अगर इन गर्मी की छुट्टियों में आप शिमला जाने की सोच रहे हैं, तो संभव है कि आप इस छोटे से होटल, बुक कैफ़े के पास से गुजरें, जो प्रसिद्ध रिज के ठीक ऊपर है। कई अन्य कैफ़े से अलग यह कैफ़े न सिर्फ स्वादिष्ट स्नैक्स और पेय देता है बल्कि अपने मेहमानों को पहाड़ों के सौंदर्य के दर्शन भी करवाता है।
आपको शायद यह भी पता लगे कि यह कैफ़े चार अपराधियों द्वारा चलाया जाता है जो कि शिमला के पास के कैठु जेल में अपनी उम्रकैद की सज़ा काट रहे हैं।
इस कैफ़े को राज्य पर्यटन विभाग द्वारा चलाया जा रहा है और इसके पीछे की मंशा इन कैदियों का पुनर्वास और समाज से जोड़ना है। इस कैफ़े को 20लाख की लागत में बनाया गया है और यहाँ करीब 40 लोगों के बैठने का प्रबंध है। यह अपने ग्राहकों को कैदियों द्वारा बनाये गए स्वादिष्ट बिस्कुट और पिज़्ज़ा खिलाते हैं।
जय चाँद, योग राज, राम लाल और राज कुमार को प्रोफेशनल द्वारा खाना बनाने और परोसने की ट्रेनिंग दी गयी है। इनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा जब इन्हें मौका मिला कि ये भी दुनिया को दिखा पाएं कि इन्होने खुद को बदलने की ठान ली है।
बिज़नस स्टैण्डर्ड को जय चाँद बताते हैं, “ इस कैफ़े नें हमे दुनिया से जुड़ने क मौका दिया। इसे हम चारो स्वतंत्र रूप से चला रहे हैं। यहाँ आने वाले सैलानियों या स्थानीय निवासियों ने हमसे बात करने पर भी कभी किसी प्रकार की शंका नहीं जतायी। वे हमारे इस बदलाव के बारे में और जानने को उत्सुक रहते हैं।”
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने हाल ही में इस कैफ़े का उदघाटन किया। यह कैफ़े लोगों के लिए सुबह 10 बजे से रात के 9 बजे तक खुला रहता है। इसके बंद होने के बाद कैदियों को वापस जेल में ले जाया जाता है।
जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है, बुक कैफ़े में हर तरह की किताबें हैं जिनमे जुल्स वर्नी और निकिता सिंह जैसे लेखकों का नाम उल्लेखनीय है। यह कैफ़े मुफ्त वाई फाई की सेवा भी दे रहा है।
इस कैफ़े तक टक्का बेंच, रिज, द मॉल, शिमला, हिमाचल प्रदेश : 171001 के पते पर पहुंचा जा सकता है।
मूल लेख – सोहिनी डे
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क्रिकेट पिच पर 24 साल के शानदार प्रदर्शन के बाद महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने चार साल पहले संन्यास ले कर अपनी शानदार पारी का अंत किया। जब जुहू ऑडिटोरियम में उनकी बायोपिक- सचिन: ए बिलियन ड्रीम्स का ट्रेलर लांच किया गया तब उनके प्रशंसकों में उनकी जिंदगी की झलक पाने के लिए गजब का उत्साह देखा गया।
फिल्म निर्माता निर्देशक जेम्स अर्नकीन हैं जो कि एमी अवार्ड्स के लिए नोमिनेट हो चुके हैं, संगीत दिया है मशहूर संगीतकार ए.आर. रहमान ने, यह बहुप्रतीक्षित फिल्म एक जीविकात्मक ड्रामा है जिसमें मूल फुटेज शामिल है और मास्टर ब्लास्टर और उनकी पत्नी अंजलि का भी अंश है। यह फिल्म पांच भाषाओं (हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, तमिल और तेलुगू) में रिलीज होगी जो सचिन के एक आम आदमी से महान क्रिकेटर बनने के सफ़र को दिखाएगी।
यहां सचिन तेंदुलकर के बारे में छह छोटी-छोटी कहानियां और उपाख्यानों की एक लिस्ट है, जो कि फिल्म में हो सकते हैं। इनमें से सचिन की किस कहानी को आप स्क्रीन पर देखने के लिए उत्साहित होंगे?
1. उनके लिए ये सिक्के हैं गोल्ड मेडल से भी ज्यादा कीमती!
सचिन को यादें सहेजने का भी काफी शौक है, उनके पास उनके पास सर डॉन ब्रैडमैन के सिग्नेचर वाला एक बैट है और उनके पास मोहम्मद अली के सिग्नेचर वाले बॉक्सिंग ग्लव्स भी हैं। लेकिन जब उनसे पुछा गया कि इन सब में से कौन सा उनके लिए सबसे अधिक प्रिय है तो उनका जवाब था सिक्के, वो सिक्के जो बचपन में उनके कोच रमकांत अचरेकर ने शिवाजी पार्क के जिमखाना मैदान में ट्रेनिंग के दौरान दिए थे।
उन दिनों अचरेकर 1 रूपए का सिक्का स्टंप पर रख दिया करते थे, और अगर सचिन पूरे सेशन में बिना आउट हुए अपनी पारी जारी रखते थे तो सिक्का उनका हो जाता था।
सचिन बचपन में काफी नटखट और शरारती थे, और ये उनके बड़े होने तक जारी रहा। सचिन के बड़े भाई अजित ने उन्हें क्रिकेट क्लास ज्वाइन कराई थी ताकि उनकी शैतानियाँ कुछ कम हो सकें। एक बार जब उनका सारा परिवार दूरदर्शन पर ‘गाइड’ फिल्म देख रहा था उस दौरान सचिन पेड़ से आम तोड़ने की कोशिश में गिर पड़े थे।
वह अपनी शरारतों के लिए मशहूर हैं, एक बार सचिन ने सौरव गांगुली के कमरे में एक पाइप डाल दिया और नल चालू कर दिया!
सचिन अपनी पत्नी अंजलि से 17 साल की उम्र में पहली बार एअरपोर्ट पर मिले थे। अंजलि उस वक्त एक मेडिकल स्टूडेंट थीं, अंजलि ने किसी तरह उनका फोन नंबर पता किया। अगले दिन अंजलि ने सचिन को फोन किया और अपना परिचय दिया, सचिन ने उन्हें पहचान लिया। सचिन को ये भी याद था कि अंजलि ने ऑरेंज रंग की टी-शर्ट भी पहनी हुई थी, अंजलि ये जान कर बहुत खुश हुईं!
फोन पर कुछ बातचीत के बाद अंजलि और सचिन ने मिलने का प्लान बनाया। चूंकि सचिन उस समय एक उभरते सितारे थे इसलिए वो कहीं बाहर नहीं मिल सकते थे। इसलिए उन्होंने सचिन के माता-पिता के घर ही मिलने का प्लान बनाया जहां अंजलि ने खुद को एक पत्रकार के रूप में पेश किया जो सचिन का इंटरव्यू करने आई थी! इस कहानी का जिक्र करते हुए सचिन ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनकी बहन को इस बात का अंदाजा हो गया था कि जरूर दाल में कुछ काला है, जब उन्होंने सचिन को अंजलि को चोकलेट देते हुए देखा तो इस बारे में उनसे पूछताछ की।
सचिन ने 2003 विश्व कप घायल तर्जनी उंगली के साथ खेला था और टूर्नामेंट खत्म हो जाने के बाद, उन्हें उंगली के ऑपरेशन के लिए अमेरिका जाना पड़ा। उन्हें इस बात की चिंता थी कि इससे उनकी बैटिंग पर कोई प्रभाव ना पड़े, उन्होंने अपने डॉक्टर से कहा कि सर्जरी के दौरान उनकी हथेली को कोई नुक्सान ना पहुंचे। वो इस बात को ले कर इतने ज्यादा चिंतित थे कि इस बारे में उन्होंने अपने अनेस्थेटिक्स से भी बात की, यहाँ तक कि सर्जरी के दौरान ही वो बीच में उठ गए और डॉक्टर को अपनी हथेली दिखने को कहा!
यह कोई पहली बार नहीं था जब खेल के लिए उनका जूनून देखा गया हो। 2004 में, जब सचिन को टेनिसकोहनी की चोट के बारे में पता चला था, वह बहुत परेशान हो गए क्यों कि वह ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट श्रृंखला खेलने में असमर्थ थे। जब उसके डॉक्टरों ने उससे पूछा कि वह इतना परेशान क्यों हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, “यह मेरी खुद की शादी के रिसेप्शन में मेरे ना होने की तरह होगा लेकिन इसके अलावा जो मैं करना चाहता हूँ उसके लिए दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है!
5. जब मास्टर ब्लास्टर ने पाकिस्तान के लिए खेला क्रिकेट
सचिन ने 16 साल उम्र में 1989 में पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की शुरुआत की। हालांकि, कुछ ही लोग ऐसे होंगे जो ये जानते होंगे कि एक खिलाड़ी के रूप में सचिन ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान मैच खेला था। वो तारीख थी 20 जनवरी 1987 और यह मैच भारत और पाकिस्तान के बीच 40 ओवर-एक-साइड मैच (ब्रेबॉर्न स्टेडियम, मुंबई) में पांच टेस्ट सीरीज (जो कि सुनील गावस्कर की आखिरी थी) से खेला था।
जब कुछ पाकिस्तानी खिलाड़ियों होटल में आराम कररने के लिए गए हुए थे, उस वक्त पाकिस्तानी कप्तान इमरान खान भारतीय कप्तान हेमंत केकेरे से पूछा कि क्या उन्हें कुछ खिलाड़ी मिल सकते हैं क्योंकि उनके पास खिलाड़ियों की कमी है। उस समय उत्साहित सचिन जो कि तीन महीने बाद अपनी जीवन के 14 साल पूरे करने वाले थे, हेमंत कुछ कह पाते उससे पहले ही सहयोग करने के लिए तैयार हो गए, जबकि अभी उनके नाम पर विचार ही चल रहा था। उन्होंने उस दिन मैदान पर 25 मिनट बिताए थे।
6. महान सलामी जोड़ी
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किसी भी युग में विशेष रूप से वनडे में क्रिकेट टीम की मजबूती और वर्चस्व, जोड़ी खोलने वाली टीमों के प्रदर्शन पर बहुत कुछ निर्भर करता है। और सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली की जोड़ी क्रिकेट की दुनिया में महान है। उन्होंने सफलतापूर्वक 129 मैचों में 6,362 रन बनाए, जिसमें 22 पचास रन की साझेदारी और 20 वीं शताब्दी की साझेदारी शामिल है, के साथ सबसे अधिक आरंभिक साझेदारी रिकॉर्ड रखे।
ये दोनों अच्छे दोस्त बने हुए हैं, जो अक्सर दोस्तानापूर्ण हंसी मज़ाक करते रहते हैं और एक दूसरे के बारे में नए नए खुलासे भी करते रहते हैं। सचिन प्यार से सौरव को बाबू मोशाय कहते हैं जबकि सौरव उन्हें छोटा बाबू कहते हैं। हाल ही में, जब एटलेटिको डी कोलकाता (सौरव की टीम) ने आईएसएल के पहले सीजन में जीत हासिल करने के लिए केरल ब्लास्टर्स एफसी (सचिन की टीम) को हराया, तो ट्रॉफी लेते वक्त सौरव सचिन को भी अपने साथ ले गए।
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उम्मीद की कविता में आज आपके लिए रामधारी सिंह दिनकर की कथाकाव्य रचना ‘रश्मिरथी’ से कुछ पंक्तियाँ हैं। ‘रश्मिरथी’ में रामधारी सिंह दिनकर महाभारत में कर्ण के कौशल और वीरता के संघर्ष को प्रमुखता से सामने लाए हैं।
कर्ण की कथा सिर्फ वीरता की कथा नहीं है, काबिलियत के संघर्ष की भी गाथा है, अपने अधिकार की भी जंग है और समाज की रूढ़ियों में फंसने वाले कौशल वीरों को उम्मीद देती कथा है।
कर्ण के चरित्र पर रचते हुए दिनकर जी ने लिखा है, ” कर्णचरित के उद्धार की चिंता इस बात का प्रमाण है कि हमारे समाज में मानवीय गुणों की पहचान बढ़ने वाली है। कुल और जाति का अहंकार विदा हो रहा है। आगे, मनुष्य केवल उसी पद का अधिकारी होगा जो उसके अपने सामर्थ्य से सूचित होगा, उस पद का नहीं जो उसके माता-पिता या वंश की देन है।”
रामधारी सिंह दिनकर बिहार के मुंगेर जिले में 1908 को एक छोटे से गांव में जन्मे और इतिहास से स्नातक की पढाई पटना कॉलेज से की। दिनकर जी ओजस्वी कवि तो थे ही वे एक स्कूल के प्रधानाचार्य, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिंदी सलाहकार जैसे पदों पर भी रहे।
तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाके,
पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखलाके।
हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,
वीर खींचकर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।
ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।
जिसके पिता सूर्य थे, माता कुंती सती कुमारी,
उसका पलना हुई धार पर बहती हुई पिटारी।
सूत वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर,
निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्भुत वीर।
तन से समरशूर, मन से भावुक, स्वभाव से दानी,
जाति गोत्र का नहीं, शील का, पौरुष का अभिमानी।
ज्ञान-ध्यान, शस्त्रास्त्र, शास्त्र का कर सम्यक अभ्यास,
अपने गुण का किया कर्ण ने आप स्वयं सुविकास।
नहीं फूलते कुसुम मात्र राजाओं के उपवन में,
अमित वार खिलते वे पुर से दूर कुञ्ज कानन में।
समझे कौन रहस्य? प्रकृति का बड़ा अनौखा हाल,
गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े क़ीमती लाल।
रश्मिरथी में एक जगह कर्ण कहता है..
“मैं उनका आदर्श, कहीं जो व्यथा न खोल सकेंगे,
पूछेगा जग, किन्तु, पिता का नाम न बोल सकेंगे।
जिनका निखिल विश्व में कोई कहीं न अपना होगा,
मन में लिये उमंग जिन्हें चिर-काल कलपना होगा।”
..और भरी सभा में अपने जाति पर सवाल उठते ही कर्ण बोले,
“पूछो मेरी जाति, शक्ति हो तो, मेरे भुजबल से,
रवि-समाज दीपित ललाट से, और कवच-कुण्डल से।
पढो उसे जो झलक रहा है मुझमें तेज-प्रकाश,
मेरे रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास।
मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का,
धनुष छोड़कर और गोत्र क्या होता है रणधीरों का?
