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ये बच्चा अल्ला का है!

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क बच्चा अल्ला का है
एक शालीग्राम का
एक तुलसी से है निकला
एक तालिबान का

और हद देखिये कि विज्ञान सिखाता है कि बच्चा नर और मादा मिल कर पैदा करते हैं. बेवक़ूफ़ हैं ये सारे शिक्षक और वैज्ञानिक, अहमकों को इतना भी नहीं मालूम कि उनके यहाँ के बच्चे अल्ला देता है और हमारे यहाँ भगवान्. कई जगह ईसा को काम सौंपा है बच्चे भेजने का तो कहीं वाहे गुरु की मेहर है.

और चम्पू ये ही बता कि ये भगवान् को इतने ही प्यारे होते तो क्या शूद्र पैदा होते?
अरे भाई पढ़े-लिखे हैं, तुम्हारी साइंस भी पढ़ी है लेकिन जानते हो पुनर्जन्म के बारे में? साइंस को कितना पता है? ठीक है चाँद पर पहुँच गए पर क्या इससे आगे जा पाए? चलो मंगल तक पहुँच गए तो कौन सा तीर मार लिया, क्या मिल गया वहाँ? कंकड़-पत्थर ही हासिल हुए न? बड़े आये साइंस की दुहाई देते हो? टूथपेस्ट बना लिया तो बड़ी बात हो गयी? क्या कहा कंप्यूटर, फ़ोन? अब सुनो यार तुमसे बहस कौन करे सबको पता है कि क्या

कितने अंधविश्वासी हैं ये हिन्दू. नमाज़ तो इसलिए पढ़ते हैं कि साइंटिफ़िक होता है.. चलो छोड़ो अपने को क्या लेना, अपन किसी धर्म के ख़िलाफ़ क्यों बात करें, क्यों हो? हम तो भैया दरगाह शरीफ़ पर चादर चढ़ा के आये थे तब ये साहबज़ादी दुनिया में आयीं हैं.

ये बातें अकबर के राज में भी थीं.
ये बातें आज भी हैं.. कोई सत्य होगा बात में, भगवान की भगवानी में, अल्ला की अल्लाई में तभी तो ये बातें आज भी हो रही हैं.. इसके ख़िलाफ़ बात करने वाले नरक में जाएंगे नास्तिक, साले काफ़िर हैं..

अगर किसी को कोई शुबहा हो तो इस बात को अभी दूध का दूध पानी का पानी किये देते हैं आज के वीडियो में.
विष्णु खरे, हमारे वरिष्ठ कवि हैं, उनकी रचना ‘गूंगमहल’ प्रस्तुत कर रहे हैं अविनाश दास – वही, जिन्होनें स्वरा भास्कर के साथ ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ फ़िल्म निर्देशित की थी. तो लीजिये पेश है:

लेखक –  मनीष गुप्ता

फिल्म निर्माता निर्देशक मनीष गुप्ता कई साल विदेश में रहने के बाद भारत केवल हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार करने हेतु लौट आये! आप ने अपने यूट्यूब चैनल ‘हिंदी कविता’ के ज़रिये हिंदी साहित्य को एक नयी पहचान प्रदान की हैं!


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कभी एक हॉल में चलाये जा रहे इस स्कूल को गुजरात के इस आईपीएस अफ़सर ने तिमंजिली ईमारत में बदल दिया!

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गुजरात के वडोदरा में विश्वामित्री के कवि दयाराम प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहे सैंकड़ों गरीब बच्चों को अब प्राइवेट स्कूल के जैसे ही सुविधाएँ मिल रही हैं। यह स्कूल वडोदरा नगर निगम द्वारा चलाया जाता है।

आज से 8 साल पहले, साल 2010 में स्कूल के नाम पर केवल एक हॉल था। जिसमे क्लास 1 से क्लास 7 तक के लगभग 326 बच्चों को दो शिफ्ट में पढ़ाया जाता था। उस समय, ‘कन्या केलावानी और शाला प्रवेशोत्सव’ अभियान में भाग लेने के लिए वडोदरा शहर के तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त जी. एस मलिक को आमंत्रित किया गया था।

आईपीएस मलिक ने जब स्कूल की हालत देखी तो उन्होंने छात्रों के लिए कुछ करने का निर्णय किया।

उन्होंने बताया, “जब मैंने स्कूल का दौरा किया तो यह 50 वर्षीय ईमारत में किराये पर चल रहा था। यह केवल एक  650 वर्ग फुट क्षेत्र का हॉल था, जिसमें कक्षा 4, कक्षा 5, कक्षा 6 और कक्षा 7 के बच्चे चार अलग-अलग कोनों में बैठते थे। क्लास तो दूर यह शौचालय भी अच्छी स्थिति में नहीं थे।”

स्कूल की हालत देखने के बाद उन्होंने तत्कालीन मुख्य सचिव हसमुख आधिया को पत्र लिखा और मदद के लिए अपील की। स्कूल के पूर्व प्रिंसिपल स्वर्गीय अब्दुल काडियावाला ने भी बहुत लोगों से स्कूल के बारे में मदद मांगी। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

आईपीएस मलिक के मुख्य सचिव से बात करने के बाद इस मामले में सचिव आर.पी गुप्ता ने भी मदद की।

मलिक ने कहा कि उन्हें बहुत संतुष्टि है कि अब बच्चों के पढ़ने के लिए अच्छी ईमारत है। स्वर्गीय काडियावाला की पत्नी साईंदा स्कूल में अभी भी कक्षा 1 को पढ़ाती हैं।

स्कूल के प्रिंसिपल संदीप पटेल ने बताया, “साल 2014 में बनी इस बिल्डिंग में 13 कक्षाएं हैं और लड़कों व लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय हैं।”

हम आईपीएस मलिक द्वारा उठाये गए कदम की सराहना करते हैं और उम्मीद करते हैं कि शिक्षा की दिशा में समय-समय पर इस तरह की पहल होती रहे।

कवर फोटो


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जानिए कौन है मुंबई की सडकों पर पंखा बेचने वाला लड़का, जिसे ढूंढ रहे थे आनंद महिंद्रा!

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बिजनेस टाइकून आनंद महिंद्रा अपने बिजनेस के साथ-साथ ट्विटर पर उनके द्वारा ट्वीट किये गए फोटो और वीडियो के लिए भी प्रसिद्द हैं। जी हाँ, अक्सर वे ऐसे साधारण लोगों के बारे में ट्वीट करते हैं जिनमें कोई हुनर हो। वे न केवल इन हुनरमंद लोगों के बारे में ट्वीट करते हैं बल्कि उनकी मदद भी करते हैं। हाल ही में उनकी इस दरियादिली का एक और उदाहरण सामने आया।

दरअसल, 2 जुलाई 2018 को एक ट्विटर यूजर ऑस्टिन स्कारिआ ने एक बच्चे की वीडियो पोस्ट की। इस पोस्ट में उन्होंने आनंद महिंद्रा व रतन टाटा को टैग करते हुए एक बच्चे के बारे में बताया जो अलग-अलग भाषाएँ बोलकर मुंबई की सड़कों पर पंखा बेचता है।

इस वीडियो को जब आनंद महिंद्रा ने देखा तो वे इस बच्चे की काबिलियत से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने ऑस्टिन के ट्वीट को रीट्वीट किया और लोगों से इस बच्चे के बारे में पता लगाने की अपील की।

उनका पोस्ट ट्विटर पर वायरल हो गया। बहुत लोगों ने कमेंट कर बताया कि यह वीडियो पुरानी है और हो सकता है अभी यह बच्चा काफी बड़ा हो गया हो।

इसके एक हफ्ते बाद 9 जुलाई को आनंद महिंद्रा ने एक और ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने बताया कि इस बच्चे को ढूंढ़ लिया गया है। “उसका नाम रवि चेकल्या है और वह अब शादीशुदा है। उसके बच्चे भी हैं। अभी भी वह पंखा बेचता है,”  महिंद्रा ने अपने ट्वीट में लिखा।

साथ ही उन्होंने कहा कि उनकी टीम रवि को एक अच्छा जीवन प्रदान करने के लिए काम कर रही है। इससे पहले आनंद महिंद्रा ने एक मोची की मार्केटिंग स्किल से प्रभवित हो, उसकी भी मदद की है।


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कान्हा की भक्ति में लीन, हाशिम ने मीरा बाई के 209 पदों को 1494 अशआर की शायरी में पिरोया!

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“मेरे गिरधर है यही अरमां मेरा
अपने सर ले लूँ तुम्हारी हर बला…

  – हाशिम रज़ा जलालपुरी

आपको शायद इस शेर के शायर का नाम पढ़कर हैरानी हुई हो! पर इसे लिखने वाले हाशिम से जब हमने बात की, तो लगा जैसे भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब की विरासत को सँभालने वाले आज भी इस देश में हैं!

