झारखंड सरकार में चतुर्थवर्गीय कर्मचारी के बेटे के पांव में शीशा क्या चुभा उसने पूरे पहाड़ को ही साफ-सुथरा करने की जिद ठान ली। उसने ना सिर्फ टूटे-फूटे शीशों को चुनना शुरू कर दिया, बल्कि उन टुकड़ों से कई डस्टबीन भी बना दिए। लोगों से इसका इस्तेमाल करने की अपील भी की जा रही है। यही कारण है कि जिस पार्क में जगह-जगह पर कभी कचरा हुआ करता था, आज स्वच्छ और सुंदर होने जा रहा है।

हम बात कर रहे हैं देवघर में विशेष भू अर्जन मध्यम सिंचाई विभाग में प्रोसेस प्यून पद पर तैनात जीतेंद्र महतो की, जो कि रोज सुबह शहर से दो किलोमीटर दूर टहलने के लिए नंदन पर्वत पर जाते थे। एक दिन बेटे संजय कुमार ने भी जाने की जिद की। जीतेंद्र ने उसे भी साथ ले लिया और अपने बेटे को ध्यान से खेलने के लिए भी कहा। डर था कि कहीं शीशे ना चुभ जाएँ। लेकिन तब तक संजय के पाँव शीशे से कट चुके थे। खून निकलने लगा।
जब जीतेंद्र बेटे को लेकर घर की तरफ बढ़ने लगे तो उसके बेटे ने कहा कि आखिर लोग शीशा उठाते क्यों नहीं हैं। उस समय तो उसने अपने बेटे को चुपचाप घर जाने की नसीहत दी, लेकिन एक दिन फुरसत के पल जीतेंद्र के मन में उस जगह को साफ करने की इच्छा जाग उठी। पहले तो उसने सिर्फ उन्हीं जगहों को साफ करना शुरू किया, जहाँ रोजाना बैठना होता था। गंदगी का अंबार इतना था कि महज दस फीट जगह को साफ करने में तीन दिन लग गए।

शुरू में शर्म भी लगी, लोगों ने भी टोका
जीतेंद्र को शुरुआत में सफाई करते हुए शर्म भी लगी। लोगों ने भी उसे टोका। लोगों का कहना था कि क्यों इतना मेहनत करते हो। जीतेंद्र ने द बेटर इंडिया को बताया, “इसके बाद मुझे नंदन पर्वत स्थित पार्क के बारे में पता चला। वहाँ भी देखा कि हर तरफ कचरा ही कचरा भरा है। शीशे के टुकड़े जगह-जगह बिखरे हुए थे। फिर मैंने उसे साफ करना शुरू किया। जब भी समय मिलता है, साफ करने चला जाता हूँ।”
शीशे के टुकड़ों से एक साल में बना दिए 20 डस्टबीन
जीतेंद्र ने कहा, “मैंने एक साल तक इस पार्क को साफ किया। लॉकडाउन के कारण बीच में काम रोकना पड़ा। फिर से शुरू कर चुका हूँ। इस एक साल में मैंने काँच के छोटे-बड़े टुकड़ों को इकट्ठा किया। मैंने छोटे टुकड़ों को सीमेंट और बालू के साथ मिलाकर 10 डस्टबीन बनाए हैं।”

पार्क साफ करने के लिए लेनी पड़ी थी इजाजत
नंदन पर्वत स्थित उस पार्क को साफ करने के लिए जीतेंद्र को रुकावटों का भी सामना करना पड़ा। जीतेंद्र बताते हैं, “काम जब शुरू किया तो मैनेजर से बहस भी हो गई। मैं एक तरफ शीशों को चुनकर इकट्ठा कर रहा था, दूसरी तरफ मुझ पर शीशा इधर-उधर फेंकने का आरोप भी लगाया गया। इसके बाद काम रुक गया। फिर मैंने इजाजत लेने के लिए संबंधित अधिकारियों से मिला। उन्होंने बताया कि जब बोर्ड की बैठक होगी उसमें इस मुद्दे पर बात होगी। बाद में मुझे काम करने की इजाजत मिल गई।”
पूरे नंदन पर्वत को साफ करने का है सपना
जीतेंद्र का इरादा नंदन पर्वत की तरह ही मजबूत है। उसने दो किलोमीटर में फैले इस पूरे पर्वत को एक दिन पूर्ण रूप से स्वच्छ और सुंदर बनाने का सपना देखा है। जीतेंद्र ने बताया, “इस पहाड़ पर घूमने के लिए आसपास के करीब 500 लोग आते हैं। पहले लोग मुझे यहाँ का स्टाफ समझते थे, जिसका काम साफ-सफाई करना है। लेकिन धीरे-धीरे उनका भी सहयोग मिलने लगा, जिससे मेरे हौसले और मजबूत हुए। मैं एक दिन इस पूरे पर्वत को स्वच्छ और साफ करूँगा।”

तालाब के किनारे की भी सफाई
नंदन पहाड़ के पास ही एक बड़ा सा तालाब है, जिससे पूरे शहर को पानी की सप्लाई की जाती है। दिसंबर और जनवरी के महीने में लोग इसके किनारे पार्टी करने के लिए आते हैं। इस दौरान वे ढेर सारा कचरा छोड़ जाते हैं। इससे तालाब का पूरा किनारा गंदा हो जाता है। जनवरी और फरवरी के शुरुआत के दिनों में जीतेंद्र ने इसकी सफाई की भी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले रखी है। महीने में तकरीबन 15 दिन इस तालाब के किनारे की सफाई करने में वह अपना समय देते हैं।

सफाई के साथ-साथ वृक्षारोपण का भी है शौक
जीतेंद्र को सफाई के साथ-साथ पौधे लगाने का भी शौक है। उन्होंने बताया, “देवघर में मैंने इस साल करीब 70 पौधे लगाए हैं। 200 के करीब और लगाने हैं। मुझे जहाँ खाली जगह दिखती है, वहाँ पौधे लगा देता हूँ। अभी तक एक हजार से अधिक पौधे लगा चुका हूँ।”

जीतेंद्र का मानना है कि हर धर्म के इंसान का अंतिम साथी पौधा ही है। लोगों को अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहिए। साथ ही अपने आसपास की सफाई भी जरूर रखनी चाहिए।
यदि आप भी जीतेंद्र की इस मुहिम में अपना योगदान देना चाहते हैं तो उनसे 7488349671 पर संपर्क कर सकते हैं।
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