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,
‘जाति-जाति’ का शोर मचाते केवल कायर, क्रूर।”
रामधारी सिंह दिनकर ऐसे कवि रहे जो सरकार के साथ काम करते हुए भी जरूरत के वक़्त जनता के साथ खड़े होकर सरकार का विरोध करते रहे।
शनिवार की दोपहर झमाझम बारिश के बीच पुणे के तिलक स्मारक मंदिर नाट्यगृह में लोग जुट रहे हैं। 12 बजे तक एक लंबी लाइन हाथों में टिकट लिए नाट्यगृह में कौतूहल के साथ प्रवेश करती है। लोग लगातार आ रहे हैं इसलिए नाट्य प्रस्तुति अपने निर्धारित समय दोपहर 12 बजे की बजाय1 बजे शुरू हो पाती है।
खचाखच भरे हॉल में घोषणा होती है, ‘ 19 नेत्रहीन कलाकार प्रस्तुत करते हैं नाटक ‘मेघदूत’।
…और तालियों की गड़गड़ाहट पर्दे के पीछे तैयार खड़े कलाकारों में आत्मविश्वास भर देती है।
मंच पर अभिनय, संवाद, गायन, नृत्य और दृश्य संयोजन देखकर दर्शक अपनी कुर्सियों से उछल पड़ते हैं। ऐसे कम्पोजिशन कि देखने वाले न बना पाएं।
नाटक ऐसी विधा है जिसमें सारी विधाएँ समाहित होती हैं। अभिनय के साथ साथ गीत-संगीत और नृत्य के द्वारा कहानी कही जाती है। सावी फाउंडेशन के सहयोग से 19 अंध कलाकारों ने महाकवि कालिदास के काव्य नाटक ‘मेघदूत’ का मंचन किया। स्वागत थोराट के निर्देशन में नेत्रहीन कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को अभिभूत कर दिया।
नाटक के लेखक और अनुवादक गणेश दिघे प्रस्तुति के दौरान मौजूद रहे। वे कहते हैं कि,
“जब मैंने लिखा था तब मैं इन दृश्यों में नाटक नहीं सोच पाया था जैसे इन कलाकारों ने प्रस्तुत किये हैं। मेरे लिए एकदम नया मेघदूत मेरे सामने मंचित हो रहा था।”
नाटक में नृत्य भी था और तलवारों का युद्ध भी.. बिना देखे एक-दूसरे के साथ इतना बेहतर तालमेल देखते ही बनता है।
नाटक के निर्देशक स्वागत कहते हैं, “हमें नजरिया बदलने की जरूरत है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि नेत्रहीन भी ऐसा कर सकते हैं, मैं तो कहता हूँ वे सबसे सुंदर कर सकते हैं। मैं नेत्रहीन प्रतिभाओं के प्रति समाज का नजरिया बदलना चाहता हूँ। और मैं इन्हें जितना सिखा रहा हूँ उससे कहीं अधिक सीख रहा हूँ। कलाकारों की मेहनत और उत्साह देखकर मुझे ऊर्जा मिलती है।”
पुणे के अंध कलाकारों की नाट्य प्रस्तुतियाँ देखकर आप चौंक जायेंगे। कालिदास का क्लासिक नाटक ‘मेघदूत’ के मंचन की जिम्मेदारी कई बार समर्थ नाट्य संस्थाएं भी नहीं लेतीं लेकिन नेत्रहीन कलाकारों की प्रस्तुति निःशब्द कर देती है। सावी फाउंडेशन की मदद से निर्देशक स्वागत थोराट की अटूट मेहनत से 19 नेत्रहीन कलाकार मंच पर अपनी प्रतिभा प्रस्तुत करते हैं तो नाटक के नए अर्थ सामने आते हैं।
पुणे की सावी फाउंडेशन ने नाटक का निर्माण और इन कलाकारों को तैयार किया है। इस संस्था को शहर की महिलाएं मिलकर समाज कार्य के लिए चलाती हैं। संस्था की संस्थापक सदस्य रश्मि जी बताती हैं,
“नाटक में भूमिकाएं निभाने वाले कलाकार विभिन्न संस्थाओं से जुड़े हैं। कोई बैंक में नौकरी करता है तो कोई अपनी उच्च शिक्षा पूरी कर रहा है। महाराष्ट्र के कई शहरों से इन्हें चुना गया है। 80 दिनों की दिन रात मेहनत का परिणाम है कि इन्हें मंच पर उतारा गया तो शानदार प्रस्तुति सामने आई।”
कलाकारों के लिए भी ये अनुभव सपने पुरे होने से कहीं ऊपर है। पुणे में ही बैंक में काम करने वाले और नाटक में मुख्य भूमिका निभाने वाले गौरव कहते हैं,
“मैं जब भी फिल्मों या नाटकों के बारे में सुनता था तो मन ही मन सोचता था कि काश मैं भी अभिनय करूँ लेकिन लगता था कि आँखें होतीं तो मैं जरूर अभिनेता ही बनता।
अब जबकि मुझे नाटक में मुख्य भूमिका मिली तो मैं उछल पड़ा। मेरे लिए ये सपने से भी ऊपर की बात है।”
कालिदास रचित मेघदूत क्लासिक नाटक है जिसमें नाटक का पात्र यक्ष जिसे एक साल तक अपनी प्रेयसी से दूर पर्वत पर रहने की सजा मिलती है। तब आषाढ़ के पहले दिन वह मेघों के जरिए अपनी प्रेयसी को सन्देश भेजता है। मेघों को रास्ता बताते हुए कालिदास जो लिखते हैं विश्व साहित्य में प्रकृति का ऐसा अनूठा वर्णन कहीं नहीं मिलता।
नाटक में दामिनी की भूमिका निभाने वाली तेजस्विनी भालेकर मेघदूत को महसूसते हुए बताती हैं,
“मुझे घूमने का बहुत शौक है, अपना देश, पहाड़, नदियां, समन्दर… लेकिन देख न पाने के कारण ये सपना ही रह जाता है। मुझे कालिदास के मेघदूत में भूमिका मिली जिसके कारण मैंने नाटक के संवादों और गीतों से पूरा देश घूम लिया। कालिदास ने मेघों से संवाद के जरिए नदियां, पर्वत, और गांवों का ऐसा विवरण किया है कि सब स्पष्ट चित्र बन जाते हैं। मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे मेघदूत करने को मिला.”
तेजस्विनी भालेकर
नाटक ऐसी विधा है जो सबको सींचती है। मानव की अनन्त सम्भावनाओं को उजागर करती है, इसमें कलाकार भी और दर्शक भी भावों से भर जाता है।
सावी फाउंडेशन Team with Writer and Director
सावी फाउंडेशन नेत्रहीन दिव्यांगों के लिए ब्रेल लाइब्रेरी से लेकर वोकेशनल ट्रेनिंग के कई कार्यक्रम चलाती है। महिलाओं के सामूहिक प्रयास से एक नई सामाजिक चेतना का रास्ता बन रहा है। पुणे की व्यावसायिक महिलाएं मिलकर सावी फाउंडेशन का कार्य आगे बढ़ा रही हैं। अगर आओ भी इनसे जुड़ना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाकर जुड़ सकते हैं।
और अंत में हेलन केलर की कविता की पंक्तियाँ-:
“क्या तुमने अंधेरों के खजाने में घुसकर देखा है
अपने अंधेपन को खोजो
उसमें अनगिनत मोती हैं जीवन के..”
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‘पढ़ेगा इंडिया इनिशिएटिव’ साउथ दिल्ली में सेकेण्ड हैण्ड किताबें ऐसे लोगों तक पहुंचा रहा है जिनके पास महँगी किताबें खरीदने की क्षमता और दुर्लभ किताबों तक पहुँच नहीं है।
बैंगलोर के प्रतिष्ठित कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढाई करने वाले सुशांत झा की आँखों में आखिरी साल में एक सफल कैरियर बनाने का सपना था। लेकिन, प्लेसमेंट के दौरान उन्हें किसी भी कंपनी में जगह नहीं मिली। इसके कारण बताते हुए सुशांत कहते हैं, कि क्योंकि मेरा कटा हुआ होंठ है जिससे मैं ठीक से बोल नहीं पाता।
“मैं कैम्पस प्लेसमेंट के बाद भी कोशिश करता रहा। लेकिन सारी कंपनियों में मुझे मेरी स्पीच को वजह से रिजेक्ट कर दिया। वो मुझे पहले सवाल के बाद ही रिजेक्ट कर देते थे, कभी मेरी पढाई से सम्बंधित टेक्नीकल सवाल किया ही नहीं।”
सुशांत कहते हैं।
एक साल तक नौकरी ढूंढने के बाद सुशांत ने फैसला किया कि वे आगे की पढाई पोस्ट ग्रेजुएशन करेंगे ताकि अपने स्किल्स सुधार सकें। लेकिन मैट (MAT) में अच्छा स्कोर करने के बाबजूद बिजनेस स्कूलों के इंटरव्यू में उन्हें लगातार नजरन्दाज किया गया। आखिरकार बहुत कोशिश के बाद दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में सुशांत को दाखिला मिल गया।
सुशांत ने एम बी ए में भी अच्छा स्कोर किया। लेकिन पढाई में बेहतरी ने उनके कैरियर के लिए कोई भलाई नही की। वो बताते हैं कि उन्हें तकरीबन 40 कम्पनियों से रिजेक्शन का सामना करना पड़ा।
“एमबीए करने के 2 साल बाद मैं घर पर यूँ ही खाली बैठा था। हम मध्यम परिवार से आते हैं और हमें कमाना ही पड़ता है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि एमबीए करने क्व बाद भी मुझे ये झेलना पड़ेगा।” सुशांत कहते हैं।
यही वो समय था जब सुशांत ने कुछ अपना शुरू करने की सोची। लेकिन मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं था बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी कुछ करने का मन था। सुशांत ने अपने भाई प्रशांत के साथ बातचीत की। पढ़ने के शौक़ीन भाई ने सलाह दी कि कुछ भी शुरू करो उसमें किताबें जरूर शामिल हों। उन्हें अपने इंजीनियरिंग के दिन याद आए जब छात्र एग्जाम के लिए महँगी किताबें खरीदते थे और बाद में उन्हें कबाड़ी को सस्ते दामों में बेचना पड़ता था।
उन्होंने 2014 में ‘बोधि ट्री नॉलेज सर्विसेज एंड इनिशिएटिव पढ़ेगा इंडिया इनिशिएटिव’ नाम से अपनी कम्पनी रजिस्टर करवा ली।
पढ़ेगा इंडिया इनिशिएटिव साउथ दिल्ली में सेकेण्ड हैण्ड किताबें ऐसे लोगों तक पहुंचा रहा है जिनके पास महँगी किताबें खरीदने की क्षमता और दुर्लभ किताबों तक पहुँच नहीं है।
“हमारे बचपन में, गर्मियों की छुट्टियों में हम अपनी सोसाइटी में गरीब बच्चों के लिए लाइब्रेरी खोल देते थे। इस लाइब्रेरी में हम रीडर्स डाइजेस्ट, कॉमिक और अन्य कहानियों की किताबें रखते थे। किताबों के साथ फिर से कुछ करना ऐसे लगता है जैसे बचपन लौट आया है।” सुशांत बताते हैं
भारत में एक साल में प्रति व्यक्ति 10 किलो कागज की खपत होती है। सेकेण्ड हैण्ड किताबों की बिक्री और रेंट करने से किताबों की उपलब्धता बढ़ेगी और देश में कागज की मांग में गिरावट आने की संभावनाएं बढ़ेंगी। जिससे पेड़ों की कटाई में कमी आएगी। इसके लिए उन्होंने अपनी वेबसाइट पर ‘ग्रीन कॉउंट’ नाम से एक स्केल लगाया है जो ये मापता है कि उनकी बिक्री या रेंट से कागज की मांग में कमी और उससे कम होती पेड़ों की मांग पता चलती है। एक ग्रीन कॉउंट का अर्थ है 40 ग्राम पेपर को पुनः प्रयोग में लाया गया।
“भारत में प्रति व्यक्ति कागज की मांग 10 किलोग्राम है, तो यदि 250 ग्रीन कॉउंट कमाते हैं तो एक व्यक्ति की साल भर की मांग किताबों की पुनः बिक्री से पूरी होती है। इसका मतलब है कि हर 250 ग्रीन काउंट हम कमाते हैं तो 10 किलो पेपर की मांग पूरी करते हैं। ग्रीन कॉउंट नई किताबों की मांग को पुरानी किताबों के जरिए पूरी करने की सफलता को मापता है। हम पैकेजिंग में भी कागज की बचत करते हैं उसे भी इसमें जोड़ा जाता है।”
प्रशांत बताते हैं।
पीआईआई दोनों भाइयों के बैडरूम से शुरु होकर साउथ दिल्ली के बेहतरीन ऑफिस में पहुँच गयी है, जो उन्हें जीरो इन्वेस्टमेंट से अच्छा रिटर्न दे रही है।
शुरआत में दोनों भाइयों ने दिल्ली में सेकेण्ड हैण्ड बुक्स के मार्केट पहचाने और 40-50 वेंडरों से टाई अप किया। मांग के आधार पर इन वेंडरों से किताबें बेचीं जाती थीं। जब भी कोई ग्राहक किताब ऑर्डर करता तो प्रशांत खुद उसकी डिलिवरी करते ताकि कस्टमर और कंपनी का नाम अच्छा बन जाए। ग्राहक जब किताब की क्वालिटी से संतुष्ट हो जाता है तभी उसे भुगतान करना होता है।
कोई भी अपनी पुरानी किताबें प्रयोग न होने पर बेच या डोनेट कर सकता है जैसे प्रतियोगिता की तैयारी की किताबें। ऐसी किताबें बेचने वाले के घर से बिना किसी अतिरिक्त चार्ज के कलेक्ट को जाती हैं।
योगिता गांधी पढ़ेगा इंडिया की रेगुलर ग्राहक हैं। वे अनुभव बताते हुए लिखती हैं,
“आप खुशियाँ नहीं खरीद सकते लेकिन किताबें खरीद सकते हैं और ये खुशियाँ खरीदने जैसा है। ये संस्था इसी राह पर काम कर रही है। मुझे पढ़ेगा इंडिया का ग्राहक होने पर गर्व है चाहे वो उनकी सर्विस हो या किताबें।”
पढ़ेगा इंडिया अभी साउथ दिल्ली और एन सी आर में उपलब्ध है। जल्द ही दोनों भाई इसे देश भर में फैलाना चाहते हैं। दोनों जल्द ही बेंगलूर में अपने नए आउटलेट को शुरू करने वाले हैं। इस इनिशिएटिव को हाल ही में डिपार्टमेंट ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रमोशन एन्ड पॉलिसी ने स्टार्ट अप के रूप में संस्तुत किया है और किसी इन्वेस्टर की तलाश में है।
सुशांत अभी मानते हैं कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। कहते हैं,
“मैं खुशनसीब हूँ कि ये मेरे साथ हुआ क्योंकि आपके पास एक ही ज़िन्दगी है और आपको इसी जीवन में समाज को भी कुछ वापस देना है। मैं खुश हूँ कि मुझे लोगों ने रिजेक्ट किया और मुझे ये सब करने का मौका मिला। समाज में जिस किसी को भी किसी भी वजह कमतर समझा गया, उन सबके लिए मैं कहना चाहता हूँ कि आपको मेहनत करने की जरूरत है। आपको नम्र होकर अपनी प्रतिष्ठा से समझौता करने की बजाय निष्ठता से अपने सपने पाने के लिए काम करने की जरूरत है। अगर तुम लगे रहोगे तो हमेशा आखिर में खुशियाँ तुम्हारा इंतज़ार करती मिलेंगी।”
अगर आप पढ़ेगा इंडिया के बारे में और जानना चाहते हैं तो इस लिंक पर जा सकते है।
प्रेमचन्द उन साहित्यकारों में रहे हैं जिनकी लेखनी और जीवन में कोई अंतर नहीं रहा। उन्होंने गांधी जी के कहने पर नौकरी छोड़ दी थी। वे कहते रहे कि मेरा भाग्य दरिद्रों के साथ सम्बद्ध है। मैं साहित्य और स्वराज के लिए कुछ करते रहना चाहता हूँ।
प्रेमचन्द जी के जन्मदिवस पर दो पत्र यहां पढ़ सकते हैं जो उन्होंने बनारसी दास चतुर्वेदी को लिखे थे, उनमें उनका व्यक्तित्व साफ़ झलकता है।
पहला पत्र उन्होंने 3 जुलाई 1930 में लिखा:-
“मेरी आकांक्षाएं कुछ नहीं है। इस समय तो सबसे बड़ी आकांक्षा यही है कि हम स्वराज्य संग्राम में विजयी हों। धन या यश की लालसा मुझे नहीं रही। खानेभर को मिल ही जाता है। मोटर और बंगले की मुझे अभिलाषा नहीं। हाँ, यह जरूर चाहता हूँ कि दो चार उच्चकोटि की पुस्तकें लिखूं, पर उनका उद्देश्य भी स्वराज्य-विजय ही है। मुझे अपने दोनों लड़कों के विषय में कोई बड़ी लालसा नहीं है। यही चाहता हूं कि वह ईमानदार, सच्चे और पक्के इरादे के हों। विलासी, धनी, खुशामदी सन्तान से मुझे घृणा है। मैं शान्ति से बैठना भी नहीं चाहता। साहित्य और स्वदेश के लिए कुछ-न-कुछ करते रहना चाहता हूँ। हाँ, रोटी-दाल और तोला भर घी और मामूली कपड़े सुलभ होते रहें।”
दूसरा पत्र उन्होंने 1 दिसम्बर 1935 में लिखा:-
“जो व्यक्ति धन-सम्पदा में विभोर और मगन हो, उसके महान् पुरुष होने की मै कल्पना भी नहीं कर सकता। जैसे ही मैं किसी आदमी को धनी पाता हूँ, वैसे ही मुझपर उसकी कला और बुद्धिमत्ता की बातों का प्रभाव काफूर हो जाता है। मुझे जान पड़ता है कि इस शख्स ने मौजूदा सामाजिक व्यवस्था को – उस सामाजिक व्यवस्था को, जो अमीरों द्वारा गरीबों के दोहन पर अवलम्बित है-स्वीकार कर लिया है। इस प्रकार किसी भी बड़े आदमी का नाम, जो लक्ष्मी का कृपापात्र भी हो, मुझे आकर्षित नहीं करता। बहुत मुमकिन है कि मेरे मन के इन भावों का कारण जीवन में मेरी निजी असफलता ही हो। बैंक में अपने नाम में मोटी रकम जमा देखकर शायद मैं भी वैसा ही होता, जैसे दूसरे हैं -मैं भी प्रलोभन का सामना न कर सकता, लेकिन मुझे प्रसन्नता है कि स्वभाव और किस्मत ने मेरी मदद की है और मेरा भाग्य दरिद्रों के साथ सम्बद्ध है। इससे मुझे आध्यात्मिक सान्त्वना मिलती है।”
मुंशी प्रेम चंद की कविताएं
प्रेमचंद कवितायेँ नहीं लिखते थे, लेकिन उन्होंने अपनी कहानियों में कई बार कविताएँ शामिल की हैं।
यहाँ कुछ उन कविताओं या काव्यांशों को प्रकाशित कर रहे हैं, जिन्हे कथा सम्राट प्रेम चंद की कहानियों में जगह मिली है। यह किसकी रचनाएं हैं यह जानने से कहीं महत्वपूर्ण है कि ये प्रेम चंद की पसंदीदा कविताएं हैं, पसंदीदा मैं इसीलिए कह पा रहा हूँ क्योंकि ये कविताएं आज यहाँ जीवन पा रही हैं, कविताएं ऐसे भी जिंदा रहती हैं । यह सिलसिला चलता रहेगा, आज पढ़िये प्रेम चंद की पसंद में दो कविताएं।
पहली कविता
क्या तुम समझते हो ?