फैज़ाबाद के पास जलालपुर से ताल्लुक रखने वाले हाशिम रज़ा जलालपुरी ने हाल ही में मीरा बाई द्वारा लिखे गए पदों का उर्दू शायरी में अनुवाद किया है। इस अनुवाद को पूरा करने में उन्हें पुरे तीन साल गए।

हाशिम का जन्म 27 अगस्त 1987 को शायर ज़ुल्फ़िकार जलालपुरी के घर हुआ था। शायरी की विरासत उन्हें बेशक  अपने पिता से मिली पर पद्म श्री अनवर जलालपुरी और यश भारती नैयर जलालपुरी भी उनकी प्रेरणा रहें।

उन्होंने रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल की व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में एमटेक किया। उन्हें साउथ कोरिया की चोन्नम नेशनल यूनिवर्सिटी ग्वांगजू में नैनो फोटोनिक्स इंजीनियरिंग में रिसर्च के लिए ग्लोबल प्लस स्कालरशिप भी मिली है। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंसों में वे रिसर्च पेपर प्रेजेंट कर चुके हैं। इसके अलावा हाशिम ने प्रोफेसर के रूप में भी काम किया है। पर टेक्निकल क्षेत्र में इतनी तरक्की करने के बावजूद हाशिम दिल से एक शायर ही रहें और इसलिए उन्होंने पिछले साल, 2017 में रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली से उर्दू साहित्य में एमए किया। धीरे धीरे हाशिम उर्दू मंच का भी नामी चेहरा बनने लगे।

हाल ही में उन्होंने एक पाकिस्तानी एल्बम के लिए अपने बोल दिए। उनकी शायरी और ग़ज़लों के आज लाखों लोग दीवाने हैं।

जश्न-ए-रेख़्ता में भी हाशिम रज़ा जलालपुरी जाना-पहचाना नाम हैं। उनके द्वारा लिखी गयी शायरी और ग़ज़लों को आप रेख़्ता की वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं। पर जिस काम के लिए आज हाशिम ने उर्दू शायरी में अपना अलग मकाम बनाया है, वो है मीरा बाई के लिखे भजनों को शायरी में पिरोना!

पिछले तीन वर्षों से मीरा बाई पर काम कर रहे हाशिम ने उनके 209 पदों को 1494 अशआर के रूप में अनुवाद किया है।

राजा रवि वर्मा द्वारा बनाया गया मीरा बाई का चित्र/विकिपीडिया

मीरा बाई प्राचीन भारत की प्रमुख कवियत्रियों में से एक हैं। हिन्दू धर्म में उन्हें कान्हा की जोगन भी कहा जाता है, जिन्होंने कृष्ण भक्ति में स्वयं को समर्पित कर दिया था।

मीराबाई से प्रभावित हाशिम कहते हैं,

“मीरा बाई हिंदुस्तान की ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी शायरा हैं। साहित्य की दुनिया में मीरा बाई उस मुक़ाम पर हैं, जहाँ पर कोई और शायरा नहीं पहुँच सकीं हैं।”

हाशिम ने बताया कि जब वे छठी क्लास में थे तो एक बार उर्दू के पेपर में उन्हें किसी भी मशहूर शायर पर निबंध लिखना था। तब उन्होंने मीरा बाई पर निबंध लिखा। जिसके लिए उन्हें उनके गुरु ने बहुत सराहा और कहा कि एक दिन तुम बहुत बड़े शायर बनोगे।

जलालपुर हमेशा से ही धर्म निरपेक्ष क्षेत्र रहा है। हाशिम बताते हैं, “हमारे जलालूपर में अज़ान और भजन की आवाज़ एक साथ सुनाई देती है। यहां सभी त्यौहार ईद, मुहर्रम, होली, दीपावली सभी संप्रदाय मिल-जुल कर मनाते हैं। हिंदू-मुसलमान, शिया-सुन्नी एक दूसरे के सुख-दुःख में बिना किसी भेदभाव के खुले दिल से शरीक होते हैं।”

इसके साथ ही पद्म श्री अनवर जलालपुरी ने श्रीमद् भगवद गीता का उर्दू में अनुवाद करके जो सिलसिला शुरू किया था, हाशिम रज़ा जलालपुरी उसे आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

मीरा बाई की भाषा से प्रभावित हाशिम कहते हैं,

“मीरा बाई की भाषा में हिन्दुस्तानियत है। वे महलों में पली-बढ़ी लेकिन फिर भी वे जिस भी जगह जाती वहां की स्थानीय भाषा में उन्होंने लिखा है। आपको मीरा बाई के पदों में लगभग 14 अलग-अलग ज़बानों के शब्द मिलेंगें। जिनमें ब्रज, अवधी, भोजपुरी, फ़ारसी, उर्दू, अरबी, गुजरती, आदि शामिल हैं। उन्होंने गंगा-जमुनी तहज़ीब को सहेजा है।”

हिन्दू व मुस्लिम दोनों तहज़ीबों के मिश्रण को गंगा-जमुनी तहज़ीब कहा जाता है। इस तहज़ीब में किसी भी धर्म, जात, रंग-भेद के आधार पर भेदभाव की जगह नहीं है। आप मीरा बाई और कबीर दास, दोनों के काम में इस तहज़ीब की छाप देख सकते हैं।

हाशिम ने द बेटर इंडिया को बताया, “मुझे हैरत होती है कि हमारे साहित्य में मीरा बाई पर अधिक काम नहीं हुआ है। मीरा बाई, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम देने में लुटा दी, उनकी भाषा, उनका काम बहुत अलग है और शोध के लिए बहुत ही उम्दा विषय हो सकता है। लेकिन फिर भी मीरा बाई का काम अछूता रहा। इसीलिए मैं उन पर काम करना चाहता था।”

अपने काम के दौरान आई परेशानियों के बारे में हाशिम ने बताया कि सबसे ज्यादा मुश्किल था मीरा बाई के पदों को इकट्ठा करना। बहुत अलग-अलग ग्रंथों और किताबो से उन्होंने पदों को ढूढ़कर निकाला। अपने जीवन काल में मीरा बाई ने कुल 209 पद लिखे थे।

“मीरा बाई ने अपने पदों में बहुत अलग-अलग भाषाओं के शब्दों का इस्तेमाल किया है। वे जहां भी जाती, वहां के रंग में रंग जाती थी। उनका आम लोगों के लिए यह प्रेम उनकी भाषा में दिखता है। उनके पदों को आम बोलचाल की उर्दू भाषा में अनुवाद करना इसलिए थोड़ा मुश्किल रहा,” हाशिम ने बताया।

हालाँकि, उनकी किताब पूरी हो चुकी है, जिसका नाम ‘मीरा बाई उर्दू शायरी में (नग़मा-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा)’ है। उनके इस काम के लिए उन्हें लोगों से बहुत सरहाना भी मिली है। इसके साथ ही रिवायत फाउंडेशन की तरफ से मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी के उत्सव ‘यादे इक़बाल’ के दौरान उन्हें ‘गंगा जमुनी तहज़ीब सम्मान’ से नवाज़ा गया।

उनके द्वारा उर्दू में अनुवाद किया गया मीरा बाई का एक पद,

“मेरे गिरधर है यही अरमां मेरा
अपने सर ले लूँ तुम्हारी हर बला

सुन लो अब मेरे दुखी दिल की पुकार
आओ अब मेरी गली में, मैं निसार

यह नज़र बेताब है दीदार को
दो सुकूं मेरे दिले बीमार को

कर रही हूँ मैं तुम्हारा इंतज़ार
कब मिलेगा मुझको आखिर अपना प्यार

अब भुला कर मेरी सारी ग़लतियां
शक्ल दिखला दो ऐ मेरे मेहरबां

तुम बहुत ही रहम दिल हो सांवरे
अब छलक उट्ठेगी नैना बाँवरे

कर दो मुझ पे मेहर-ओ-उल्फत की निगाह
अपने क़दमों में दो मीरा को पनाह

ऐ हरी अपना के मुझको प्यार से
पार करवा दो मुझे संसार से

आपके क़दमों की ही दासी हूँ मैं
आप के दर्शन की बस प्यासी हूँ मैं!

हाशिम बताते हैं कि उनकी किताब को प्रकाशित करने के लिए उन्हें फंड की जरूरत है। हालाँकि, उन्होंने बहुत लोगों को इसके संदर्भ में लिखा है; लेकिन कहीं से भी उन्हें कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिल रहा है। द बेटर इंडिया के माध्यम से सभी साहित्य प्रेमियों से उनकी यही गुज़ारिश है कि कोई सज्जन व्यक्ति या फिर संगठन किताब के प्रकाशन के लिए उन्हें स्पॉन्सरशिप प्रदान करे।

स्पॉन्सरशिप प्रदान करने वाले व्यक्ति को औपचारिक रूप से किताब में श्रेय दिया जायेगा। यदि आप हाशिम रज़ा जलालपुरी के काम में उनकी मदद करना चाहते हैं तो उनसे 7906138371 पर सम्पर्क कर सकते हैं। आप उन्हें  hashimrazajalalpuri@gmail.com पर ई-मेल कर सकते हैं या फिर उनके फेसबुक पेज पर भी उन्हें लिख सकते हैं।

( संपादन – मानबी कटोच)


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14 जुलाई 1930: जब टैगोर से मिले आइंस्टीन!

