ गया था कि उन्होंने कई बार खुदकुशी की कोशिश भी थी।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए विवेक ने बताया कि परिवार और दोस्तों को भी समझ नहीं आ रहा था कि कैसे उनकी मदद करें? लोग उन्हें आगे बढ़ने, खुश रहने और सब कुछ भूल जाने को कहते थे। लेकिन यह सब कुछ उन दोनों के लिए इतना आसान नहीं था।
विवेक उस दौरान मुंबई में एक अच्छी खासी कॉर्पोरेट नौकरी कर रहे थे। लेकिन जब भी वह काम पर जाते, उन्हें अपनी पत्नी की चिंता लगी रहती। अपने बेटे को खोने के बाद वह अपनी पत्नी की खोना नहीं चाहते थे इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया।
खुद को सुकून देने के लिए बाँट रहें औरो का दर्द
विवेक और उनकी पत्नी को कुछ भी करने से मन की शांति नहीं मिल पा रही थी। ऐसे में विवेक ने उन लोगों से जुड़ने का फैसला किया जो कही न कही उनकी तरह ही परेशान थे। विवेक बताते हैं कि जब उन्होंने अपने दुखो की भूलकर दूसरों से मिलना शुरू किया तब उन्हें पता चला कि उन्हीं की तरह कई लोग हैं जो जीवन से हताश हो चुके हैं।
समय के साथ उन्होंने दूसरों की तकलीफों को दूर करने को ही अपने जीवन का मकसद बना दिया। इसी काम के लिए उन्होंने अपने बेटे के नाम पर ‘Mickey-Amogh’ नाम से एक NGO की शुरुआत की। उनकी संस्था के ज़रिए उन्होंने कैंसर और डिप्रेशन से लड़ रहे लोगों की मदद करना शुरू किया।
इसके साथ ही वह अपने पॉडकास्ट और किताबें के ज़रिए भी जरूरतमंद लोगों तक पहुंच रहे हैं। आज उनका पॉडकास्ट 15 लाख लोगों तक पहुंच चुका हैं। जिसे सुनकर 800 लोगों ने उन्हें मदद के लिए सम्पर्क भी किया है।
विवेक पूरी कोशिश करते हैं कि जितना हो सके उतना लोगों की मदद करें। हताश लोगों को अंधरे से रौशनी की तरफ ले जाना ही विवेक के जीवन का लक्ष्य बन चुका है।
अगर आप भी विवेक से किसी तरह की मदद चाहते हैं तो उन्हें इस वेबसाइट या इंस्टाग्राम पेज के ज़रिए सम्पर्क कर सकते हैं।
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