क्या तुम समझते हो मुझे छोड़कर भाग जाओगे ?
भाग सकोगे ?
मैं तुम्हारे गले में हाथ डाल दूँगी,
मैं तुम्हारी कमर में कर-पाश कस लूँगी,
मैं तुम्हारा पाँव पकड़ कर रोक लूँगी,
तब उस पर सिर रख दूँगी,
क्या तुम समझते हो,
मुझे छोड़ कर भाग जाओगे ?
छोड़ सकोगे ?
मैं तुम्हारे अधरों पर अपने कपोल
चिपका दूँगी,
उस प्याले में जो मादक सुधा है-
उसे पीकर तुम मस्त हो जाओगे।
और मेरे पैरों पर सिर रख दोगे।
क्या तुम समझते हो मुझे छोड़ कर भाग जाओगे ?
( यह कविता रसिक संपादक कहानी से है और वहाँ इसकी रचनाकार कामाक्षी हैं )
दूसरी कविता
माया है संसार
माया है संसार सँवलिया, माया है संसार
धर्माधर्म सभी कुछ मिथ्या, यही ज्ञान व्यवहार,
सँवलिया माया है संसार।
गाँजे, भंग को वर्जित करते, है उन पर धिक्कार,
सँवलिया माया है संसार।
आज शकील बदायूँनी का जन्मदिवस है। चौदह वर्ष की उम्र में ही शेर कहने वाले शायर शकील अहमद बदायूं में 3 अगस्त 1916 को पैदा हुए। उसके बाद वे लखनऊ में पढे-लिखे और देश के नामी शायरों में शामिल हो गए। दिल्ली में नौकरी करते हुए उन्होंने देशभर में अपने कलामों से लोगों के दिलों पर राज किया और फिर मुम्बई आकर फिल्मो में अमर गीतों की रचना की।
उनके बहुचर्चित गीत ‘चौदहवीं का चाँद’ के संबंध में एक वाकया है, जिसमें उनके इस गीत में उर्दू शायरी के व्याकरण के अनुसार गलती उजागर होती है।
निदा फाज़ली अपने संस्मरण में कहते हैं, एक बार वे ग्वालियर में उनसे मिले थे| शकील साहब मुशायरों में गर्म सूट और टाई पहनकर शिरकत करते थे। ख़ूबसूरती से संवरे हुए बाल और चेहरे की आभा से वे शायर से अधिक फ़िल्मी कलाकार नज़र आते थे | मुशायरा शुरू होने से पहले वे पंडाल में अपने प्रशंसकों को अपने ऑटोग्राफ से नवाज़ रहे थे। उनके होंठों की मुस्कराहट कलम की लिखावट का साथ दे रही थी। इस मुशायरे में ‘दाग़’ के अंतिम दिनों के प्रतिष्ठित मुकामी शायरों में हज़रत नातिक गुलावटी को भी नागपुर से बुलाया गया था लंबे पूरे पठानी जिस्म और दाढ़ी रोशन चेहरे के साथ वो जैसे ही पंडाल के अंदर घुसे सारे लोग सम्मान में खड़े हो गए | शकील इन बुज़ुर्ग के स्वभाव से शायद परिचित थे, वे उन्हें देखकर उनका एक लोकप्रिय शेर पढते हुए उनसे हाथ मिलाने के लिए आगे बढे:
वो आँख तो दिल लेने तक बस दिल की साथी होती है,
फिर लेकर रखना क्या जाने दिल लेती है और खोती है.
लेकिन मौलाना नातिक इस प्रशंसा स्तुति से खुश नहीं हुए, उनके माथे पर उनको देखते ही बल पड़ गए | वे अपने हाथ की छड़ी को उठा-उठाकर किसी स्कूल के उस्ताद की तरह बोले,
“बरखुरदार, मियां शकील! तुम्हारे तो पिता भी शायर थे और चचा मौलाना जिया-उल-कादरी भी उस्ताद शायर थे तुमसे तो छोटी-मोटी गलतियों की उम्मीद हमें नहीं थी पहले भी तुम्हें सुना-पढ़ा था मगर कुछ दिन पहले ऐसा महसूस हुआ कि तुम भी उन्हीं तरक्कीपसंदों में शामिल हो गए हो, जो रवायत और तहजीब के दुश्मन हैं | ”
मौलाना नातिक साहब भारी आवाज़ में बोल रहे थे। शकील इस तरह की आलोचना से घबरा गए पर वे बुजुर्गो का सम्मान करना जानते थे। वे सबके सामने अपनी आलोचना को मुस्कराहट से छिपाते हुए उनसे पूछने लगे,
“हज़रत आपकी शिकायत वाजिब है लेकिन मेहरबानी करके गलती की निशानदेही भी कर दें तो मुझे उसे सुधारने में सुविधा होगी”
उन्होंने कहा,
“बरखुरदार, आजकल तुम्हारा एक फ़िल्मी गीत रेडियो पर अक्सर सुनाई दे जाता है, उसे भी कभी-कभार मजबूरी में हमें सुनना पड़ता है और उसका पहला शेर यों है:
चौदहवीं का चाँद हो या आफताब हो,
जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो |
”मियां इन दोनों मिसरों का वज़न अलग-अलग है पहले मिसरे में तुम लगाकर यह दोष दूर किया जा सकता था | कोई और ऐसी गलती करता तो हम नहीं टोकते, मगर तुम हमारे दोस्त के लड़के हो, हमें अजीज़ भी हो इसलिए सूचित कर रहे हैं | बदायूं छोड़कर मुंबई में भले ही बस जाओ मगर बदायूं की विरासत का तो पालन करो |’
शकील अपनी सफाई में संगीत, शब्दों और उनकी पेचीदगिया बता रहे थे उनकी दलीलें काफी सूचनापूर्ण और उचित थीं, लेकिन मौलाना ‘नातिक’ ने इन सबके जवाब में सिर्फ इतना ही कहा- “मियां हमने जो “मुनीर शिकोहाबादी” और बाद में मिर्ज़ा दाग से जो सीखा है उसके मुताबिक़ तो यह गलती है और माफ करने लायक नहीं है | हम तो तुमसे यही कहेंगे, ऐसे पैसे से क्या फायदा जो रात-दिन फन की कुर्बानी मांगे |’
उस मुशायरे में नातिक साहब को शकील के बाद अपना कलाम पढ़ने की दावत दी गई थी उनके कलाम शुरू करने से पहले शकील ने खुद माइक पर आकर कहा था- ‘हज़रत नातिक इतिहास के जिंदा किरदार हैं | उनका कलाम पिछले कई नस्लों से ज़बान और बयान का जादू जगा रहा है, कला की बारीकियों को समझने का तरीका सीखा रहा है और मुझ जैसे साहित्य के नवागंतुकों का मार्गदर्शन कर रहा है | मेरी गुज़ारिश है आप उन्हें सम्मान से सुनें | ‘
शकील साहब के स्वभाव में उनके धार्मिक मूल्य थे | अपनी एक नज़्म ‘फिसीह उल मुल्क’ में दाग के हुज़ूर में उन्होंने “साइल देहलवी”, “बेखुद”, “सीमाब” और “नूह नार्वी” आदि का उल्लेख करते हुए दाग की कब्र से वादा भी किया था:
ये दाग, दाग की खातिर मिटा के छोड़ेंगे,
नए अदब को फ़साना बना के छोड़ेंगे |
शकील साहब का व्यक्तित्व बेहद चमकदार था, वे मुशायरों में किसी हीरो से कम नहीं लगते थे और कहा जाता है कि अपने साथ अपने शागिर्दों और प्रसंशकों भी मुशायरों में ले जाते रहे।
उन्होंने अपना पहला गीत फिल्मों में इतना शानदार लिखा कि नौशाद साहब उनके हमेशा के लिए मुरीद हो गए। वो गीत था:-
हम दिल का अफ़साना दुनियां को सुना देंगे हर दिल में मुहब्बत की आग लगा देंगे
शकील साहब के गीतों में ‘प्यार किया तो डरना क्या’ से लेकर ‘नन्हा मुन्हा राही हूँ’ तक एक लम्बी और दिल अज़ीज फेहरिश्त है, जिसे दुनियां सदियों तक याद रखेगी।
राजस्थान के बारन जिले के बमोरी कला गाँव में एक किसान के बेटे ने खेती के लिए गज़ब का अविष्कार किया है। योगेश नागर ने ट्रैक्टर को चलाने वाले रिमोट का अविष्कार किया है जिससे दूर बैठकर ट्रैक्टर को चलाया जा सकता है। इस अनौखे अविष्कार के साथ-साथ उन्होंने अबतक 30 अविष्कार किए हैं। इस युवा की ज़िन्दगी भी रोचक है।
द बेटर इंडिया ने राजस्थान के इस अनोखे आविष्कारक- योगेश नागर से बात की और जाना उनके अविष्कार और ज़िन्दगी के बारे में…
योगेश नागर की दसवीं तक पढाई गांव में ही हुई। बड़ी मेहनत से पढ़ते हुए योगेश बोर्ड परीक्षा में गांव के टॉपर रहे तो आगे की पढाई के लिए पास के ही जिले कोटा चले गए। वहां 12 वीं की पढाई करते वक़्त योगेश का मन पढ़ने से ज्यादा कुछ न कुछ नया बनाने में लगा रहता था, उस समय वे आर्मी के लिए एक ऐसा वाहन बनाने में जुट गए जिसे आंधी-तूफान या अँधेरे जैसी स्थिति में कभी भी कहीं से भी चलाया जा सके, इस खोज में जुटे रहने की वजह से उनके अंक परीक्षा में कम आए लेकिन उन्होंने एक साथ कई अविष्कार कर डाले।
अब तक 30 अविष्कार कर चुके योगेश बताते है, “मैं 7 वीं कक्षा से अविष्कार कर रहा हूँ, भाप से जुड़े कई अविष्कार किए। घर की स्थिति ठीक नहीं थी तो अविष्कारों में लगने वाले सामान के लिए पैसा कम मिल पाता था। फिर भी मेरा मन कुछ न कुछ खोजने में लगा रहता है। जब भी कोई दिक्कत सामने होती है, इसे लेकर हर रात सोने से पहले सोचने लगता हूँ और कई दिनों में कुछ न कुछ नया आइडिया मेरे दिमाग में आ जाता है।”
महज 19 साल के योगेश अभी बी एस सी प्रथम वर्ष के छात्र हैं।
योगेश के पिताजी गांव के खेतों की जुताई करने और अन्य कृषि कार्यों के लिए ट्रैक्टर चलाते हैं। खेतों की बुआई के सीजन में रात-रात भर ट्रैक्टर चलाना पड़ता है, ताकि सबकी बुआई समय पर हो। इसी तरह फसलों की कुटाई के वक़्त दिन-रात ट्रैक्टर की सीट पर ही गुजरते हैं।
घर की स्थिति बताते हुए योगेश कहते है, “ट्रैक्टर हमने लिया था पर हमारा नहीं था। 2004 में पिताजी ने मामा की जमीन गिरवी रखकर ट्रैक्टर लोन पर लिया था। जिसकी कीमत चुकाने के लिए दिन-रात जुटे रहते थे।”
ट्रैक्टर खेतों में चलाना कई तरह की चुनौतियों से भरा होता है, लगातार ट्रैक्टर खेतों के ऊँचें-नीचे चढाव-उतराव पर चलाने से शरीर के कई हिस्सो में परेशानी होने की सम्भावना होती है।
योगेश के पिता
यही योगेश के पिताजी के साथ हुआ। लगातार ट्रैक्टर चलाने की वजह से उन्हें पेट में दर्द की शिकायत होने लगी।
“पिताजी पिछले 30 साल से ट्रैक्टर चला रहे हैं, दिन रात ट्रैक्टर की सीट पर बैठने से पेट दर्द की शिकायत हुई और डॉक्टर ने आराम करने की सलाह दी। पर पिताजी नहीं माने और वे ट्रैक्टर चलाते रहे, क्योंकि घर की जरूरतें ऐसी थीं कि वे मजबूर थे।”
डॉक्टर की सलाह न मानने के कारण योगेश के पिताजी की स्थिति में सुधार नहीं हुआ। तब योगेश ने इसके लिए कोई रास्ता निकालने की सोची और जुट गए। योगेश ने ट्रैक्टर को बड़े ध्यान से देखना और समझना शुरू किया। दो दिन तक ट्रैक्टर को गहराई से समझने के बाद योगेश अपने काम पर जुट गए। उनका मकसद था पिताजी को ट्रैक्टर की सीट से हटाकर सुरक्षित करना और उसके लिए उन्हें ऐसा यन्त्र तैयार करना था जो बिना ड्राईवर के ट्रैक्टर को चला सके।
“मैंने दो दिन ट्रैक्टर को ध्यान से देखा और फिर रिमोट का मॉडल बनाने में जुट गया। 2004 मॉडल के ट्रैक्टर में तब पॉवर ब्रेक जैसे फंक्शन भी नहीं थे, फिर भी मैंने पिताजी से 2000 रूपये लिए और उनके लिए एक सेम्पल मॉडल बनाकर उन्हें दिखाया। पिताजी को पहले भरोसा नहीं था पर फिर मॉडल देखकर उन्हें पसन्द आया और उन्होंने रिमोट बनाने के लिए पैसा मंजूर कर दिया।”
पिताजी से 50 हज़ार रूपये लेकर योगेश ने अपना काम शुरू कर दिया। रिमोट मे लगने वाले बहुत से पार्ट उन्होंने घर पर ही बनाए।