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“हम भारतीयों के कर्ज़दार हैं, जिन्होंने हमें गिनती करना सिखाया। जिसके बिना कोई भी सार्थक वैज्ञानिक खोज नहीं की जा सकती थी। ” – अल्बर्ट आइंस्टीन

सालों से, उनकी अविस्मरणीय छवि- कड़ी मूंछे, पैनी आँखें और घुंघराले व भारी बाल- जैसे वह सभी पोस्टरों और टी-शर्ट में से निकलकर हमे ताक रहा हो। यह कोई आश्चर्य नहीं कि अल्बर्ट आइंस्टीन को अभी भी दुनिया का प्रतिभावान पागल, और विज्ञान का पहला प्रतिष्ठित व्यक्ति माना जाता है और यक़ीनन आज भी वे महान हैं।

आइंस्टीन की एक प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में यात्रा शुरू हुई; जब उन्होंने खोज की कि द्रव्यमान और ऊर्जा एक ही चीज़ के विभिन्न रूप हैं और इसे एक सटीक छोटे से सूत्र E=mc2 में व्यक्त किया। बाद में यह पता चला कि उनके लिए “जीवन की सबसे बड़ी संतुष्टि” – सामान्य सापेक्षता का सिद्धांत था जो साबित करता है कि ऊर्जा और द्रव्यमान अंतरिक्ष व समय को विकृत करते हैं। इन्हीं प्रतिष्ठित विचारों ने उन्हें सार्वजनिक प्रसिद्धि दिलाई थी।

कुछ भारतीयों को पता है कि इतिहास में यह युग भारतीय विज्ञान के ‘स्वर्ण युग’ के रूप में अंकित है। जब आइंस्टीन गुरुत्वाकर्षण को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों को साबित कर रहे थे; तब सर सीवी रमन को ‘स्कैटरिंग ऑफ़ लाइट’ पर उनके काम के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। साथ ही मेघनाद साहा ‘तारकीय विकिरण’ पर उनके काम के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रशंसा प्राप्त कर रहे थे।

हालाँकि इन दोनों ने ही सीधा आइंस्टीन के साथ काम नहीं किया, लेकिन एक व्यक्ति था जो उन तक पहुंचने में कामयाब रहा। कलकत्ता विश्वविद्यालय में साहा के एक सहपाठी, सत्येंद्रनाथ बोस ने डक्का विश्वविद्यालय (अब ढाका) के भौतिकी विभाग में काम किया।

साल 1926 में इस प्रतिभाशाली भौतिक विज्ञानी ने आइंस्टीन को एक पेपर भेजा। इस पेपर में उन्होंने सामान्य कण जो कि बल के प्राकृतिक वाहक (जैसे फोटॉन को पहली बार आइंस्टीन द्वारा प्रकाश के वाहक के रूप में जाना गया) हैं, इसको समझने के लिए एक सांख्यिकी मॉडल पर अपने विचार व्यक्त किये।

सत्येंद्रनाथ बोस

इस पेपर को ‘प्लैंकस लॉ एंड द हाइपोथिसिस ऑफ लाइट क्वांटा’ कहा जाता था। इस पेपर से प्रभावित होकर आइंस्टीन ने पेपर को जर्मन फिजिक्स जर्नल में प्रकाशित किया। उन्होंने बोस को अपने साथ काम करने के लिए बर्लिन बुलाया। उन्होंने साथ में एक बहुत महत्वपूर्ण खोज पर काम किया।  यही कारण है कि प्रकृति के सबसे छोटे वाहक कणों को बाद में ‘बोसोन्स’ नाम दिया गया था (2012 में पाए गए प्रसिद्ध हिग्स बोसोन समेत)।

आइंस्टीन की लिखित सिफारिश पर, युवा भारतीय सत्येंद्रनाथ बोस को विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के प्रमुख नियुक्त किया गया था।  उन्होंने सांख्यिकीय मैकेनिक्स, विद्युत चुम्बकीय, एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी, क्वांटम यांत्रिकी, थर्मो-लुमेनसेंस, और एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

दिलचस्प बात यह है कि, अपने संस्मरण में सुब्रमण्यम चंद्रशेखर (जिन्होंने सितारों के विकास पर उनके काम के लिए नोबेल पुरस्कार जीता) ने लिखा कि 1919 में भारत में साहा और बोस द्वारा आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत का रिकार्डेड अनुवाद किया गया। तब तक इस सिद्धांत की पुष्टि भी नहीं हुई थी।

भारत के साथ आइंस्टीन की बातचीत केवल वैज्ञानिकों तक ही सीमित नहीं थी। वह अक्सर उपनिवेशवाद, अहिंसा, सत्याग्रह और औद्योगिकीकरण जैसे मुद्दों पर गांधी और नेहरू के साथ पोस्टकार्ड के माध्यम से विचार-विमर्श किया करते थे।

हालाँकि, उनका सबसे अधिक जुड़ाव रबीन्द्रनाथ टैगोर के साथ था। दोनो नोबेल पुरुस्कार विजेताओं के मन में एक दूसरे के विचारों के प्रति गहन सम्मान था। वास्तव में, आइंस्टीन ने टैगोर को ‘रब्बी’ (शिक्षक के लिए इस्तेमाल होने वाला हेब्रू भाषा का शब्द) के रूप में भी संबोधित किया।

यही कारण है कि 14 जुलाई 1930 को आइंस्टीन के बर्लिन निवास में उनकी बैठक के दौरान हुई बातचीत को, इतिहास में “सबसे उत्तेजक और बौद्धिक रूप से उत्साही चर्चाओं” में से एक के रूप में वर्णित किया गया है।

फोटो स्त्रोत

यहां विचारों के इस ऐतिहासिक आदान-प्रदान से एक अंश दिया गया है (मोड्रन रिव्यु के जनवरी 1931 के अंक में प्रकाशित),

टैगोर: आप गणितज्ञों के साथ दो प्राचीन इकाई, समय और अंतरिक्ष की खोज में व्यस्त हैं। जबकि मैं देश में मनुष्य की वास्तविक दुनिया कर ब्रह्माण्ड की यथार्थता पर भाषण दे रहा हूँ।

आइंस्टीन: क्या आप दुनिया से अलग दिव्य में विश्वास करते हैं?

टैगोर: अलग नहीं है। मनुष्य का अनंत व्यक्तित्व ब्रह्मांड को समझता है। ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता है जिसे मानव व्यक्तित्व द्वारा कम नहीं किया जा सके, और यह साबित करता है कि ब्रह्मांड की सत्य मानव सत्य है।

आइंस्टीन: ब्रह्मांड की प्रकृति के बारे में दो अलग-अलग अवधारणाएं हैं – दुनिया एकता के रूप में मानवता पर निर्भर है, और दुनिया यथार्थ रूप में मानव कारकों से स्वतंत्र है।

टैगोर: जब हमारा ब्रह्मांड मनुष्यों के साथ सामंजस्य में होता है, तो हम इसे सत्य के रूप में जानते हैं, हम इसके सौंदर्य को महसूस करते हैं।

आइंस्टीन: यह ब्रह्मांड की पूरी तरह से एक मानव अवधारणा है।

टैगोर: दुनिया एक मानव संसार है – इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी वैज्ञानिक व्यक्ति का है। इसलिए, हमारे अलावा कोई और दुनिया मौजूद नहीं है; यह एक सापेक्ष दुनिया है, जो अपनी वास्तविकता के लिए हमारी चेतना पर आधारित है। कारणों और आनंद के कुछ मानक है जो इसे सत्य बनाते हैं। शाश्वत व्यक्ति के मानक जिसके अनुभव हमारे अनुभवों के माध्यम से संभव होते हैं।

आइंस्टीन: यह मानव इकाई की अनुभूति है।

टैगोर: हाँ, एक शाश्वत इकाई। हमें अपनी भावनाओं और गतिविधियों के माध्यम से इसका एहसास करना होगा। हम अपनी व्यक्तिगत सीमाओं में सर्वोच्च इंसान की अनुभूति करते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं है। विज्ञान उस से संबंधित है जो व्यक्तियों तक ही सीमित नहीं है; यह सत्य की व्यक्तित्वहीन मानव दुनिया है। धर्म इस सत्य को महसूस करता है और उन्हें हमारी गहरी जरूरतों के साथ जोड़ता है। इससे सत्य की हमारी व्यक्तिगत चेतना सार्वभौमिक महत्व प्राप्त करती है। धर्म सत्य को मूल्य देता है, और हम इसके साथ सद्भाव के माध्यम से सत्य को अच्छे रूप में जानते हैं।

आइंस्टीन: मैं साबित नहीं कर सकता, लेकिन मैं पाइथागोरियन में विश्वास करता हूँ जो कहता है कि सत्य मनुष्यों से स्वतंत्र है। यही निरंतरता के तर्क की समस्या है।

टैगोर: सत्य, जो सार्वभौमिक है, अनिवार्य रूप से मानवीय होना चाहिए; अन्यथा, जो भी हम व्यक्तियों को सत्य के रूप में महसूस होता है, कभी भी सत्य नहीं कहा जा सकता है। कम से कम, वह सच्चाई जिसे वैज्ञानिक रूप में वर्णित किया गया है और जिसे केवल तर्क की प्रक्रिया के माध्यम से जाना जा सकता है- दूसरे शब्दों में, मानव के विचारों द्वारा।

उन दोनों की यह बातचीत जल्दी ही मीडिया में सनसनी बन गयी थी। कई प्रकाशनों के पास इसकी रिकॉर्डिंग भी थी।

द न्यूयॉर्क टाइम्स ने “आइंस्टीन और टैगोर प्लंब द ट्रुथ” शीर्षक के साथ एक लेख लिखा और “मैनहट्टन में एक गणितज्ञ और एक रहस्यवादी की मुलाकात” कैप्शन लिखकर एक यादगार तस्वीर (उनकी न्यूयॉर्क बैठक की) के साथ छापा।

साल 1930 में आइंस्टीन व टैगोर/ट्विटर

आइंस्टीन और टैगोर और दो बार मिले और पत्रों के माध्यम से संपर्क में रहे। हालांकि यह भारत के साथ उनका सीमित संबंध था, लेकिन उनके विचारों ने अनगिनत भारतीयों को प्रेरित किया है। वास्तव में, भारत के कई वैज्ञानिक अभी भी समय, अंतरिक्ष और गुरुत्वाकर्षण के बारे में आइंस्टीन के विचारों से गहराई से जुड़े हुए हैं।

आइंस्टीन का त्रावणकोर विश्वविद्यालय (अब केरल विश्वविद्यालय) के इतिहास से भी थोड़ा सा रिश्ता है।

भारत से स्वतंत्र होने से एक दशक पहले, 1937 में, एक छोटी सी रियासत त्रावणकोर ने आइंस्टीन को अपने शुरुआती विश्वविद्यालय के पहले कुलगुरू के रूप में  6,000 रूपये (तब काफी बड़ी राशि) के मासिक वेतन के साथ आमंत्रित किया था। यह त्रावणकोर के तत्कालीन दीवान सी पी रामस्वामी अय्यर का विचार था। वह एक चतुर प्रशासक और उत्साही विद्वान थे; जो आधुनिक विज्ञान में समकालीन विकास के लिए बराबर भागीदार थे।

हालांकि, आइंस्टीन ने विनम्रतापूर्वक प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि वह अमेरिका में प्रिंसटन विश्वविद्यालय में शामिल होना चाहते हैं। हालांकि रामास्वामी के निमंत्रण का कोई प्रत्यक्ष रिकॉर्ड नहीं है; लेकिन कुछ विशिष्ट व्यक्ति इसका दावा करते हैं।

मूल लेख: संचारी पाल


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मुंबई: आरपीएफ महिला कॉन्स्टेबलों की मदद से हुई महिला की रेलवे स्टेशन पर सुरक्षित डिलीवरी!

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मुंबई के कल्याण रेलवे स्टेशन पर लेडी कॉन्स्टेबलों ने एक महिला यात्री की सुरक्षित डिलीवरी कराई। घाटकोपर में नारायण नगर की निवासी शेख सलमा तबस्सुम (30 वर्षीय) एलटीटी-विशाखापटनम एक्सप्रेस में यात्रा कर रही थी जब अचानक उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी।

केंद्रीय रेलवे के आरपीएफ अधिकारियों को स्थिति के बारे में सतर्क कर दिया गया था, इसलिए वे तुरंत गर्भवती महिला की मदद के लिए पहुंचें।

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, सब-इंस्पेक्टर नितिन गौर, आरपीएफ महिला स्टाफ हेड कांस्टेबल नीलम गुप्ता और सुरेखा कदम के साथ पहुंचे। उन्होंने रेलवे मेडिकल स्टाफ की उपस्थिति में महिला की सुरक्षित डिलीवरी कराई। तबस्सुम ने दो जुड़वां बच्चे, बेटा और बेटी को जन्म दिया।

नवजात बच्चों की तस्वीरें महिला कॉन्स्टेबलों के साथ ट्विटर पर वायरल हो रही हैं। सभी लोग रेलवे पुलिस के इस कार्य की सराहना कर रहे हैं।

सुरक्षित डिलीवरी के बाद तबस्सुम और उसके बच्चों को आगे के उपचार और देखभाल के लिए रुक्मनी बाई अस्पताल ले जाया गया। ख़बरों के मुताबिक माँ व बच्चे स्वास्थ्य हैं।


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वीडियो: कैसे मुंबईकरों ने बचायी पानी में डूबते परिवार की जान!

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मुंबई बारिश से बेहाल है। लेकिन इस मुश्किल समय में भी मुंबईकरों का हौंसला कम नहीं हुआ है। एक-दूसरे का हाथ थामे वे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को जी रहे हैं।

मुंबई निवासियों का लोगों के प्रति मानवता का एक और वाकया सामने आया है। दरअसल कल नवी मुंबई के तलोजा से एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में आप देखेंगे कि कैसे कुछ लोग पानी में फंसे एक परिवार को बाहर निकालने में जुटे हुए हैं।

सोमवार की शाम को तलोजा के घोटगांव क्षेत्र में परिवार की कार तलोजा नदी में फंस गयी और डूबने लगी। 37 वर्षीय अशरफ खलील शेख, उनकी पत्नी हमिदा और अपने दो बच्चों के साथ जान बचाने के लिए कार की छत पर बैठ गए। जब स्थानीय लोगों ने उन्हें देखा तो वे तुरंत उनकी मदद के लिए आगे आये।

लोगों ने एक रस्सी के सहारे उन तक पहुंचकर एक-एक कर सभी सदस्यों को बाहर निकाला। पुलिस के मुताबिक किसी को भी बहुत चोटें नहीं आयी। समय रहते परिवार को सुरक्षित निकाल लिया गया।

मुंबई: आरपीएफ महिला कॉन्स्टेबलों की मदद से हुई महिला की रेलवे स्टेशन पर सुरक्षित डिलीवरी!

यह परिवार कार में कहीं जा रहा था, जब अचानक पुल पर उनकी गाड़ी फिसल कर पानी में चली गयी। लगातार भारी बारिश के चलते पानी का स्तर बहुत ऊँचा हो गया था। इसलिए कार को डूबते देर न लगी। सौभाग्य से पत्थरों में कार अटकी रही जिसके चलते परिवार को सुरक्षित निकाला जा सका।

हम सराहना करते हैं मुंबईकरों की इंसानियत व हौंसलें की, जिन्होंने परिवार की तुरंत मदद कर उन्हें बचाया।

आप एनडीटीवी द्वारा शेयर की गयी वीडियो यहां देख सकते हैं,

 


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मात्र 50 रूपये में घर बैठे बनवा पायेंगें जन्म प्रमाण पत्र जैसे सरकारी कागजात, दिल्ली सरकार की ‘डोरस्टेप सर्विस’!