इस वर्ष जून में ही उन्होंने पिताजी को सेम्पल मॉडल बनाकर दिखा दिया था; फिर अगले दो महीनों में उन्होंने पूरा रिमोट बनाकर ट्रैक्टर चला दिया।
रिमोट बनाते वक़्त उन्होंने ध्यान रखा कि उसका मॉडल ठीक वैसा ही हो जैसा ट्रैक्टर में होता है।
“मेरे लिए चुनौती थी कि इस रिमोट को पिताजी चलाएंगे कैसे? इसलिए मैंने उसमें सबकुछ उसी तरह रखा जैसे ट्रैक्टर में होता है। रिमोट में ट्रैक्टर की तरह स्टेयरिंग है, क्लच, ब्रेक और गियर उसी तरह बनाने की कोशिश की है, ताकि किसान को चलाने में दिक्कत न आए।”
रिमोट में सेटेलाइट से ट्रैक्टर को कनेक्ट किया गया है। और डेढ़ किलोमीटर की रेंज तक ट्रैक्टर को इस रिमोट से चलाया जा सकता है। किसान खेत की मेंड़ पर बैठकर आराम से खेत की जुताई कर सकता है।
योगेश के गांव में बिना ड्राइवर के ट्रैक्टर चलता देख लोग कौतूहल से भर गए। उन्होंने अपने इस मॉडल का वीडियो बनाकर यूट्यूब और व्हाट्सएप पर डाला तो वायरल हो गया। उसके बाद उनके पास कई किसान आए जिन्होंने इस तकनीक को अपने ट्रैक्टर में लगाने की मांग योगेश के सामने रखी।
रिमोट लगाने की कीमत के सवाल पर योगेश कहते हैं, “जैसे जैसे लोगों को पता चल रहा है, वो मेरे पास आ रहे हैं। अभी तक करीब 50 से 60 किसान मेरे पास आए हैं, जो अपने ट्रैक्टरों में ये तकनीक लगवाना चाहते हैं। मैं कोशिश कर रहा हूँ कि उन सब की मदद कर पाऊँ और इसे सस्ती से सस्ती कीमत में किसानों तक पहुंचाया जा सके”
वैसे योगेश का मानना है कि अगर इस पर थोडा और रिसर्च किया जाए तो इसकी कीमत 30 हज़ार रुपए तक आ सकती है। योगेश के पास आए किसानों ने इस रिमोट को लगाने के लिए एक लाख रूपये तक खर्च करने की बात कही है।
योगेश के पिता बाबूराम नागर खुश हैं और अपने बेटे पर गर्व करते हुए कहते हैं,”बेटे ने हमारे दर्द की वजह से इसका अविष्कार किया पर अब ये हमारे जैसे और भी किसान भाइयों के काम आएगा। इस बात की हमें ख़ुशी है और अपने बेटे पर गर्व है।”
योगेश का सपना है कि वे आर्मी के लिए एक अनोखा वाहन बनाएं।
योगेश अपनी 11 वीं कक्षा से आर्मी के लिए एक अनोखा वाहन डिजाइन कर रहे हैं, जो किसी भी मुसीबत में लड़ने के लिए तैयार हो। अब तक 30 से अधिक अविष्कार कर चुके योगेश एंटी-थेप्ट मशीन भी बना चुके हैं, जो आपके घर में किसी के घुसने की जानकारी आपको दुनियां के किसी भी कोने में दे सकती है। इसके साथ ही योगेश ने पॉवर सेवर नाम से एक उपकरण बनाया है जो सेटेलाइट से कनेक्ट होने की वजह से सभी बिजली उपकरणों को बन्द या चालू कर सकता है। इससे खेतों में लगे ट्यूबवेल भी घर बैठे चलाए जा सकते हैं, और खेत में बैठकर घर में जलती लाइट को भी बुझाया जा सकता है।
अपने अविष्कारों के बारे ने बात करते हुए योगेश कहते हैं कि, “अब तक मैंने कुल 30 अविष्कार किए हैं; कुछ और अविष्कारों पर काम जारी है। मुझे जो भी समस्या अपने आसपास दिखती है, उसे मैं पहले गौर से समझता हूँ, फिर उसके समाधान के लिए 8 से 9 दिन रिसर्च करता हूँ और फिर कुछ ऐसा निकलता है जो अविष्कार बन जाता है। मुझे अविष्कारों में लगने वाले सामान के लिए पैसे की जरूरत रहती है जो नहीं मिल पाता। तो अगर सरकारी या निजी सहयोग मिले तो मैं अपने सपने को साकार कर पाउँगा और देश के लिए मेहनत से जुटकर कुछ योगदान दे पाउँगा।”
द बेटर इंडिया की ओर से योगेश के अविष्कार पर उन्हें बधाई और ऐसे युवाओं को सहयोग करने के लिए आप से निवेदन करते हैं कि जो सम्भव सहायता हो सके आप करें। आप अगर योगेश तक अपनी कोई भी सहायता पहुँचाना चाहते हैं, तो उनके इस नम्बर 8239898185 पर सम्पर्क कर सकते हैं।
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2018-19 के पूर्णकालिक बजट की घोषणा कर दी गयी हैं. इस बजट से किसानों को कई उमीदें थी और सरकार की माने तो उन्होंने अपनी नीतियों में ऐसे बदलाव भी किये है जिनसे किसान को लाभ मिलेगा. पर क्या ये नीतियाँ सही में कारगर साबित होंगी? क्या किसान क़र्ज़- मुक्त हो पायेगा? क्या किसानो की आत्महत्याएं रुकेंगी? और क्या इन नीतियों से ज़मीनी तौर पर बदलाव आएगा? इन सब सवालों के जवाब ढूंडने के लिए हमने अखिल भारतीय किसान संघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी से ख़ास बातचीत की.
डॉ. त्रिपाठी ने बजट में किसानो के लिए किये प्रावधान पर अपने विचार रखें तथा किसानो की ओर से इन पर सुझाव भी दिए!
डॉ. राजाराम त्रिपाठी
तो आईये जानते है डॉ. त्रिपाठी से कि किसानों के हित में नज़र आ रहें बजट में किये गए 6 प्रावधानों पर उनकी क्या राय हैं और वे इन पर क्या सुझाव देना चाहेंगे –
1.कृषि ऋण में 11 लाख करोड़ का इज़ाफा
डॉ त्रिपाठी – बजट में कृषि ऋण में 11 लाख करोड़ का इजाफा करने की घोषणा सरकार ने की हैं, जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि इस घोषणा का लाभ लघु व सीमांत किसानों को मिलने के बजाय बड़े किसानों और कृषि व्यवसाय से संलग्न लोगों को होगा. वैसे भी अतीत की स्थितियां बयां करती है कि ऋण सीमा बढ़ाने से किसानों का भला होने के बजाय इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. किसान कर्ज के मकड़जाल में उलझ जाते हैं और अंततः आत्महत्याओं की संख्या बढ़ जाती है.
सुझाव –
क़र्ज़ देने की प्रक्रिया को सरल किया जाएँ . दस्तावेजीकरण न्यूनतम रखे. वास्तव में जो कर्जा दिखता है, उसका अधिकतम भाग रासायनिक खाद , बीज , दवाई , कृषि आदानों के नाम से दिया जाता हैं. कृषि निति इस तरह की हो की ऋण लेने की ज़रूरत ही न पड़े और यदि ज़रूरत पड़े भी तो इसकी प्रकिया का सरलीकरण हो. इसके अलावा क़र्ज़ माफ़ी भी नहीं होनी चाहिए बल्कि अदायगी में कुछ रियायत बरतने की ज़रूरत हैं.
2.उपज की लागत का न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना
डॉ त्रिपाठी- किसानों को उनके उपज की लागत का न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना देने की बात कही गई हैं, पर जो लागत तय करने का सरकारी तंत्र है, उसमे लागत ही सटीक रूप से तय नहीं हो पाता है. ऐसे में न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना भी कठिन हैं. इसके अलावा इस उपज की खरीद भी अगले वर्ष से होगी. अर्थात अभी तुरंत किसानों को कोई लाभ नहीं मिल पायेगा.
सुझाव : फसल के लागत मूल्य निर्धारण में किसान तथा उसके परिवार के श्रम का मूल्य अर्थात मज़दूरी भी शामिल की जानी चाहिए तथा जिस भूमि पर खेती की जा रही है उसका किराया भी फ़सल की लागत में जोड़ा जाना चाहिए. कृषि मशीनरियों की लागत पर ब्याज़ की गणना करके उसे भी फ़सल लागत व्यय में शामिल करना होगा, साथ ही साथ फ़सल के प्रबंधन व्यय, मंडी तक पहुंचाने का खर्च तथा बाज़ार में बेचने की प्रक्रिया में लगे खर्च को भी जोड़ना होगा। फ़सल की लागत निर्धारण की प्रक्रिया को पारदर्शी युक्ति युक्त तथा वास्तविक एवं ज़मीनी हक़ीक़त के आधार पर तैयार करना ज़रूरी है।इस प्रक्रिया में सभी वर्ग के वास्तविक किसानों को शामिल किया जाना चाहिए।
4.लघु व कुटीर उद्योगों के विकास के लिए 200 करोड़
डॉ त्रिपाठी – लघु व कुटीर उद्योगों के विकास के लिए 200 करोड़ और स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए दो लाख 40 हजार करोड़ रुपये आवंटित किया गया है. उल्लेखनीय है कि देश की 68.84 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है तथा उनकी आजीविका में लघु व कुटीर उद्योगों का काफी महत्व है ऐसे में 200 करोड़ रुपये इस क्षेत्र के लिए नकाफी है. ऐसी स्थिति में ग्रामीणों का पलायन होगा और खेती-किसानी पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
सुझाव :
देश के 2,36,000 से भी अधिक गांवों के विकास के लिए एक दूरगामी, दीर्घकालीन लघु एवं कुटीर उद्योग विकास नीति की आवश्यकता है एवं बिना ग्रामीण उद्योगों के विकास के हम अपने बहुसंख्य बेरोज़गार नौजवानो कोरोज़गार मुहैया नहीं करा पाएंगे ।अतः लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए बजट में अधिक से अधिक राशि के प्रावधान करने होंगे तथा हमारे विभिन्न परम्परागत ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देना होगा।
4. खाद्य प्रसंस्करण के लिए 1400 करोड़ रुपये आवंटित
डॉ त्रिपाठी – वित्तमंत्री ने खाद्य प्रसंस्करण के लिए 1400 करोड़ रुपये आवंटित किये है, जब कि प्रतिवर्ष खाद्यप्रसंस्करण के अभाव में 92 हजार करोड़ रुपये मूल्य के फल और सब्जियां सड़ जाती है और फेंकी जाती है. सिंचाई को लेकर कोई दूरगामी योजना नहीं दिखी.
सुझाव :
फसलों के उत्पादन के बाद उत्पाद के समुचित रख रखाव , समुचित भंडारण, उचित परिवहन तथा विभिन्न स्तरीय उचित प्रसंस्करण की व्यवस्था विकास फंड तथा जिला स्तर पर किया जाना नितांत ज़रूरी है। इस कार्य हेतु निजी क्षेत्र से भी पूंजी निवेश हेतु सहभागिता की जानी चाहिए। भारत की खुदरा बाज़ार जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में 100% पूंजी निवेश हेतु लालायित विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ऐसे ही ग्राम्य उद्यमों/उपक्रमों में सहभागिता हेतु आकर्षित , प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
5. जैविक खेती को बढ़ावा
डॉ त्रिपाठी – जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात की जा रही है लेकिन रसायनिक खाद के लिए तय की गयी राशि में से कितनी राशि को जैविक खेती के लिए हस्तांतरित किया जाएगा, इस पर स्पष्ट कुछ नहीं कहा गया है. वहीं जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया गया है. ऐसे में जैविक खेती को कैसे बढ़ावा मिलेगा, यह एक बड़ा सवाल है.