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गस्त के महीने से दिल्ली निवासी लगभग 100 सार्वजानिक सेवाओं का घर बैठे केवल 50 रूपये में लाभ उठा पायेंगें। हाल ही में हुई दिल्ली सरकार की कैबिनेट मीटिंग में इस प्रस्ताव को पास कर दिया गया है। इस प्रस्ताव में जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस और राशन कार्ड जैसी सेवाएं शामिल हैं।

मंत्रिमंडल की बैठक में, एक मध्यवर्ती एजेंसी द्वारा “प्रत्येक सफल लेनदेन” के लिए नागरिकों से 50 रुपये का एक सुविधाजनक शुल्क चार्ज करने के लिए प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है।

इस ‘डोरस्टेप सर्विस’ को अगस्त में शुरू किया जायेगा। इस स्कीम का उद्देशय विभिन्न विभागों द्वारा की जाने वाली इन सार्वजनिक सेवाओं के लिए लगने वाली कतारों को खत्म करना है। इस योजना में जाती प्रमाण पत्र, नए जल कनेक्शन, आय, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड, निवास प्रमाण पत्र, शादी पंजीकरण, डुप्लीकेट आरसी और आरसी के पते में परिवर्तन जैसे विभिन्न दस्तावेज शामिल हैं।

पहले ही सरकार एक फर्म को यह काम सौंपने का फैसला कर चुकी है जो इस प्रोजेक्ट के लिए एजेंसी के रूप में काम करेगी। इसके लिए कॉल सेंटर खोले जायेंगे और यह एजेंसी मोबाइल सहायकों की नियुक्ति करेगी। कोई भी व्यक्ति जो ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन करना चाहता है उसे अपने क्षेत्र के कॉल सेंटर पर कॉल कर सभी जानकारी उपलब्ध करानी होगी।

जिसके बाद एक मोबाइल सहायक व्यक्ति के घर जाकर बाकी कागजात की जाँच कर तुरंत उनके आवेदन पर कार्य करेगा।

दिल्ली सरकार की यह पहल नागरिकों की सुविधा की दिशा में उठाया गया एक कदम है। जिसकी हम सराहना करते हैं।


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क्यूँ है ‘दिनकर’की यह कविता आज भी प्रासंगिक? कौन है ज़िम्मेदार?

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धुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये।

वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है, तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार जबकि कुरुक्षेत्र को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वाँ स्थान दिया गया।

उन्होंने सामाजिक और आर्थिक समानता और शोषण के खिलाफ कविताओं की रचना की। एक प्रगतिवादी और मानववादी कवि के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजस्वी और प्रखर शब्दों का तानाबाना दिया। उनकी महान रचनाओं में रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा शामिल है। उर्वशी को छोड़कर दिनकर की अधिकतर रचनाएँ वीर रस से ओतप्रोत है। भूषण के बाद उन्हें वीर रस का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है।

ज्ञानपीठ से सम्मानित उनकी रचना उर्वशी की कहानी मानवीय प्रेम, वासना और सम्बन्धों के इर्द-गिर्द घूमती है।उर्वशी स्वर्ग का परित्याग कर चुकी एक अप्सरा की कहानी है। वहीं, कुरुक्षेत्र, महाभारत के शान्ति-पर्व का कवितारूप है। यह दूसरे विश्वयुद्ध के बाद लिखी गयी रचना है। वहीं सामधेनी की रचना कवि के सामाजिक चिन्तन के अनुरुप हुई है। संस्कृति के चार अध्याय में दिनकर जी ने कहा कि सांस्कृतिक, भाषाई और क्षेत्रीय विविधताओं के बावजूद भारत एक देश है। क्योंकि सारी विविधताओं के बाद भी, हमारी सोच एक जैसी है।

वहीं आज़ादी के सात वर्षो बाद उनकी लिखी एक कविता ‘समर शेष है’ में वे ऐसे कई प्रश्न करते हैं जो आज भी मानो उतने ही प्रासंगिक है जितने तब थें! ये कविता आज का भी आईना दिखाती है क्योंकि आज भी दिल्ली में तो रोशनी है लेकिन बाकी देश में अंधेरा है…

‘समर शेष है’ – रामधारी सिंह दिनकर

समर शेष है

समर शेष है – रामधारी सिंह दिनकर आज शाम 5:30 बजे सुनिए

Posted by The Better India – Hindi on Thursday, September 7, 2017


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आलिया भट्ट की पहल ने रोशन की कर्नाटक के इस गांव की ज़िंदगी, गांव में पहली बार मिली बिजली!

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बंगलुरु के मांड्या जिले के किक्केरी गांव को अपने 25 सालों के इतिहास में पहली बार बिजली मिली है। इसका श्रेय जाता है बॉलीवुड अभिनेत्री आलिया भट्ट को। दरअसल इस गांव के लोगों ने लगभग 25 साल पहले मैसूर रोड की तरफ एपीएमसी यार्ड के पास अपनी झोपड़ियां बनाई थीं। इस गांव में लगभग 40 झोपड़ियां हैं।

“मैंने सुना है कि आलिया भट्ट एक अभिनेत्री हैं, लेकिन मैंने कभी भी उन्हें नहीं देखा। पर हम लोगों के लिए तो वो हमारे जीवन की रोशनी बन गयी हैं,” ये कहना है किक्केरी गांव के एक निवासी अकमल का।

फोटो: टाइम्स ऑफ़ इंडिया

हाल ही में आलिया भट्ट ने एक पहल शुरू की थी, ‘मी वार्डरॉब इज सू वार्डरॉब’ नाम से। इस पहल के अंतर्गत आलिया के फैन उनकी वार्डरॉब से कुछ भी खरीद सकते हैं और इससे जो भी पैसा इकठ्ठा हुआ, उसी से किक्केरी गांव में सोलर लाइट लगाई गयी है।

अकमल ने बताया,

“मैं आलिया का शुक्रगुजार हूँ। इससे पहले भी हम अधिकारियों के पास बिजली के लिए अपनी गुहार लेकर गए थे, लेकिन कहीं से भी मदद नहीं मिली। सबने सिर्फ वादे किये पर उन्हें कभी भी सच्चाई में नहीं बदला। लेकिन बीते शुक्रवार जब कुछ लोग सोलर लाइट लगाने आये तो हम दंग रह गए थे।”

फोटो: टाइम्स ऑफ़ इंडिया

इन 40 झोपड़ियों में रहने वाले लगभग 200 लोगों ने पहली बार अपने घर में रात को उजाला देखा। आलिया ने इकट्ठे हुए पैसे को बंगलुरु के एक एनजीओ को दान किया था। उसी एनजीओ ने इस प्रोजेक्ट पर काम किया। इस एनजीओ ने प्लास्टिक की बोतलों से सोलर लैंप बनाये।

गांव की एक महिला ज़रीना बेगम ने बताया कि मैंने कभी भी 6:30 बजे के बाद रात को खाना नहीं खाया था। उन्हें नहीं पता आलिया भट्ट कौन है लेकिन वे चाहती हैं कि एक बार आलिया उनके गांव आये और देखे कि कैसे उन्होंने इस गांव की ज़िन्दगी को रोशन किया है। अब गांव के बच्चे घर पर रात को भी पढ़ सकते हैं, जो इतने सालों में नहीं हो पाया था।


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हर रोज पीछा करने वाले लड़के को राजस्थान की इस लड़की ने सिखाया सबक!

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राजस्थान के भरतपुर में एक लड़की ने हर रोज उसका पीछा करने वाले लड़के की डंडे से पिटाई की। इस घटना की एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। बहुत से लोग लड़की की सराहना कर रहे हैं।

दरअसल, वाणी शर्मा (19 वर्षीय) ने रामेश्वरी देवी गर्ल्स कॉलेज से ग्रेजुएशन की है। अब वे भारतीय सेना में भर्ती की तैयारी में जुटी हैं। इसीलिए वे हर रोज सुबह लगभग 15 किलोमीटर की दौड़ पर जाती हैं।

इसी बीच एक 12वीं कक्षा के छात्र हितुल सैनी ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, उसने अपने दोस्तों के बीच अफवाहें भी फैलाई कि वाणी उसकी गर्लफ्रेंड है और उससे हर रोज 4-5 बार बात करती हैं।

इससे तंग आकर वाणी ने यह कदम उठाया। जब वाणी से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “अगर आपको लगता है कि आप डोनाल्ड ट्रम्प के बेटे के रूप में पैदा हुए हैं, तो यह आपकी गलतफहमी है। कोई लड़की कमजोर नहीं है। यदि आप अपनी हद पार करते हैं, तो हम अपनी आवाज़ उठाएंगे और फिर आपको कोई नहीं बचा सकता।”

हालाँकि, वाणी ने इस लड़के को सुधरने का एक मौका देते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं की है।

हम वाणी के हौंसले की सराहना करते हैं और उम्मीद करते हैं कि बहुत से लोग उनसे प्रेरणा लेंगें।

हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा शेयर की गयी घटना की वीडियो आप यहां देख सकते हैं,


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कारगिल युद्ध: जानिए आईएएफ के इकलौते परमवीर चक्र विजेता फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत सिंह की कहानी!