सुझाव :-
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयास किए जाने की आवश्यकता है । रासायनिक खादों के लिए करोड़ों का अनुदान देते रहने से जैविक खेती कैसे आगे बढ़ेगी? रासायनिक खाद के लिए दिया जाने वाला अनुदान जैविक खाद पर परावर्तित किया जाना चाहिए. जो किसान जैविक खेती कर रहे हैं तथा अपने खेतों के लिए स्वयं जैविक खाद तैयार कर रहे हैं उन्हें भी रासायनिक खाद पर दिए जा रहे अनुदान की तर्ज़ पर जैविक खाद पर अनुदान दिया जाना चाहिए तभी जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा. इसके अलावा जैविक उत्पादों के बाज़ार को भी बढ़ावा दिए जाने की ज़रूरत है.
जैविक खेती के तथा जैविक उत्पादों की प्रमाणीकरण हेतु समुचित निति बनाए जाने की ज़रूरत है. प्रमाणीकरण पर लगाए जा रहे जीएसटी/GST की 18 प्रतिशत tax को तत्काल हटाया जाना चाहिए तथा जैविक उत्पादों पर पूरी तरह से कर मुक्त व्यवस्था लानी चाहिए जिससे कि सही मायने में जैविक खेती तथा जैविक उत्पादोंको बढ़ावा मिले एवं किसानों के साथ ही साथ भारत के खेतों की ज़मीन की दशा सुधरेगी।
6. स्वास्थ्य बीमा के लिए 50 हजार करोड़ रुपये
डॉ त्रिपाठी – स्वास्थ्य बीमा के लिए 50 हजार करोड़ रुपये आवंटित किया गया है, लेकिन ग्रामीण
क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे की स्थिति बदहाल है. ऐसे में यह ग्रामीणों के लिए कम और बीमा कंपनियों की हितों को ज्यादा लाभ पहुंचायेगा..
सुझाव :-
सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार तथा विस्तार किया जाना
आवश्यक है। गांवों में अपेक्षित संख्या में अस्पतालों की कमी है जहाँ अस्पताल है वहाँ चिकित्सकों की कमी दवाइयों का भी अभाव है. विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी तो जिला स्तरीय चिकित्सालयों में भी है। इसलिए सर्वप्रथम भारत की परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों का विस्तार किया जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधाओं को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने के उपरांत ही ग्रामीण स्वास्थ्य बीमा का समुचित लाभ ग्रामीण
जनता को मिल पाएगा।
डॉ राजा राम त्रिपाठी अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के अध्यक्ष हैं और कई सालों से बस्तर के दंतेवाडा इलाके में औषधीय वनस्पतियों की किसानी कर रहे हैं. वे Central Herbal Agro Marketing Federation of India (CHAMF India ) के चेयरमैन तथा
Aromatic Plants Growers Association of India ( APAGAI) के जनरल सेक्रेटरी भी हैं.
15 फरवरी को असम के माजुली आयलैंड में भारतीय सेना का माइक्रोलाइट हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था। इसमें सवार दोनों ही पायलटों की मौत हो गई थी। हेलीकॉप्टर ने असम के जोरहट्ट से उड़ान भरी थी और उसे सामान लेकर अरूणाचल प्रदेश पहुंचना था। लेकिन उससे पहले ही माजुली आयलैंड में ये हादसा हो गया। मरने वाले दो पायलटों में से एक थे विंग कमांडर जयपाल जेम्स और दुसरे थे विंग कमांडर दुष्यंत वत्स।
तस्वीर में दिख रही मेजर कुमुद डोगरा, शहीद विंग कमांडर दुष्यंत वत्स की पत्नी हैं।
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इस तस्वीर में मेजर कुमुद अपनी आर्मी यूनिफॉर्म में दिख रही हैं। साथ ही उनकी गोद में उनकी पांच दिन की बच्ची है। पांच दिन की बच्ची को गोद में लिए मेजर कुमुद अपने शहीद पति के अंतिम संस्कार में जा रही है।
हम अक्सर सरहद पर हमारी रक्षा करतें जवानों की हिम्मत की दाद देते हैं। उनके शौर्य की गाथाएं इतिहास में लिखी जाती हैं। पर हमारी सलामी के जितने हक़दार हमारे जवान हैं, उनते ही उन्हें गर्व से ख़ुशी-ख़ुशी देश पर कुर्बान कर देने वाले उनके घर के सदस्य भी हैं।
शहीद विंग कमांडर दुष्यंत वत्स का नाम तो इतिहास में हमेशा अमर रहेगा ही साथ ही उनकी पत्नी के इस जज़्बे को भी लोग कभी नहीं भुला पाएंगे! देश की ऐसी वीरांगनाओं को हमारा सलाम!
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पिछले दिनों, झारखण्ड सरकार एक ऐसी योजना ले कर आयी जो अपने आप में भारत में पहली है। विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह(PVTGs) के 70,000 परिवारों तक पहुँचने का मकसद लिए इस योजना के तहत इस काम के लिए नियुक्त कर्मचारियों के द्वारा इन परिवारों तक खाना पहुंचायागा जाएगा । ऐसी उम्मीद है कि यह कुपोषण और भूखमरी से लड़ने को मददगार साबित होगी।
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झारखण्ड के कुल 32 आदिवासी समूहों में से 8 समूह , जिनके नाम, असुर, बिरहोर, पहरिया(बैगा), सबर, बिराजिया, कोरवा, मल पहरियाऔर सौरिया पहरिया हैं, को विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह के अंतर्गत शामिल किया गया है। ऐसा पाया गया कि अन्य जातियों के मुकाबले इन आठों के विकास में कमी रही है। सरकार द्वारा इनका चुनाव कठिन इसलिए भी है क्यूंकि ये एक जगह पर टिक कर नहीं रहते।
नयी योजना के तहत, नेशनल फ़ूड सिक्यूरिटी एक्ट(NFSA) के अंतर्गत आने वाले परिवारो में से हर परिवार के बीच 35 किलो चावल वितरित किया जाएगा। पिछले दिनों यह योजना सुन्दर पहारी (गोड्डा), चैनपुर(पलामू) और बरहैत(सहेबगनी) ब्लाक से आरंभ हुई। सार्वजनिक वितरण विभाग( public distribution system) के सेक्रेटरी विनयकुमार दावा करते हैं कि माह के अंत तक राज्य के सभी 24 जिलों को इस योजना में शामिल कर लिया जाएगा।
नेशनल फ़ूड सिक्यूरिटी एक्ट, 2013, भारत के 1.2 अरब लोगों में से दो-तिहाई जनता को कम दर पर राशन देने को बाध्य है पर फिर भी कई PVTGs में यह सफल नहीं हो पा रहा था। इस बिल के अनुसार, भारत के गरीबों में हर माह प्रत्येक व्यक्ति को 5 किलो अनाज मिलना चाहिए। हांलाकि कई PVTGs को यह सुविधा नहीं मिल पा रही थी। घने जंगलों में रहना इसका मुख्य कारण माना गया। इनकी घटती जनसँख्या राज्य और केंद्र सरकार, दोनों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।
सरकार ने तय किया है की सखी मंडल ( महिला स्व सहायता समूह ) से 35 किलो प्लास्टिक ख़रीदी जाएगी। उम्मीद है कि इससे महिला सशक्तिकरण में भी मदद मिलेगी और गाँव की औरतों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी।
मूल लेख लूसी प्लमर द्वारा रचित
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अगर इन गर्मी की छुट्टियों में आप शिमला जाने की सोच रहे हैं, तो संभव है कि आप इस छोटे से होटल, बुक कैफ़े के पास से गुजरें, जो प्रसिद्ध रिज के ठीक ऊपर है। कई अन्य कैफ़े से अलग यह कैफ़े न सिर्फ स्वादिष्ट स्नैक्स और पेय देता है बल्कि अपने मेहमानों को पहाड़ों के सौंदर्य के दर्शन भी करवाता है।
आपको शायद यह भी पता लगे कि यह कैफ़े चार अपराधियों द्वारा चलाया जाता है जो कि शिमला के पास के कैठु जेल में अपनी उम्रकैद की सज़ा काट रहे हैं।
इस कैफ़े को राज्य पर्यटन विभाग द्वारा चलाया जा रहा है और इसके पीछे की मंशा इन कैदियों का पुनर्वास और समाज से जोड़ना है। इस कैफ़े को 20लाख की लागत में बनाया गया है और यहाँ करीब 40 लोगों के बैठने का प्रबंध है। यह अपने ग्राहकों को कैदियों द्वारा बनाये गए स्वादिष्ट बिस्कुट और पिज़्ज़ा खिलाते हैं।
जय चाँद, योग राज, राम लाल और राज कुमार को प्रोफेशनल द्वारा खाना बनाने और परोसने की ट्रेनिंग दी गयी है। इनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा जब इन्हें मौका मिला कि ये भी दुनिया को दिखा पाएं कि इन्होने खुद को बदलने की ठान ली है।
बिज़नस स्टैण्डर्ड को जय चाँद बताते हैं, “ इस कैफ़े नें हमे दुनिया से जुड़ने क मौका दिया। इसे हम चारो स्वतंत्र रूप से चला रहे हैं। यहाँ आने वाले सैलानियों या स्थानीय निवासियों ने हमसे बात करने पर भी कभी किसी प्रकार की शंका नहीं जतायी। वे हमारे इस बदलाव के बारे में और जानने को उत्सुक रहते हैं।”
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने हाल ही में इस कैफ़े का उदघाटन किया। यह कैफ़े लोगों के लिए सुबह 10 बजे से रात के 9 बजे तक खुला रहता है। इसके बंद होने के बाद कैदियों को वापस जेल में ले जाया जाता है।
जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है, बुक कैफ़े में हर तरह की किताबें हैं जिनमे जुल्स वर्नी और निकिता सिंह जैसे लेखकों का नाम उल्लेखनीय है। यह कैफ़े मुफ्त वाई फाई की सेवा भी दे रहा है।
इस कैफ़े तक टक्का बेंच, रिज, द मॉल, शिमला, हिमाचल प्रदेश : 171001 के पते पर पहुंचा जा सकता है।
मूल लेख – सोहिनी डे
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क्रिकेट पिच पर 24 साल के शानदार प्रदर्शन के बाद महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने चार साल पहले संन्यास ले कर अपनी शानदार पारी का अंत किया। जब जुहू ऑडिटोरियम में उनकी बायोपिक- सचिन: ए बिलियन ड्रीम्स का ट्रेलर लांच किया गया तब उनके प्रशंसकों में उनकी जिंदगी की झलक पाने के लिए गजब का उत्साह देखा गया।
फिल्म निर्माता निर्देशक जेम्स अर्नकीन हैं जो कि एमी अवार्ड्स के लिए नोमिनेट हो चुके हैं, संगीत दिया है मशहूर संगीतकार ए.आर. रहमान ने, यह बहुप्रतीक्षित फिल्म एक जीविकात्मक ड्रामा है जिसमें मूल फुटेज शामिल है और मास्टर ब्लास्टर और उनकी पत्नी अंजलि का भी अंश है। यह फिल्म पांच भाषाओं (हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, तमिल और तेलुगू) में रिलीज होगी जो सचिन के एक आम आदमी से महान क्रिकेटर बनने के सफ़र को दिखाएगी।
यहां सचिन तेंदुलकर के बारे में छह छोटी-छोटी कहानियां और उपाख्यानों की एक लिस्ट है, जो कि फिल्म में हो सकते हैं। इनमें से सचिन की किस कहानी को आप स्क्रीन पर देखने के लिए उत्साहित होंगे?
1. उनके लिए ये सिक्के हैं गोल्ड मेडल से भी ज्यादा कीमती!
सचिन को यादें सहेजने का भी काफी शौक है, उनके पास उनके पास सर डॉन ब्रैडमैन के सिग्नेचर वाला एक बैट है और उनके पास मोहम्मद अली के सिग्नेचर वाले बॉक्सिंग ग्लव्स भी हैं। लेकिन जब उनसे पुछा गया कि इन सब में से कौन सा उनके लिए सबसे अधिक प्रिय है तो उनका जवाब था सिक्के, वो सिक्के जो बचपन में उनके कोच रमकांत अचरेकर ने शिवाजी पार्क के जिमखाना मैदान में ट्रेनिंग के दौरान दिए थे।
उन दिनों अचरेकर 1 रूपए का सिक्का स्टंप पर रख दिया करते थे, और अगर सचिन पूरे सेशन में बिना आउट हुए अपनी पारी जारी रखते थे तो सिक्का उनका हो जाता था।
सचिन बचपन में काफी नटखट और शरारती थे, और ये उनके बड़े होने तक जारी रहा। सचिन के बड़े भाई अजित ने उन्हें क्रिकेट क्लास ज्वाइन कराई थी ताकि उनकी शैतानियाँ कुछ कम हो सकें। एक बार जब उनका सारा परिवार दूरदर्शन पर ‘गाइड’ फिल्म देख रहा था उस दौरान सचिन पेड़ से आम तोड़ने की कोशिश में गिर पड़े थे।
वह अपनी शरारतों के लिए मशहूर हैं, एक बार सचिन ने सौरव गांगुली के कमरे में एक पाइप डाल दिया और नल चालू कर दिया!
सचिन अपनी पत्नी अंजलि से 17 साल की उम्र में पहली बार एअरपोर्ट पर मिले थे। अंजलि उस वक्त एक मेडिकल स्टूडेंट थीं, अंजलि ने किसी तरह उनका फोन नंबर पता किया। अगले दिन अंजलि ने सचिन को फोन किया और अपना परिचय दिया, सचिन ने उन्हें पहचान लिया। सचिन को ये भी याद था कि अंजलि ने ऑरेंज रंग की टी-शर्ट भी पहनी हुई थी, अंजलि ये जान कर बहुत खुश हुईं!
फोन पर कुछ बातचीत के बाद अंजलि और सचिन ने मिलने का प्लान बनाया। चूंकि सचिन उस समय एक उभरते सितारे थे इसलिए वो कहीं बाहर नहीं मिल सकते थे। इसलिए उन्होंने सचिन के माता-पिता के घर ही मिलने का प्लान बनाया जहां अंजलि ने खुद को एक पत्रकार के रूप में पेश किया जो सचिन का इंटरव्यू करने आई थी! इस कहानी का जिक्र करते हुए सचिन ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनकी बहन को इस बात का अंदाजा हो गया था कि जरूर दाल में कुछ काला है, जब उन्होंने सचिन को अंजलि को चोकलेट देते हुए देखा तो इस बारे में उनसे पूछताछ की।
सचिन ने 2003 विश्व कप घायल तर्जनी उंगली के साथ खेला था और टूर्नामेंट खत्म हो जाने के बाद, उन्हें उंगली के ऑपरेशन के लिए अमेरिका जाना पड़ा। उन्हें इस बात की चिंता थी कि इससे उनकी बैटिंग पर कोई प्रभाव ना पड़े, उन्होंने अपने डॉक्टर से कहा कि सर्जरी के दौरान उनकी हथेली को कोई नुक्सान ना पहुंचे। वो इस बात को ले कर इतने ज्यादा चिंतित थे कि इस बारे में उन्होंने अपने अनेस्थेटिक्स से भी बात की, यहाँ तक कि सर्जरी के दौरान ही वो बीच में उठ गए और डॉक्टर को अपनी हथेली दिखने को कहा!