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16 दिसंबर, 1971 को, भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कारगिल युद्ध जीता। अपने देश की रक्षा करने के लिए कई साहसी सैनिकों ने अपनी जान दे दी।

आज 36 साल बाद भी इन सैनिकों का बलिदान हमारे देश में गूंजता है। हालांकि, बहुत कम लोग ही भारतीय वायु सेना के परम वीर चक्र पुरस्कार विजेता निर्मलजीत सिंह सेखों के बारे में जानते हैं। वे इकलौते वायु सेना के अफसर थे जिन्हें परम वीर चक्र से नवाज़ा गया।

फ्लाइंग अफसर निर्मल जीत सिंह सेखों

पंजाब के लुधियाना जिले के इस्वाल दाखा गांव के रहने वाले निर्मल जीत सिंह सेखों का जन्म 17 जुलाई, 1943 को हुआ था। उनके पिता तारलोचन सिंह सेखों भारतीय वायुसेना में एक फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे।

अपने पिता से प्रेरित, सेखों ने बचपन में ही फैसला कर लिया था कि वे भारतीय वायु सेना (आईएएफ) में शामिल होंगे। अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने आईएएफ में शामिल होने के अपने सपने को पूरा किया। 4 जून, 1967 को, उन्हें औपचारिक रूप से एक पायलट अफसर के रूप में कमीशन किया गया था।

साल 1971 में भारत पाकिस्तान का युद्ध शुरू हुआ। पाकिस्तानी वायुसेना (पीएएफ) अमृतसर, पठानकोट और श्रीनगर के महत्वपूर्ण हवाई अड्डों को ध्वस्त करने के लिए निरंतर हमले कर रही थी। आईएएफ के 18 स्क्वाड्रन की एक टुकड़ी को श्रीनगर की वायु रक्षा के लिए नियुक्त किया गया।

सेखों इस प्रसिद्ध स्क्वाड्रन का हिस्सा थे, जिसे हवा में उनकी अविश्वसनीय क्षमता के कारण ‘फ्लाइंग बुलेट’ भी कहा जाता था। 14 दिसंबर, 1971 की सुबह, वह फ्लाइट लेफ्टिनेंट बलधीर सिंह घुम्मन के साथ श्रीनगर एयरफील्ड में स्टैंड-बाय-2 ड्यूटी (लड़ाई के आदेश मिलने पर उन्हें दो मिनट के भीतर हवाई जहाज पर जाना पड़ता है) पर थे।

दोस्तों और सहयोगियों के बीच ‘जी-मैन’ के नाम से जाने जाने वाले घुम्मन, सेखों के वरिष्ठ अधिकारी होने के साथ-साथ प्रशिक्षक भी थे। सेखों को सभी लोग प्यार से ‘भाई’ कहकर बुलाते थे।

फोटो: यूट्यूब

उस सुबह, पाकिस्तान के छह एफ-86 सबर जेट (पीएएफ के प्रमुख सेनानी) को श्रीनगर एयरबेस पर बमबारी करने के उद्देश्य से पेशावर से हटा लिया गया था। इस टीम का नेतृत्व 1965 युद्ध के अनुभवी, विंग कमांडर चँगाज़ी ने किया था। इस टीम में फ्लाईट लेफ्टिनेंट्स डॉटानी, एंड्राबी, मीर, बेग और यूसुफजई शामिल थे। सर्दी में कोहरे के कारण पाकिस्तानी सेना ने कब भारतीय सीमा में प्रवेश कर लिया, पता भी नहीं चला।

उस समय कश्मीर घाटी में कोई राडार नहीं था और आईएएफ आने वाले खतरे के लिए ऊंचाई पर लगी पोस्टों द्वारा चेतावनी पर ही निर्भर था। पीएएफ फौजियों को आखिरकार श्रीनगर से कुछ किलोमीटर दूर एक आईएएफ निरीक्षण पोस्ट द्वारा देखा गया और उन्होंने तुरंत एयरबेस को चेतावनी दी।

‘जी मैन’ घुम्मन और ‘भाई’ सेखों ने तुरंत अपने सेनानी विमानों को निकाला और उड़ान भरने की आज्ञा लेने के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) से संपर्क करने की कोशिश करने लगे। लेकिन रेडियो नेटवर्क में परेशानी के चलते वे अपने सभी प्रयासों के बावजूद एटीसी से जुड़ने में असमर्थ रहे। पर उन्होंने बिलकुल भी देरी न करते हुए उड़ान भरी और जैसे ही उन्होंने उड़ान भरी, रनवे पर दो बम विस्फोट हुए।

जब सेखों ने उड़ान भरी तो उन्होंने देखा कि दो सेबर जेट दूसरे रनवे पर हमला करने के लिए बढ़ रहें हैं तो उन्होंने तुरंत अपनाजेट घुमाया और उनका पीछा किया। इसके बाद जो हुआ वह वायु युद्ध के इतिहास में शायद अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई है।

अपने विमान की ओर जाते पायलट अफस

जब चँगाज़ी ने देखा कि एक भारतीय जेट उनके सेबर जेट का पीछा कर रहा है तो उन्होंने तुरंत अपनी टीम को नीचे कूदने और गोताखोरी करने का आदेश दिया। लेकिन तब तक सेखों ने उनपर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया था।

सेखों उन दो सेबर जेट से लड़ ही रहे थे कि उनके पीछे और दो पाकिस्तानी सेबर जेट आ गए थे। अब यह केवल एक आईएएफ जेट था जो 4 पीएएफ सेबर जेट से मुकाबला कर रहा था। घुम्मन का संपर्क भी सेखों से टूट गया था और वे उनकी मदद के लिए नहीं जा पाए।

यह सेखों का अपने जेट पर विश्वास और उनका साहस था कि उन्होंने अकेले 4 सेबर जेट से मुकाबला किया। सेखों ने अपने जेट से फायरिंग करते हुए चक्कर लगाना शुरू कर दिया। तभी रेडियो संचार व्यवस्था से निर्मलजीत सिंह की आवाज़ सुनाई पड़ी…

“मैं दो सेबर जेट जहाजों के पीछे हूँ…मैं उन्हें जाने नहीं दूँगा…”

उसके कुछ ही क्षण बाद नेट से आक्रमण की आवाज़ आसमान में गूँजी और एक सेबर जेट आग में जलता हुआ गिरता नजर आया। तभी निर्मलजीत सिंह सेखों ने अपना सन्देश प्रसारित किया…

“मैं मुकाबले पर हूँ। मेरे इर्द-गिर्द दुश्मन के दो सेबर जेट हैं। मैं एक का पीछा कर रहा हूँ, दूसरा मेरे साथ-साथ चल रहा है।”

इसके बाद नेट से एक और धमाका हुआ जिसके साथ दुश्मन के सेबर जेट के ध्वस्त होने की आवाज़ भी आई। उनका निशाना फिर लगा और एक बड़े धमाके के साथ दूसरा सेबर जेट भी ढेर हो गया। कुछ देर की शांति के बाद फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत सिंह सेखों का सन्देश फिर सुना गया। उन्होंने कहा…

“शायद मेरा जेट भी निशाने पर आ गया है… घुम्मन, अब तुम मोर्चा संभालो।”

यह निर्मलजीत सिंह का अंतिम सन्देश था।

इसके बाद उनका जेट बड़गाम के पास क्रैश हो गया और उन्हें शहादत प्राप्त हुई। जब वे शहीद हुए तब उनकी उम्र मात्र 26 वर्ष थी।

लुधियाना डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में लगी परम वीर निर्मलजीत सिंह सेखों की मूर्ति

देश के लिए अपनी निःस्वार्थ सेवा और दुश्मन के खिलाफ दृढ़ संकल्प के लिए उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनकी पत्नी और पिता ने यह सम्मान लिया। वह युद्ध में भारत के सबसे बड़े बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले और एकमात्र वायु सेना के सैनिक थे।

भाई ‘सेखों’ जैसे सैनिक हर दिन पैदा नहीं होते हैं। इस वीर योद्धा के बलिदान के लिए उसे देश द्वारा कृतज्ञता के साथ याद किया जाना चाहिए जिसकी रक्षा करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए।

मूल लेख: संचारी पाल


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विश्व स्तर पर स्वर्ण पदक जीतने वाली हिमा दास के लिए फ़िनलैंड में रहनेवाले भारतियों ने मिलकर भेजे 1 लाख रूपये!