यह कोई पहली बार नहीं था जब खेल के लिए उनका जूनून देखा गया हो। 2004 में, जब सचिन को टेनिसकोहनी की चोट के बारे में पता चला था, वह बहुत परेशान हो गए क्यों कि वह ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट श्रृंखला खेलने में असमर्थ थे। जब उसके डॉक्टरों ने उससे पूछा कि वह इतना परेशान क्यों हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, “यह मेरी खुद की शादी के रिसेप्शन में मेरे ना होने की तरह होगा लेकिन इसके अलावा जो मैं करना चाहता हूँ उसके लिए दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है!
5. जब मास्टर ब्लास्टर ने पाकिस्तान के लिए खेला क्रिकेट
सचिन ने 16 साल उम्र में 1989 में पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की शुरुआत की। हालांकि, कुछ ही लोग ऐसे होंगे जो ये जानते होंगे कि एक खिलाड़ी के रूप में सचिन ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान मैच खेला था। वो तारीख थी 20 जनवरी 1987 और यह मैच भारत और पाकिस्तान के बीच 40 ओवर-एक-साइड मैच (ब्रेबॉर्न स्टेडियम, मुंबई) में पांच टेस्ट सीरीज (जो कि सुनील गावस्कर की आखिरी थी) से खेला था।
जब कुछ पाकिस्तानी खिलाड़ियों होटल में आराम कररने के लिए गए हुए थे, उस वक्त पाकिस्तानी कप्तान इमरान खान भारतीय कप्तान हेमंत केकेरे से पूछा कि क्या उन्हें कुछ खिलाड़ी मिल सकते हैं क्योंकि उनके पास खिलाड़ियों की कमी है। उस समय उत्साहित सचिन जो कि तीन महीने बाद अपनी जीवन के 14 साल पूरे करने वाले थे, हेमंत कुछ कह पाते उससे पहले ही सहयोग करने के लिए तैयार हो गए, जबकि अभी उनके नाम पर विचार ही चल रहा था। उन्होंने उस दिन मैदान पर 25 मिनट बिताए थे।
6. महान सलामी जोड़ी
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किसी भी युग में विशेष रूप से वनडे में क्रिकेट टीम की मजबूती और वर्चस्व, जोड़ी खोलने वाली टीमों के प्रदर्शन पर बहुत कुछ निर्भर करता है। और सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली की जोड़ी क्रिकेट की दुनिया में महान है। उन्होंने सफलतापूर्वक 129 मैचों में 6,362 रन बनाए, जिसमें 22 पचास रन की साझेदारी और 20 वीं शताब्दी की साझेदारी शामिल है, के साथ सबसे अधिक आरंभिक साझेदारी रिकॉर्ड रखे।
ये दोनों अच्छे दोस्त बने हुए हैं, जो अक्सर दोस्तानापूर्ण हंसी मज़ाक करते रहते हैं और एक दूसरे के बारे में नए नए खुलासे भी करते रहते हैं। सचिन प्यार से सौरव को बाबू मोशाय कहते हैं जबकि सौरव उन्हें छोटा बाबू कहते हैं। हाल ही में, जब एटलेटिको डी कोलकाता (सौरव की टीम) ने आईएसएल के पहले सीजन में जीत हासिल करने के लिए केरल ब्लास्टर्स एफसी (सचिन की टीम) को हराया, तो ट्रॉफी लेते वक्त सौरव सचिन को भी अपने साथ ले गए।
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उम्मीद की कविता में आज आपके लिए रामधारी सिंह दिनकर की कथाकाव्य रचना ‘रश्मिरथी’ से कुछ पंक्तियाँ हैं। ‘रश्मिरथी’ में रामधारी सिंह दिनकर महाभारत में कर्ण के कौशल और वीरता के संघर्ष को प्रमुखता से सामने लाए हैं।
कर्ण की कथा सिर्फ वीरता की कथा नहीं है, काबिलियत के संघर्ष की भी गाथा है, अपने अधिकार की भी जंग है और समाज की रूढ़ियों में फंसने वाले कौशल वीरों को उम्मीद देती कथा है।
कर्ण के चरित्र पर रचते हुए दिनकर जी ने लिखा है, ” कर्णचरित के उद्धार की चिंता इस बात का प्रमाण है कि हमारे समाज में मानवीय गुणों की पहचान बढ़ने वाली है। कुल और जाति का अहंकार विदा हो रहा है। आगे, मनुष्य केवल उसी पद का अधिकारी होगा जो उसके अपने सामर्थ्य से सूचित होगा, उस पद का नहीं जो उसके माता-पिता या वंश की देन है।”
रामधारी सिंह दिनकर बिहार के मुंगेर जिले में 1908 को एक छोटे से गांव में जन्मे और इतिहास से स्नातक की पढाई पटना कॉलेज से की। दिनकर जी ओजस्वी कवि तो थे ही वे एक स्कूल के प्रधानाचार्य, भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, भारत सरकार के हिंदी सलाहकार जैसे पदों पर भी रहे।
तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतलाके,
पाते हैं जग से प्रशस्ति अपना करतब दिखलाके।
हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,
वीर खींचकर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।
ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।
क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।
जिसके पिता सूर्य थे, माता कुंती सती कुमारी,
उसका पलना हुई धार पर बहती हुई पिटारी।
सूत वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर,
निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्भुत वीर।
तन से समरशूर, मन से भावुक, स्वभाव से दानी,
जाति गोत्र का नहीं, शील का, पौरुष का अभिमानी।
ज्ञान-ध्यान, शस्त्रास्त्र, शास्त्र का कर सम्यक अभ्यास,
अपने गुण का किया कर्ण ने आप स्वयं सुविकास।
नहीं फूलते कुसुम मात्र राजाओं के उपवन में,
अमित वार खिलते वे पुर से दूर कुञ्ज कानन में।
समझे कौन रहस्य? प्रकृति का बड़ा अनौखा हाल,
गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े क़ीमती लाल।
रश्मिरथी में एक जगह कर्ण कहता है..
“मैं उनका आदर्श, कहीं जो व्यथा न खोल सकेंगे,
पूछेगा जग, किन्तु, पिता का नाम न बोल सकेंगे।
जिनका निखिल विश्व में कोई कहीं न अपना होगा,
मन में लिये उमंग जिन्हें चिर-काल कलपना होगा।”
..और भरी सभा में अपने जाति पर सवाल उठते ही कर्ण बोले,
“पूछो मेरी जाति, शक्ति हो तो, मेरे भुजबल से,
रवि-समाज दीपित ललाट से, और कवच-कुण्डल से।
पढो उसे जो झलक रहा है मुझमें तेज-प्रकाश,
मेरे रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास।
मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का,
धनुष छोड़कर और गोत्र क्या होता है रणधीरों का?
पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,
‘जाति-जाति’ का शोर मचाते केवल कायर, क्रूर।”
रामधारी सिंह दिनकर ऐसे कवि रहे जो सरकार के साथ काम करते हुए भी जरूरत के वक़्त जनता के साथ खड़े होकर सरकार का विरोध करते रहे।
शनिवार की दोपहर झमाझम बारिश के बीच पुणे के तिलक स्मारक मंदिर नाट्यगृह में लोग जुट रहे हैं। 12 बजे तक एक लंबी लाइन हाथों में टिकट लिए नाट्यगृह में कौतूहल के साथ प्रवेश करती है। लोग लगातार आ रहे हैं इसलिए नाट्य प्रस्तुति अपने निर्धारित समय दोपहर 12 बजे की बजाय1 बजे शुरू हो पाती है।
खचाखच भरे हॉल में घोषणा होती है, ‘ 19 नेत्रहीन कलाकार प्रस्तुत करते हैं नाटक ‘मेघदूत’।
…और तालियों की गड़गड़ाहट पर्दे के पीछे तैयार खड़े कलाकारों में आत्मविश्वास भर देती है।
मंच पर अभिनय, संवाद, गायन, नृत्य और दृश्य संयोजन देखकर दर्शक अपनी कुर्सियों से उछल पड़ते हैं। ऐसे कम्पोजिशन कि देखने वाले न बना पाएं।
नाटक ऐसी विधा है जिसमें सारी विधाएँ समाहित होती हैं। अभिनय के साथ साथ गीत-संगीत और नृत्य के द्वारा कहानी कही जाती है। सावी फाउंडेशन के सहयोग से 19 अंध कलाकारों ने महाकवि कालिदास के काव्य नाटक ‘मेघदूत’ का मंचन किया। स्वागत थोराट के निर्देशन में नेत्रहीन कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को अभिभूत कर दिया।
नाटक के लेखक और अनुवादक गणेश दिघे प्रस्तुति के दौरान मौजूद रहे। वे कहते हैं कि,
“जब मैंने लिखा था तब मैं इन दृश्यों में नाटक नहीं सोच पाया था जैसे इन कलाकारों ने प्रस्तुत किये हैं। मेरे लिए एकदम नया मेघदूत मेरे सामने मंचित हो रहा था।”
नाटक में नृत्य भी था और तलवारों का युद्ध भी.. बिना देखे एक-दूसरे के साथ इतना बेहतर तालमेल देखते ही बनता है।
नाटक के निर्देशक स्वागत कहते हैं, “हमें नजरिया बदलने की जरूरत है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि नेत्रहीन भी ऐसा कर सकते हैं, मैं तो कहता हूँ वे सबसे सुंदर कर सकते हैं। मैं नेत्रहीन प्रतिभाओं के प्रति समाज का नजरिया बदलना चाहता हूँ। और मैं इन्हें जितना सिखा रहा हूँ उससे कहीं अधिक सीख रहा हूँ। कलाकारों की मेहनत और उत्साह देखकर मुझे ऊर्जा मिलती है।”
पुणे के अंध कलाकारों की नाट्य प्रस्तुतियाँ देखकर आप चौंक जायेंगे। कालिदास का क्लासिक नाटक ‘मेघदूत’ के मंचन की जिम्मेदारी कई बार समर्थ नाट्य संस्थाएं भी नहीं लेतीं लेकिन नेत्रहीन कलाकारों की प्रस्तुति निःशब्द कर देती है। सावी फाउंडेशन की मदद से निर्देशक स्वागत थोराट की अटूट मेहनत से 19 नेत्रहीन कलाकार मंच पर अपनी प्रतिभा प्रस्तुत करते हैं तो नाटक के नए अर्थ सामने आते हैं।
पुणे की सावी फाउंडेशन ने नाटक का निर्माण और इन कलाकारों को तैयार किया है। इस संस्था को शहर की महिलाएं मिलकर समाज कार्य के लिए चलाती हैं। संस्था की संस्थापक सदस्य रश्मि जी बताती हैं,
“नाटक में भूमिकाएं निभाने वाले कलाकार विभिन्न संस्थाओं से जुड़े हैं। कोई बैंक में नौकरी करता है तो कोई अपनी उच्च शिक्षा पूरी कर रहा है। महाराष्ट्र के कई शहरों से इन्हें चुना गया है। 80 दिनों की दिन रात मेहनत का परिणाम है कि इन्हें मंच पर उतारा गया तो शानदार प्रस्तुति सामने आई।”
कलाकारों के लिए भी ये अनुभव सपने पुरे होने से कहीं ऊपर है। पुणे में ही बैंक में काम करने वाले और नाटक में मुख्य भूमिका निभाने वाले गौरव कहते हैं,
“मैं जब भी फिल्मों या नाटकों के बारे में सुनता था तो मन ही मन सोचता था कि काश मैं भी अभिनय करूँ लेकिन लगता था कि आँखें होतीं तो मैं जरूर अभिनेता ही बनता।
अब जबकि मुझे नाटक में मुख्य भूमिका मिली तो मैं उछल पड़ा। मेरे लिए ये सपने से भी ऊपर की बात है।”
कालिदास रचित मेघदूत क्लासिक नाटक है जिसमें नाटक का पात्र यक्ष जिसे एक साल तक अपनी प्रेयसी से दूर पर्वत पर रहने की सजा मिलती है। तब आषाढ़ के पहले दिन वह मेघों के जरिए अपनी प्रेयसी को सन्देश भेजता है। मेघों को रास्ता बताते हुए कालिदास जो लिखते हैं विश्व साहित्य में प्रकृति का ऐसा अनूठा वर्णन कहीं नहीं मिलता।
नाटक में दामिनी की भूमिका निभाने वाली तेजस्विनी भालेकर मेघदूत को महसूसते हुए बताती हैं,
“मुझे घूमने का बहुत शौक है, अपना देश, पहाड़, नदियां, समन्दर… लेकिन देख न पाने के कारण ये सपना ही रह जाता है। मुझे कालिदास के मेघदूत में भूमिका मिली जिसके कारण मैंने नाटक के संवादों और गीतों से पूरा देश घूम लिया। कालिदास ने मेघों से संवाद के जरिए नदियां, पर्वत, और गांवों का ऐसा विवरण किया है कि सब स्पष्ट चित्र बन जाते हैं। मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे मेघदूत करने को मिला.”
तेजस्विनी भालेकर
नाटक ऐसी विधा है जो सबको सींचती है। मानव की अनन्त सम्भावनाओं को उजागर करती है, इसमें कलाकार भी और दर्शक भी भावों से भर जाता है।
सावी फाउंडेशन Team with Writer and Director
सावी फाउंडेशन नेत्रहीन दिव्यांगों के लिए ब्रेल लाइब्रेरी से लेकर वोकेशनल ट्रेनिंग के कई कार्यक्रम चलाती है। महिलाओं के सामूहिक प्रयास से एक नई सामाजिक चेतना का रास्ता बन रहा है। पुणे की व्यावसायिक महिलाएं मिलकर सावी फाउंडेशन का कार्य आगे बढ़ा रही हैं। अगर आओ भी इनसे जुड़ना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाकर जुड़ सकते हैं।
और अंत में हेलन केलर की कविता की पंक्तियाँ-:
“क्या तुमने अंधेरों के खजाने में घुसकर देखा है
अपने अंधेपन को खोजो
उसमें अनगिनत मोती हैं जीवन के..”