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सम में ढिंग से ताल्लुक रखने वाली 18 वर्षीय हिमा दास एक किसान की बेटी हैं। उन्होंने आईएएएफ वर्ल्ड जूनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में टेम्पेरे में 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने इस दौड़ को 51.46 सेकेंड में पूरा कर रिकॉर्ड कायम किया है। विश्व स्तर पर स्वर्ण पदक जीतने वाली वे भारत की पहली ट्रैक एथलीट हैं।

हिमा की उपलब्धि ने हर भारतीय का दिल जीत लिया है। लेकिन इस युवा खिलाड़ी ने अपने जीवन में बहुत मुश्किलों का सामना किया है। शायद इसीलिए फ़िनलैंड में रहने वाले भारतीयों के दिल में भी हिमा दास के लिए बहुत खास जगह बन गयी है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक फ़िनलैंड में रहने वाले भारतीयों का एक समूह इस खिलाडी से मिलने के लिए हेलसिंकी से टेम्पेरे आया।

हेलसिंकी में वॉरियर्स हॉकी क्लब चलाने वाले विक्की मोगा ने अपने व्हाट्सएप ग्रुप पर हेलसिंकी के पंजाब सांस्कृतिक सोसाइटी और पंजाब स्पोर्ट्स क्लब के सदस्यों को एक सन्देश लिखा, “चलो उसके लिए कुछ करते हैं।”

इस सन्देश के जबाब में मात्र 10-15 मिनट में ही उन लोगों ने 900 यूरो इकट्ठा कर लिए थे और इसके थोड़ी देर बाद उन्होंने लगभग 1250 यूरो जमा किये।

ये सभी लोग रविवार की दोपहर हेलसिंकी से टेम्पेरे पहुंचे और हिमा और पीटी उषा से मिले।

विक्की चाहते थे कि उनके द्वारा जमा की गयी राशि (लगभग 1 लाख रूपये) सीधा हिमा तक पहुंचें। इसलिए उन्होंने हिमा के निजी बैंक अकाउंट में पैसे जमा कराये।

हिमा इन लोगों का प्यार देखकर अभिभूत हो गयी थीं। लेकिन इन लोगों की उदारता यहीं नहीं रुकी। सभी ने हिमा को तोहफे भी दिए। बाद में सभी लोगों ने हिमा और अन्य कोचों के साथ बैठकर खाना भी खाया।

बहुत से खिलाड़ी हमारे यहां आर्थिक सहयता के लिए संघर्ष करते हैं। ऐसे में हिमा के लिए यह सम्मान बहुत मायने रखता है।

कवर फोटो


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बेटियों के प्रोत्साहन पर राजस्थान के इस विधायक ने 40 साल बाद फिर से शुरू की पढ़ाई!

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राजस्थान में उदयपुर के एमएलए फूल सिंह मीणा ने लगभग 40 वर्ष बाद फिर से अपनी पढ़ाई शुरू की है। 17 जुलाई को उन्होंने अपने बी. ए प्रथम वर्ष की परीक्षा दी।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक फूल सिंह ने सातवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। उन्होंने बताया, “मेरे पिताजी का सेना में देहांत होने के बाद मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। घर चलाने के लिए मैंने खेती करना शुरू कर दिया था।”

मीणा ने बताया कि उन्हें आगे पढ़ने के लिए उनकी बेटियों ने प्रोत्साहित किया। “उन्होंने मुझे कहा कि मैं बहुत से अधिकारी और राजनेताओं से मिलता हूँ तो शिक्षा मेरे लिए बहुत जरूरी है। लेकिन मैं अपनी उम्र को लेकर थोड़ा हिचक रहा था,” मीणा ने कहा।

मीणा ने बताया कि धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि शिक्षा मेरे लिए वाकई बहुत जरूरी है। “एक पार्षद के रूप में अगर मैं शिक्षा के महत्व को लोगों को समझाना चाहता हूँ तो मेरा हर एक भाषण खोखला लगेगा; यदि मैं खुद पढ़ा-लिखा हुआ नहीं हूँ तो।”

दिलचस्प बात यह है कि मीणा ने व्हाट्सएप की मदद से पढ़ाई कर रहे हैं। उनके टीचर संजय लुनावत हैं, जो उदयपुर के पास मनवखेड़ा में सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल हैं। संजय लुनावत ने बताया, “हालाँकि हम क्षेत्र में एक यात्रा कर रहे होते हैं, फिर भी मैं उन्हें पढ़ाता हूँ। या फिर मैं उन्हें विषय के बारे में ऑडियो क्लिप बनाकर व्हाट्सएप पर भेज देता हूँ। जिसे वे यात्रा लके दौरान सुनते हैं।”

मीणा ने इतने वर्षों बाद पढाई शुरू की है, लेकिन वे शिक्षा के प्रति समर्पित हैं। मीणा हर सम्भव प्रयास से पढ़ाई करते हैं। तकनीक का भी वे भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं।

लुनावत ने बताया कि बी.ए के बाद मीणा एम. ए और पी.एचडी भी करना चाहते हैं।


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न बरखा, न खेती, बिन पानी सब सून…–किसान गिरीन्द्र नाथ झा की पाती आप सभी के नाम!

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खेत उजड़ता दिख रहा है। बारिश इस बार धरती की प्यास नहीं बुझा रही है। डीजल फूँक कर जो धनरोपनी कर रहे हैं और जो खेत को परती छोड़कर बैठे हैं, दोनों ही निराश हैं।-

हर दिन आसमान को आशा भरी निगाह से निहारता हूँ लेकिन…। किसानी कर रहे हमलोग परेशान हैं। फ़सल की आस जब नहीं दिख रही है, तब ऋण का बोझ हमें परेशान कर देता है। नींद ग़ायब हो जाती है। खेती नहीं कर रहे लोग ऐसे वक़्त में जब ‘क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए’ का ज्ञान देते हैं तो लगता है कि उन्हें कहूँ कि बस एक कट्ठा में खेती कर देख लें।

दरअसल किसानी का पेशा प्रकृति से जुड़ा है, लाख वैज्ञानिक तरीक़े का इस्तेमाल कर लें लेकिन माटी को तो इस मौसम में बारिश ही चाहिए। सुखाड़ जैसी स्थिति आ गयी है।

इस बार लगता है कि धरती फट जाएगी। खेत में दरार साफ़ दिखने लगा है। यह स्थिति मन को और निराश कर देती है।

तस्वीर गूगल से साभार

डीज़ल फूँक कर धनरोपनी नहीं कराने का फ़ैसला डराता भी है लेकिन क्या करें ? सरकार तमाम तरह की बात करती है, योजनाएँ बनाती हैं लेकिन किसान को मज़बूत करने के बजाय उसे मजबूर बना रही है।

योजना का लाभ उठाने के लिए हमें इतनी काग़ज़ी प्रक्रियाओं से जूझना पड़ता है कि हम हार जाते हैं। डीज़ल अनुदान लेने के लिए जिस तरह की प्रक्रिया प्रखंड-अंचल मुख्यालय में देखने को मिलती है तो लगता है इससे अच्छा किसी से पैसा उधार लेकर खेती कर ली जाए। यही हक़ीक़त है।
किसान बाप के बेटे-बेटी को, जिसकी आजीविका खेती से चलती है, उसे अपनी ही ज़मीन लिए बाबू साब के दफ़्तरों का चक्कर लगाना पड़ता है।

बारिश के अभाव ने मन को भी सूखा कर दिया है। किसानी का पेशा ऐसे समय में सबसे अधिक परेशान करता है।

बाबूजी डायरी लिखते थे, हर रोज़। उनका 1984 का सर्वोदय डायरी पलटते हुए धनरोपनी का यह गीत मिलता है – “बदरिया चलाबैत अछि बाण, सब मिलि झट-झट रोपहु धान …” लेकिन 2018 में बादल बरसने को तैयार ही नहीं हैं। इन सबके बावजूद बाबूजी की डायरी विपरीत परिस्थिति में मुझे संबल देती है, उनके शब्द से लगता है कि हमारी नियति में लड़ना ही सत्य है।

उधर, मानसून सत्र को लेकर मुल्क मगन है और इधर हम धनरोपनी और पानी का रोना रो रहे हैं। हमारी समस्या में ग्लैमर नहीं है, हमारी परेशानी में ख़बर का ज़ायक़ेदार तड़का नहीं है, हमारी बात न्यूज़रूम की टीआरपी नहीं है, हमारे सूखते खेत सरकार बहादुर के लिए वोट का मसाला नहीं है, ऐसे में हम जहाँ थे, वहीं हैं। हम रोते हैं तो ही हुक्मरानों को अच्छा लगता है। हमारा रोना सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए डाइनिंग टेबल का रायता है।

वैसे बारिश आज नहीं तो कल आएगी…फिर एक दिन हम बाढ़ में डूब जाएँगे तब अचानक हवाई दौरा शुरू हो जाएगा…2019 की तैयारी शुरू हो जाएगी।

– गिरीन्द्र नाथ झा


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मुंबई: मात्र 13 साल के व्यवसायी तिलक मेहता ने साबित किया कि ‘उम्र महज़ एक नंबर है’!

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मिलिए मात्र 13 साल के व्यवसायी तिलक मेहता से, जो अपने व्यवसाय ‘पेपर्स एंड पार्सल्स’ सर्विस से मुंबई के डिब्बावालों को जोड़ रहें हैं। साल 2020 तक उनकी कंपनी का टर्नओवर लगभग 100 करोड़ होगा।


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महाराष्ट्र: स्कूलों का बिजली बिल भरने के लिए बिजली विभाग के कर्मचारियों ने दान दिया एक दिन का वेतन!