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‘पढ़ेगा इंडिया इनिशिएटिव’ साउथ दिल्ली में सेकेण्ड हैण्ड किताबें ऐसे लोगों तक पहुंचा रहा है जिनके पास महँगी किताबें खरीदने की क्षमता और दुर्लभ किताबों तक पहुँच नहीं है।
बैंगलोर के प्रतिष्ठित कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढाई करने वाले सुशांत झा की आँखों में आखिरी साल में एक सफल कैरियर बनाने का सपना था। लेकिन, प्लेसमेंट के दौरान उन्हें किसी भी कंपनी में जगह नहीं मिली। इसके कारण बताते हुए सुशांत कहते हैं, कि क्योंकि मेरा कटा हुआ होंठ है जिससे मैं ठीक से बोल नहीं पाता।
“मैं कैम्पस प्लेसमेंट के बाद भी कोशिश करता रहा। लेकिन सारी कंपनियों में मुझे मेरी स्पीच को वजह से रिजेक्ट कर दिया। वो मुझे पहले सवाल के बाद ही रिजेक्ट कर देते थे, कभी मेरी पढाई से सम्बंधित टेक्नीकल सवाल किया ही नहीं।”
सुशांत कहते हैं।
एक साल तक नौकरी ढूंढने के बाद सुशांत ने फैसला किया कि वे आगे की पढाई पोस्ट ग्रेजुएशन करेंगे ताकि अपने स्किल्स सुधार सकें। लेकिन मैट (MAT) में अच्छा स्कोर करने के बाबजूद बिजनेस स्कूलों के इंटरव्यू में उन्हें लगातार नजरन्दाज किया गया। आखिरकार बहुत कोशिश के बाद दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में सुशांत को दाखिला मिल गया।
सुशांत ने एम बी ए में भी अच्छा स्कोर किया। लेकिन पढाई में बेहतरी ने उनके कैरियर के लिए कोई भलाई नही की। वो बताते हैं कि उन्हें तकरीबन 40 कम्पनियों से रिजेक्शन का सामना करना पड़ा।
“एमबीए करने के 2 साल बाद मैं घर पर यूँ ही खाली बैठा था। हम मध्यम परिवार से आते हैं और हमें कमाना ही पड़ता है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि एमबीए करने क्व बाद भी मुझे ये झेलना पड़ेगा।” सुशांत कहते हैं।
यही वो समय था जब सुशांत ने कुछ अपना शुरू करने की सोची। लेकिन मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं था बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी कुछ करने का मन था। सुशांत ने अपने भाई प्रशांत के साथ बातचीत की। पढ़ने के शौक़ीन भाई ने सलाह दी कि कुछ भी शुरू करो उसमें किताबें जरूर शामिल हों। उन्हें अपने इंजीनियरिंग के दिन याद आए जब छात्र एग्जाम के लिए महँगी किताबें खरीदते थे और बाद में उन्हें कबाड़ी को सस्ते दामों में बेचना पड़ता था।
उन्होंने 2014 में ‘बोधि ट्री नॉलेज सर्विसेज एंड इनिशिएटिव पढ़ेगा इंडिया इनिशिएटिव’ नाम से अपनी कम्पनी रजिस्टर करवा ली।
पढ़ेगा इंडिया इनिशिएटिव साउथ दिल्ली में सेकेण्ड हैण्ड किताबें ऐसे लोगों तक पहुंचा रहा है जिनके पास महँगी किताबें खरीदने की क्षमता और दुर्लभ किताबों तक पहुँच नहीं है।
“हमारे बचपन में, गर्मियों की छुट्टियों में हम अपनी सोसाइटी में गरीब बच्चों के लिए लाइब्रेरी खोल देते थे। इस लाइब्रेरी में हम रीडर्स डाइजेस्ट, कॉमिक और अन्य कहानियों की किताबें रखते थे। किताबों के साथ फिर से कुछ करना ऐसे लगता है जैसे बचपन लौट आया है।” सुशांत बताते हैं
भारत में एक साल में प्रति व्यक्ति 10 किलो कागज की खपत होती है। सेकेण्ड हैण्ड किताबों की बिक्री और रेंट करने से किताबों की उपलब्धता बढ़ेगी और देश में कागज की मांग में गिरावट आने की संभावनाएं बढ़ेंगी। जिससे पेड़ों की कटाई में कमी आएगी। इसके लिए उन्होंने अपनी वेबसाइट पर ‘ग्रीन कॉउंट’ नाम से एक स्केल लगाया है जो ये मापता है कि उनकी बिक्री या रेंट से कागज की मांग में कमी और उससे कम होती पेड़ों की मांग पता चलती है। एक ग्रीन कॉउंट का अर्थ है 40 ग्राम पेपर को पुनः प्रयोग में लाया गया।
“भारत में प्रति व्यक्ति कागज की मांग 10 किलोग्राम है, तो यदि 250 ग्रीन कॉउंट कमाते हैं तो एक व्यक्ति की साल भर की मांग किताबों की पुनः बिक्री से पूरी होती है। इसका मतलब है कि हर 250 ग्रीन काउंट हम कमाते हैं तो 10 किलो पेपर की मांग पूरी करते हैं। ग्रीन कॉउंट नई किताबों की मांग को पुरानी किताबों के जरिए पूरी करने की सफलता को मापता है। हम पैकेजिंग में भी कागज की बचत करते हैं उसे भी इसमें जोड़ा जाता है।”
प्रशांत बताते हैं।
पीआईआई दोनों भाइयों के बैडरूम से शुरु होकर साउथ दिल्ली के बेहतरीन ऑफिस में पहुँच गयी है, जो उन्हें जीरो इन्वेस्टमेंट से अच्छा रिटर्न दे रही है।
शुरआत में दोनों भाइयों ने दिल्ली में सेकेण्ड हैण्ड बुक्स के मार्केट पहचाने और 40-50 वेंडरों से टाई अप किया। मांग के आधार पर इन वेंडरों से किताबें बेचीं जाती थीं। जब भी कोई ग्राहक किताब ऑर्डर करता तो प्रशांत खुद उसकी डिलिवरी करते ताकि कस्टमर और कंपनी का नाम अच्छा बन जाए। ग्राहक जब किताब की क्वालिटी से संतुष्ट हो जाता है तभी उसे भुगतान करना होता है।
कोई भी अपनी पुरानी किताबें प्रयोग न होने पर बेच या डोनेट कर सकता है जैसे प्रतियोगिता की तैयारी की किताबें। ऐसी किताबें बेचने वाले के घर से बिना किसी अतिरिक्त चार्ज के कलेक्ट को जाती हैं।
योगिता गांधी पढ़ेगा इंडिया की रेगुलर ग्राहक हैं। वे अनुभव बताते हुए लिखती हैं,
“आप खुशियाँ नहीं खरीद सकते लेकिन किताबें खरीद सकते हैं और ये खुशियाँ खरीदने जैसा है। ये संस्था इसी राह पर काम कर रही है। मुझे पढ़ेगा इंडिया का ग्राहक होने पर गर्व है चाहे वो उनकी सर्विस हो या किताबें।”
पढ़ेगा इंडिया अभी साउथ दिल्ली और एन सी आर में उपलब्ध है। जल्द ही दोनों भाई इसे देश भर में फैलाना चाहते हैं। दोनों जल्द ही बेंगलूर में अपने नए आउटलेट को शुरू करने वाले हैं। इस इनिशिएटिव को हाल ही में डिपार्टमेंट ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रमोशन एन्ड पॉलिसी ने स्टार्ट अप के रूप में संस्तुत किया है और किसी इन्वेस्टर की तलाश में है।
सुशांत अभी मानते हैं कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। कहते हैं,
“मैं खुशनसीब हूँ कि ये मेरे साथ हुआ क्योंकि आपके पास एक ही ज़िन्दगी है और आपको इसी जीवन में समाज को भी कुछ वापस देना है। मैं खुश हूँ कि मुझे लोगों ने रिजेक्ट किया और मुझे ये सब करने का मौका मिला। समाज में जिस किसी को भी किसी भी वजह कमतर समझा गया, उन सबके लिए मैं कहना चाहता हूँ कि आपको मेहनत करने की जरूरत है। आपको नम्र होकर अपनी प्रतिष्ठा से समझौता करने की बजाय निष्ठता से अपने सपने पाने के लिए काम करने की जरूरत है। अगर तुम लगे रहोगे तो हमेशा आखिर में खुशियाँ तुम्हारा इंतज़ार करती मिलेंगी।”
अगर आप पढ़ेगा इंडिया के बारे में और जानना चाहते हैं तो इस लिंक पर जा सकते है।
राजस्थान के बारन जिले के बमोरी कला गाँव में एक किसान के बेटे ने खेती के लिए गज़ब का अविष्कार किया है। योगेश नागर ने ट्रैक्टर को चलाने वाले रिमोट का अविष्कार किया है जिससे दूर बैठकर ट्रैक्टर को चलाया जा सकता है। इस अनौखे अविष्कार के साथ-साथ उन्होंने अबतक 30 अविष्कार किए हैं। इस युवा की ज़िन्दगी भी रोचक है।
द बेटर इंडिया ने राजस्थान के इस अनोखे आविष्कारक- योगेश नागर से बात की और जाना उनके अविष्कार और ज़िन्दगी के बारे में…
योगेश नागर की दसवीं तक पढाई गांव में ही हुई। बड़ी मेहनत से पढ़ते हुए योगेश बोर्ड परीक्षा में गांव के टॉपर रहे तो आगे की पढाई के लिए पास के ही जिले कोटा चले गए। वहां 12 वीं की पढाई करते वक़्त योगेश का मन पढ़ने से ज्यादा कुछ न कुछ नया बनाने में लगा रहता था, उस समय वे आर्मी के लिए एक ऐसा वाहन बनाने में जुट गए जिसे आंधी-तूफान या अँधेरे जैसी स्थिति में कभी भी कहीं से भी चलाया जा सके, इस खोज में जुटे रहने की वजह से उनके अंक परीक्षा में कम आए लेकिन उन्होंने एक साथ कई अविष्कार कर डाले।
अब तक 30 अविष्कार कर चुके योगेश बताते है, “मैं 7 वीं कक्षा से अविष्कार कर रहा हूँ, भाप से जुड़े कई अविष्कार किए। घर की स्थिति ठीक नहीं थी तो अविष्कारों में लगने वाले सामान के लिए पैसा कम मिल पाता था। फिर भी मेरा मन कुछ न कुछ खोजने में लगा रहता है। जब भी कोई दिक्कत सामने होती है, इसे लेकर हर रात सोने से पहले सोचने लगता हूँ और कई दिनों में कुछ न कुछ नया आइडिया मेरे दिमाग में आ जाता है।”
महज 19 साल के योगेश अभी बी एस सी प्रथम वर्ष के छात्र हैं।
योगेश के पिताजी गांव के खेतों की जुताई करने और अन्य कृषि कार्यों के लिए ट्रैक्टर चलाते हैं। खेतों की बुआई के सीजन में रात-रात भर ट्रैक्टर चलाना पड़ता है, ताकि सबकी बुआई समय पर हो। इसी तरह फसलों की कुटाई के वक़्त दिन-रात ट्रैक्टर की सीट पर ही गुजरते हैं।
घर की स्थिति बताते हुए योगेश कहते है, “ट्रैक्टर हमने लिया था पर हमारा नहीं था। 2004 में पिताजी ने मामा की जमीन गिरवी रखकर ट्रैक्टर लोन पर लिया था। जिसकी कीमत चुकाने के लिए दिन-रात जुटे रहते थे।”
ट्रैक्टर खेतों में चलाना कई तरह की चुनौतियों से भरा होता है, लगातार ट्रैक्टर खेतों के ऊँचें-नीचे चढाव-उतराव पर चलाने से शरीर के कई हिस्सो में परेशानी होने की सम्भावना होती है।
योगेश के पिता
यही योगेश के पिताजी के साथ हुआ। लगातार ट्रैक्टर चलाने की वजह से उन्हें पेट में दर्द की शिकायत होने लगी।
“पिताजी पिछले 30 साल से ट्रैक्टर चला रहे हैं, दिन रात ट्रैक्टर की सीट पर बैठने से पेट दर्द की शिकायत हुई और डॉक्टर ने आराम करने की सलाह दी। पर पिताजी नहीं माने और वे ट्रैक्टर चलाते रहे, क्योंकि घर की जरूरतें ऐसी थीं कि वे मजबूर थे।”
डॉक्टर की सलाह न मानने के कारण योगेश के पिताजी की स्थिति में सुधार नहीं हुआ। तब योगेश ने इसके लिए कोई रास्ता निकालने की सोची और जुट गए। योगेश ने ट्रैक्टर को बड़े ध्यान से देखना और समझना शुरू किया। दो दिन तक ट्रैक्टर को गहराई से समझने के बाद योगेश अपने काम पर जुट गए। उनका मकसद था पिताजी को ट्रैक्टर की सीट से हटाकर सुरक्षित करना और उसके लिए उन्हें ऐसा यन्त्र तैयार करना था जो बिना ड्राईवर के ट्रैक्टर को चला सके।
“मैंने दो दिन ट्रैक्टर को ध्यान से देखा और फिर रिमोट का मॉडल बनाने में जुट गया। 2004 मॉडल के ट्रैक्टर में तब पॉवर ब्रेक जैसे फंक्शन भी नहीं थे, फिर भी मैंने पिताजी से 2000 रूपये लिए और उनके लिए एक सेम्पल मॉडल बनाकर उन्हें दिखाया। पिताजी को पहले भरोसा नहीं था पर फिर मॉडल देखकर उन्हें पसन्द आया और उन्होंने रिमोट बनाने के लिए पैसा मंजूर कर दिया।”
पिताजी से 50 हज़ार रूपये लेकर योगेश ने अपना काम शुरू कर दिया। रिमोट मे लगने वाले बहुत से पार्ट उन्होंने घर पर ही बनाए।
इस वर्ष जून में ही उन्होंने पिताजी को सेम्पल मॉडल बनाकर दिखा दिया था; फिर अगले दो महीनों में उन्होंने पूरा रिमोट बनाकर ट्रैक्टर चला दिया।
रिमोट बनाते वक़्त उन्होंने ध्यान रखा कि उसका मॉडल ठीक वैसा ही हो जैसा ट्रैक्टर में होता है।
“मेरे लिए चुनौती थी कि इस रिमोट को पिताजी चलाएंगे कैसे? इसलिए मैंने उसमें सबकुछ उसी तरह रखा जैसे ट्रैक्टर में होता है। रिमोट में ट्रैक्टर की तरह स्टेयरिंग है, क्लच, ब्रेक और गियर उसी तरह बनाने की कोशिश की है, ताकि किसान को चलाने में दिक्कत न आए।”
रिमोट में सेटेलाइट से ट्रैक्टर को कनेक्ट किया गया है। और डेढ़ किलोमीटर की रेंज तक ट्रैक्टर को इस रिमोट से चलाया जा सकता है। किसान खेत की मेंड़ पर बैठकर आराम से खेत की जुताई कर सकता है।
योगेश के गांव में बिना ड्राइवर के ट्रैक्टर चलता देख लोग कौतूहल से भर गए। उन्होंने अपने इस मॉडल का वीडियो बनाकर यूट्यूब और व्हाट्सएप पर डाला तो वायरल हो गया। उसके बाद उनके पास कई किसान आए जिन्होंने इस तकनीक को अपने ट्रैक्टर में लगाने की मांग योगेश के सामने रखी।
रिमोट लगाने की कीमत के सवाल पर योगेश कहते हैं, “जैसे जैसे लोगों को पता चल रहा है, वो मेरे पास आ रहे हैं। अभी तक करीब 50 से 60 किसान मेरे पास आए हैं, जो अपने ट्रैक्टरों में ये तकनीक लगवाना चाहते हैं। मैं कोशिश कर रहा हूँ कि उन सब की मदद कर पाऊँ और इसे सस्ती से सस्ती कीमत में किसानों तक पहुंचाया जा सके”
वैसे योगेश का मानना है कि अगर इस पर थोडा और रिसर्च किया जाए तो इसकी कीमत 30 हज़ार रुपए तक आ सकती है। योगेश के पास आए किसानों ने इस रिमोट को लगाने के लिए एक लाख रूपये तक खर्च करने की बात कही है।
योगेश के पिता बाबूराम नागर खुश हैं और अपने बेटे पर गर्व करते हुए कहते हैं,”बेटे ने हमारे दर्द की वजह से इसका अविष्कार किया पर अब ये हमारे जैसे और भी किसान भाइयों के काम आएगा। इस बात की हमें ख़ुशी है और अपने बेटे पर गर्व है।”
योगेश का सपना है कि वे आर्मी के लिए एक अनोखा वाहन बनाएं।
योगेश अपनी 11 वीं कक्षा से आर्मी के लिए एक अनोखा वाहन डिजाइन कर रहे हैं, जो किसी भी मुसीबत में लड़ने के लिए तैयार हो। अब तक 30 से अधिक अविष्कार कर चुके योगेश एंटी-थेप्ट मशीन भी बना चुके हैं, जो आपके घर में किसी के घुसने की जानकारी आपको दुनियां के किसी भी कोने में दे सकती है। इसके साथ ही योगेश ने पॉवर सेवर नाम से एक उपकरण बनाया है जो सेटेलाइट से कनेक्ट होने की वजह से सभी बिजली उपकरणों को बन्द या चालू कर सकता है। इससे खेतों में लगे ट्यूबवेल भी घर बैठे चलाए जा सकते हैं, और खेत में बैठकर घर में जलती लाइट को भी बुझाया जा सकता है।
अपने अविष्कारों के बारे ने बात करते हुए योगेश कहते हैं कि, “अब तक मैंने कुल 30 अविष्कार किए हैं; कुछ और अविष्कारों पर काम जारी है। मुझे जो भी समस्या अपने आसपास दिखती है, उसे मैं पहले गौर से समझता हूँ, फिर उसके समाधान के लिए 8 से 9 दिन रिसर्च करता हूँ और फिर कुछ ऐसा निकलता है जो अविष्कार बन जाता है। मुझे अविष्कारों में लगने वाले सामान के लिए पैसे की जरूरत रहती है जो नहीं मिल पाता। तो अगर सरकारी या निजी सहयोग मिले तो मैं अपने सपने को साकार कर पाउँगा और देश के लिए मेहनत से जुटकर कुछ योगदान दे पाउँगा।”
द बेटर इंडिया की ओर से योगेश के अविष्कार पर उन्हें बधाई और ऐसे युवाओं को सहयोग करने के लिए आप से निवेदन करते हैं कि जो सम्भव सहायता हो सके आप करें। आप अगर योगेश तक अपनी कोई भी सहायता पहुँचाना चाहते हैं, तो उनके इस नम्बर 8239898185 पर सम्पर्क कर सकते हैं।
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2018-19 के पूर्णकालिक बजट की घोषणा कर दी गयी हैं. इस बजट से किसानों को कई उमीदें थी और सरकार की माने तो उन्होंने अपनी नीतियों में ऐसे बदलाव भी किये है जिनसे किसान को लाभ मिलेगा. पर क्या ये नीतियाँ सही में कारगर साबित होंगी? क्या किसान क़र्ज़- मुक्त हो पायेगा? क्या किसानो की आत्महत्याएं रुकेंगी? और क्या इन नीतियों से ज़मीनी तौर पर बदलाव आएगा? इन सब सवालों के जवाब ढूंडने के लिए हमने अखिल भारतीय किसान संघ (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजाराम त्रिपाठी से ख़ास बातचीत की.