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पिछले 6 महीने से बिजली का बिल न भर पाने के कारण औरंगाबाद के 35 मॉडल स्कूलों में अँधेरा छाया हुआ था। ऐसे में इन स्कूलों की मदद के लिए आगे आये एमएसईडीसीएल के कर्मचारी! उन्होंनेे अपने एक दिन का वेतन दान कर, 3.22 लाख रूपये जमा कियेे तथा इन स्कूलों के बिजली के बिल का भुगतान करके इन्हें फिर से रौशन कर दिया।


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अगर काम नहीं कर रहा है ट्रेन कोच में एसी तो रेलवे से मांग सकते हैं रिफंड, जानिए कैसे!

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दि आप ट्रेन में एसी कोच में सफर कर रहें हैं और आपके कोच का एसी काम नहीं कर रहा है तो आप रेलवे से रिफंड मांग सकते हैं।

आईआरसीटीसी के नए रिफंड नियमों के मुताबिक भारतीय रेलवे वातानुकूलित कोच में एसी सुविधा प्रदान करने में विफल होने पर कुछ किराया राशि वापिस करेगा। हालांकि, इसमें कुछ शर्तें भी जुड़ी हैं।

आप यहां इस सुविधा से जुड़े कुछ नियमों के बारे में पढ़ सकते हैं,

  • यदि यात्री द्वारा बुक किया गया टिकट एसी फर्स्ट क्लास के लिए है, तो एसी फर्स्ट क्लास के किराए और फर्स्ट क्लास के किराए के बीच के अंतर का शुल्क वापिस किया जाएगा।
  • यदि यात्री द्वारा बुक किया गया टिकट एसी सेकंड या एसी थर्ड क्लास के लिए है, तो उस स्थिति में,एसी सेकंड या एसी थर्ड क्लास का किराया और स्लीपर क्लास के बीच का अंतर किराया प्रदान किया जाएगा। यह नियम मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों दोनों के लिए मान्य है।
  • यदि टिकट एसी चेयर कार के लिए है, तो यात्री को एसी चेयर कार का किराया और मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों में सेकंड क्लास के किराए के बीच के अंतर का शुल्क दिया जाएगा।
  • यदि यात्री द्वारा बुक किया गया टिकट एग्जीक्यूटिव क्लास के लिए है, तो संबंधित सेक्शन के लिए एग्जीक्यूटिव क्लास के किराये और उस सेक्शन की संबंधित दूरी के लिए प्रथम श्रेणी के किराए के बीच का अंतर शुल्क दिया जाएगा।

क्या है प्रक्रिया

यदि यात्री के पास ई-टिकट है, तो यात्री को अपने डेस्टिनेशन तक ट्रेन के वास्तविक समय पर पहुंचने के बीस घंटे तक ऑनलाइन टीडीआर दर्ज करना होगा। इसके बाद यात्री को इसे जारी मूल प्रमाणपत्रों (जीसी / ईएफटी) के साथ ग्रुप जनरल मैनेजर/आईटी, इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन लिमिटेड, इंटरनेट टिकटिंग सेंटर, आईआरसीए बिल्डिंग, स्टेट एंट्री रोड, नई दिल्ली – 110055, के पास पोस्ट के माध्यम से भेजना होगा।

यदि आपके पास आई-टिकट है, तो ऊपर लिखे पते पर यात्रा के समय टिकट जांच कर्मचारी (टीटीई) द्वारा जारी मूल प्रमाणपत्र (जीसी / ईएफटी) को भेजना होगा।

आपको ध्यान रखना होगा कि रेलवे मूल प्रमाण पत्र (जीसी / ईएफटी) प्राप्त करने के बाद ही टीडीआर के माध्यम से रिफंड की प्रक्रिया शुरू करेगा। आईआरसीटीसी द्वारा आपका यह दावा/क्लेम उसी क्षेत्रीय रेलवे को भेजा जाएगा जिसके अधिकार क्षेत्र में आपका ट्रेन डेस्टिनेशन आता है। इस प्रकार, राशि आप उसी खाते में जमा की जाएगी जिसके माध्यम से भुगतान किया गया था।


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कुत्ता दिनों की छायाएँ, बिल्ली दिनों के अंदाज़!

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मेरे पास है कुछ कुत्ता-दिनों की
छायाएँ
और बिल्ली-रातों के
अंदाज हैं।

मैं इन दिनों और रातों का
क्या करूँ?
मैं अपने दिनों और रातों का
क्या करूँ?
मेरे लिए तुमसे भी बड़ा
यह सवाल है।
यह एक चाल है;
मैं हरेक के साथ
शतरंज खेल रहा हूँ
मैं अपने ऊलजलूल
एकांत में
सारी पृथ्वी को बेल रहा हूँ।

मैं हरेक नदी के साथ
सो रहा हूँ
मैं हरेक पहाड़
ढो रहा हूँ।
मैं सुखी
हो रहा हूँ
मैं दुखी
हो रहा हूँ
मैं सुखी-दुखी होकर
दुखी-सुखी
हो रहा हूँ..

[यह एक अंश है श्रीकांत वर्मा की कविता ‘मायादर्पण’ का]

चाहता तो हूँ कि यह स्तम्भ मेरी आपसे बात न हो कर आपकी अपने आपसे बात का एक बहाना बने. यह मनोरंजन के लिए नहीं है. हाँ मनोरंजक हो सकता है कभी. असल ‘मनोरंजन के बिना कोई क्यों पढ़े, अपना वक़्त ज़ाया करे?’ की सतही सोच के बारे में क्या ही कहा जा सकता है. अथवा ‘आप कहिए, हम सुन तो रहे हैं न’ भी उतना ही ऊलजुलूल और अनुपयोगी है. वार्तालाप वही काम का है जो आपका अपनेआप से होना है. और कविता का काम ही यही है कि आपको आप से मिलवाये. तो आज की इंटरनेट-संचालित तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में आपसे अनुरोध किया जाए कि आप हमारे साथ धीरे-धीरे चलें थोड़ी देर?

ठीक है?
ठीक है फिर – बतलाइए वो ‘कुत्ता दिन’ याद हैं आपको? वैसे किन दिनों को ‘कुत्ता’ दिन कहेंगे आप और किनको ‘बिल्ली’ दिन? और बिल्ली दिनों के अंदाज़ क्या थे हुज़ूर? ‘कुत्ता दिन’ मेहनतकशी के दिन थे? प्रताड़ित होने के दिन थे? किस बात की प्रतारणा? कौन सी लड़ाई लड़ी जा रही थी? ये दिन अच्छे थे या बुरे थे? जो भी थे उनमे से शायद आप एक हीरो बन कर निकले थे? अब वो दिन फिर से आएँगे? वो दिन कभी गए ही नहीं?

और बिल्ली दिनों के अंदाज़? जब आप जीजाजी को छेड़ती थीं और दीदी का सर गोद में रख कर दिलासा भी देती थीं? या अपने बच्चे, माँ-बाप, नौकरी-पानी सब हँसते-खिलते संभाल लेती थीं? या पापा से झूठ बोल कर वैलेंटाइन्स डे मनाया था, या आप पापा हैं तो इस दिन के पहले अपनी बेटियों को बिठा कर एक अपनी पूरी चतुरता से एक इमोशनल डोज़ दिया था.

जो भी आपके बिल्ली दिन हों, जो भी उनके अंदाज़ हों – साहेबान, एक कविता का काम आपको अपनी ज़िन्दगी (हो गयी / चल रही / होने वाली) की सैर करवाना है – जो इस कविता ‘मायादर्पण’ के बहाने भी बख़ूबी पूरा हो सकता है बशर्ते आप इजाज़त दें. कुछ और मिल जाए तो भली बात है, वैसे अपने आपको ढूँढ़ें इस कविता में 🙂

लीजिये पेश है:

लेखक –  मनीष गुप्ता

हिंदी कविता (Hindi Studio) और उर्दू स्टूडियो, आज की पूरी पीढ़ी की साहित्यिक चेतना झकझोरने वाले अब तक के सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रोजेक्ट के संस्थापक फ़िल्म निर्माता-निर्देशक मनीष गुप्ता लगभग डेढ़ दशक विदेश में रहने के बाद अब मुंबई में रहते हैं और पूर्णतया भारतीय साहित्य के प्रचार-प्रसार / और अपनी मातृभाषाओं के प्रति मोह जगाने के काम में संलग्न हैं.


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मिलिए मुंबई के इस टैक्सी ड्राइवर से, जिसने अपने बेटे के साथ पास की ग्रेजुएशन!

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मुंबई में टैक्सी चलाने वाले मोहम्मद फारुख शेख दसवी के बाद पढ़ाई छोड़ चुके थे! पर अपने बेटे को देख उनमें भी ग्रेजुएशन करने की इच्छा जागी!
कॉलेज में उनके सहपाठी व शिक्षक सब उन्हें ‘अंकल’ कहते थे। लेकिन फिर भी अपने बेटे की उम्र के शिक्षकों से पढ़ने में उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं हुई।


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