डॉ. त्रिपाठी ने बजट में किसानो के लिए किये प्रावधान पर अपने विचार रखें तथा किसानो की ओर से इन पर सुझाव भी दिए!
डॉ. राजाराम त्रिपाठी
तो आईये जानते है डॉ. त्रिपाठी से कि किसानों के हित में नज़र आ रहें बजट में किये गए 6 प्रावधानों पर उनकी क्या राय हैं और वे इन पर क्या सुझाव देना चाहेंगे –
1.कृषि ऋण में 11 लाख करोड़ का इज़ाफा
डॉ त्रिपाठी – बजट में कृषि ऋण में 11 लाख करोड़ का इजाफा करने की घोषणा सरकार ने की हैं, जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि इस घोषणा का लाभ लघु व सीमांत किसानों को मिलने के बजाय बड़े किसानों और कृषि व्यवसाय से संलग्न लोगों को होगा. वैसे भी अतीत की स्थितियां बयां करती है कि ऋण सीमा बढ़ाने से किसानों का भला होने के बजाय इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. किसान कर्ज के मकड़जाल में उलझ जाते हैं और अंततः आत्महत्याओं की संख्या बढ़ जाती है.
सुझाव –
क़र्ज़ देने की प्रक्रिया को सरल किया जाएँ . दस्तावेजीकरण न्यूनतम रखे. वास्तव में जो कर्जा दिखता है, उसका अधिकतम भाग रासायनिक खाद , बीज , दवाई , कृषि आदानों के नाम से दिया जाता हैं. कृषि निति इस तरह की हो की ऋण लेने की ज़रूरत ही न पड़े और यदि ज़रूरत पड़े भी तो इसकी प्रकिया का सरलीकरण हो. इसके अलावा क़र्ज़ माफ़ी भी नहीं होनी चाहिए बल्कि अदायगी में कुछ रियायत बरतने की ज़रूरत हैं.
2.उपज की लागत का न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना
डॉ त्रिपाठी- किसानों को उनके उपज की लागत का न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना देने की बात कही गई हैं, पर जो लागत तय करने का सरकारी तंत्र है, उसमे लागत ही सटीक रूप से तय नहीं हो पाता है. ऐसे में न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना भी कठिन हैं. इसके अलावा इस उपज की खरीद भी अगले वर्ष से होगी. अर्थात अभी तुरंत किसानों को कोई लाभ नहीं मिल पायेगा.
सुझाव : फसल के लागत मूल्य निर्धारण में किसान तथा उसके परिवार के श्रम का मूल्य अर्थात मज़दूरी भी शामिल की जानी चाहिए तथा जिस भूमि पर खेती की जा रही है उसका किराया भी फ़सल की लागत में जोड़ा जाना चाहिए. कृषि मशीनरियों की लागत पर ब्याज़ की गणना करके उसे भी फ़सल लागत व्यय में शामिल करना होगा, साथ ही साथ फ़सल के प्रबंधन व्यय, मंडी तक पहुंचाने का खर्च तथा बाज़ार में बेचने की प्रक्रिया में लगे खर्च को भी जोड़ना होगा। फ़सल की लागत निर्धारण की प्रक्रिया को पारदर्शी युक्ति युक्त तथा वास्तविक एवं ज़मीनी हक़ीक़त के आधार पर तैयार करना ज़रूरी है।इस प्रक्रिया में सभी वर्ग के वास्तविक किसानों को शामिल किया जाना चाहिए।
4.लघु व कुटीर उद्योगों के विकास के लिए 200 करोड़
डॉ त्रिपाठी – लघु व कुटीर उद्योगों के विकास के लिए 200 करोड़ और स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए दो लाख 40 हजार करोड़ रुपये आवंटित किया गया है. उल्लेखनीय है कि देश की 68.84 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है तथा उनकी आजीविका में लघु व कुटीर उद्योगों का काफी महत्व है ऐसे में 200 करोड़ रुपये इस क्षेत्र के लिए नकाफी है. ऐसी स्थिति में ग्रामीणों का पलायन होगा और खेती-किसानी पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
सुझाव :
देश के 2,36,000 से भी अधिक गांवों के विकास के लिए एक दूरगामी, दीर्घकालीन लघु एवं कुटीर उद्योग विकास नीति की आवश्यकता है एवं बिना ग्रामीण उद्योगों के विकास के हम अपने बहुसंख्य बेरोज़गार नौजवानो कोरोज़गार मुहैया नहीं करा पाएंगे ।अतः लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए बजट में अधिक से अधिक राशि के प्रावधान करने होंगे तथा हमारे विभिन्न परम्परागत ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देना होगा।
4. खाद्य प्रसंस्करण के लिए 1400 करोड़ रुपये आवंटित
डॉ त्रिपाठी – वित्तमंत्री ने खाद्य प्रसंस्करण के लिए 1400 करोड़ रुपये आवंटित किये है, जब कि प्रतिवर्ष खाद्यप्रसंस्करण के अभाव में 92 हजार करोड़ रुपये मूल्य के फल और सब्जियां सड़ जाती है और फेंकी जाती है. सिंचाई को लेकर कोई दूरगामी योजना नहीं दिखी.
सुझाव :
फसलों के उत्पादन के बाद उत्पाद के समुचित रख रखाव , समुचित भंडारण, उचित परिवहन तथा विभिन्न स्तरीय उचित प्रसंस्करण की व्यवस्था विकास फंड तथा जिला स्तर पर किया जाना नितांत ज़रूरी है। इस कार्य हेतु निजी क्षेत्र से भी पूंजी निवेश हेतु सहभागिता की जानी चाहिए। भारत की खुदरा बाज़ार जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में 100% पूंजी निवेश हेतु लालायित विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ऐसे ही ग्राम्य उद्यमों/उपक्रमों में सहभागिता हेतु आकर्षित , प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
5. जैविक खेती को बढ़ावा
डॉ त्रिपाठी – जैविक खेती को बढ़ावा देने की बात की जा रही है लेकिन रसायनिक खाद के लिए तय की गयी राशि में से कितनी राशि को जैविक खेती के लिए हस्तांतरित किया जाएगा, इस पर स्पष्ट कुछ नहीं कहा गया है. वहीं जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाया गया है. ऐसे में जैविक खेती को कैसे बढ़ावा मिलेगा, यह एक बड़ा सवाल है.
सुझाव :-
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयास किए जाने की आवश्यकता है । रासायनिक खादों के लिए करोड़ों का अनुदान देते रहने से जैविक खेती कैसे आगे बढ़ेगी? रासायनिक खाद के लिए दिया जाने वाला अनुदान जैविक खाद पर परावर्तित किया जाना चाहिए. जो किसान जैविक खेती कर रहे हैं तथा अपने खेतों के लिए स्वयं जैविक खाद तैयार कर रहे हैं उन्हें भी रासायनिक खाद पर दिए जा रहे अनुदान की तर्ज़ पर जैविक खाद पर अनुदान दिया जाना चाहिए तभी जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा. इसके अलावा जैविक उत्पादों के बाज़ार को भी बढ़ावा दिए जाने की ज़रूरत है.
जैविक खेती के तथा जैविक उत्पादों की प्रमाणीकरण हेतु समुचित निति बनाए जाने की ज़रूरत है. प्रमाणीकरण पर लगाए जा रहे जीएसटी/GST की 18 प्रतिशत tax को तत्काल हटाया जाना चाहिए तथा जैविक उत्पादों पर पूरी तरह से कर मुक्त व्यवस्था लानी चाहिए जिससे कि सही मायने में जैविक खेती तथा जैविक उत्पादोंको बढ़ावा मिले एवं किसानों के साथ ही साथ भारत के खेतों की ज़मीन की दशा सुधरेगी।
6. स्वास्थ्य बीमा के लिए 50 हजार करोड़ रुपये
डॉ त्रिपाठी – स्वास्थ्य बीमा के लिए 50 हजार करोड़ रुपये आवंटित किया गया है, लेकिन ग्रामीण
क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे की स्थिति बदहाल है. ऐसे में यह ग्रामीणों के लिए कम और बीमा कंपनियों की हितों को ज्यादा लाभ पहुंचायेगा..
सुझाव :-
सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार तथा विस्तार किया जाना
आवश्यक है। गांवों में अपेक्षित संख्या में अस्पतालों की कमी है जहाँ अस्पताल है वहाँ चिकित्सकों की कमी दवाइयों का भी अभाव है. विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी तो जिला स्तरीय चिकित्सालयों में भी है। इसलिए सर्वप्रथम भारत की परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों का विस्तार किया जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुविधाओं को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने के उपरांत ही ग्रामीण स्वास्थ्य बीमा का समुचित लाभ ग्रामीण
जनता को मिल पाएगा।
डॉ राजा राम त्रिपाठी अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के अध्यक्ष हैं और कई सालों से बस्तर के दंतेवाडा इलाके में औषधीय वनस्पतियों की किसानी कर रहे हैं. वे Central Herbal Agro Marketing Federation of India (CHAMF India ) के चेयरमैन तथा
Aromatic Plants Growers Association of India ( APAGAI) के जनरल सेक्रेटरी भी हैं.
15 फरवरी को असम के माजुली आयलैंड में भारतीय सेना का माइक्रोलाइट हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था। इसमें सवार दोनों ही पायलटों की मौत हो गई थी। हेलीकॉप्टर ने असम के जोरहट्ट से उड़ान भरी थी और उसे सामान लेकर अरूणाचल प्रदेश पहुंचना था। लेकिन उससे पहले ही माजुली आयलैंड में ये हादसा हो गया। मरने वाले दो पायलटों में से एक थे विंग कमांडर जयपाल जेम्स और दुसरे थे विंग कमांडर दुष्यंत वत्स।
तस्वीर में दिख रही मेजर कुमुद डोगरा, शहीद विंग कमांडर दुष्यंत वत्स की पत्नी हैं।
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इस तस्वीर में मेजर कुमुद अपनी आर्मी यूनिफॉर्म में दिख रही हैं। साथ ही उनकी गोद में उनकी पांच दिन की बच्ची है। पांच दिन की बच्ची को गोद में लिए मेजर कुमुद अपने शहीद पति के अंतिम संस्कार में जा रही है।
हम अक्सर सरहद पर हमारी रक्षा करतें जवानों की हिम्मत की दाद देते हैं। उनके शौर्य की गाथाएं इतिहास में लिखी जाती हैं। पर हमारी सलामी के जितने हक़दार हमारे जवान हैं, उनते ही उन्हें गर्व से ख़ुशी-ख़ुशी देश पर कुर्बान कर देने वाले उनके घर के सदस्य भी हैं।
शहीद विंग कमांडर दुष्यंत वत्स का नाम तो इतिहास में हमेशा अमर रहेगा ही साथ ही उनकी पत्नी के इस जज़्बे को भी लोग कभी नहीं भुला पाएंगे! देश की ऐसी वीरांगनाओं को हमारा सलाम!
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आज़ादी के महज़ १५ महीनो बाद, देश, चाचा नेहरू का जन्मदिभीख मांगकर पाला बेसहारो को! हज़ारो की माई – सिंधुताई सपकाळ !न बाल दिवस के रूप में मना रहा था। इसी दिन यानी १४ नवंबर १९४८ को, पिंपरी मेघे, वर्धा गाँव के एक गरीब भैंस चराने वाले अभिमान साठे के घर एक बच्ची का जन्म हुआ। किसी को नहीं पता था कि बाल दिवस के दिन पैदा हुई ये लड़की एक दिन हज़ारो बच्चों की माई बन जायेगी।